चिनार की छांव में
अनीता
कश्मीर जाने का ख़्वाब मन में न जाने कब से पल रहा था, पर पिछले कुछ दशकों में वहां के हालात देखते हुए इतने वर्षों में हम इस ख़्वाब को कभी हक़ीक़त में नहीं उतार पाये थे। आज शान्तिप्रिय बन समृद्धि की राह पर चलकर वह पुन: अपनी चमक वापस पा रहा है। आज बदली हुई फ़िज़ा के बारे में पढ़-सुनकर, एक शाम जुलाई के महीने में एक मित्र परिवार के साथ बातों-बातों में हमने भी कश्मीर यात्रा का टिकट कटा लिया। एक महीने बाद हम दो मित्र दंपतियों में एक अन्य दंपति आ जुड़े। उन्हें चेन्नई से आकर दिल्ली से हमारे साथ श्रीनगर जाना था।
सुबह तीन बजे हम बेंगलुरू हवाई अड्डे के लिए रवाना हुए। इस बात का हमें जरा भी अंदाज़ा नहीं था कि सुरक्षा जांच के बाद प्रस्थान द्वार के पास बैठे हुए, बेंगलुरू के नये भव्य टर्मिनल के हॉल के शीशे की जो दीवार दूधिया दिखाई दे रही है, वह उसका स्वाभाविक रंग नहीं बल्कि बाहर का घना कोहरा है। कोहरे के कारण सभी उड़ानें काफ़ी देर से चलीं। एयर इंडिया ने सुबह का स्वादिष्ट नाश्ता भी कराया और श्रीनगर के लिए वैकल्पिक उड़ान में सीट सुरक्षित करने में बहुत सहायता की। शाम को साढ़े छह बजे हम डल झील पर अपने निर्धारित हाउसबोट पर पहुंचे।
नजीर अहमद कई प्रकार के कश्मीरी वस्त्र लाया था। हम सभी ने एक या दो शालें और स्टोल ख़रीदे। आज यात्रा का दूसरा दिन है और हाउसबोट में रहने का पहला अवसर। नक्काशीदार लकड़ी से बना यह हाउसबोट कलात्मक सुंदर मोटे क़ालीनों, रेशमी परदों तथा लकड़ी के आकर्षक फ़र्नीचर के कारण किसी राजभवन के कक्ष-सा प्रतीत होता है।
अभी सुबह के साढ़े चार ही बजे हैं। ठंड की अधिकता के कारण हमारी नींद जल्दी खुल गई है। विद्युत कंबल ऑन कर देने के कारण अब बिस्तर काफ़ी गर्म हो गया है और कमरे में ठंड का अहसास नहीं हो रहा है। अजान की लयबद्ध आवाज़ें आ रही हैं। हम बाहर निकले तो कुछ दुकानदार डल झील में शिकारों पर घूमते हुए फूल, फूलों के बीज, ऊनी वस्त्र, कहवा आदि बेचने आ गये। नाश्ते के समय भी एक व्यापारी अखरोट की लकड़ी की बनी वस्तुएं दिखा रहा था। हाउसबोट से ही शंकराचार्य मंदिर का सुंदर नजारा भी दिख रहा है, जो एक ऊंचे पर्वत पर स्थित है। खीर भवानी के एक मंदिर की बात भी यहां के एक कर्मचारी ने बतायी। आज आठ बजे हमें पहलगाम के लिए रवाना होना है। चार-पांच घंटों में हम वहां पहुंच जाएंगे।
साभार : अनीता निहालिनी डॉट ब्लॉगस्पॉट डॉट कॉम