मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

समतामय समाज बनाने के पक्षधर

09:17 AM Feb 19, 2024 IST

मुकेश ऋषि
संत एवं भक्त कवि रविदास हिन्दी साहित्य के इतिहास में मध्यकाल, भक्तिकाल के नाम से प्रख्यात हैं। इस काल में अनेक संत एवं भक्त-कवि हुए, जिन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों को समाप्त करने का प्रयास किया। इन महान संतों, कवियों की श्रेणी में संत रैदास का प्रमुख स्थान रहा है। कबीर के समकालीन संत रविदास को रैदास भी संबोधित किया गया।
संत कवि रविदास का जन्म वाराणसी के पास एक गांव में सन‍् 1398 में माघ पूर्णिमा के दिन हुआ था। रविवार के दिन जन्म होने के कारण इनका नाम रविदास रखा गया। रविदास जी को रामानन्द का शिष्य माना जाता है।
इस वर्ष 2024 में रविदास जयंती 24 फरवरी शनिवार के दिन है। कुछ विद्वान काशी में जन्मे रैदास का समय 1482-1527 ई. के बीच मानते हैं तो कुछ के अनुसार रैदास का जन्म काशी में 1398 में माघ पूर्णिमा के दिन हुआ माना जाता है। संत कवि रविदास जी का जन्म चर्मकार कुल में हुआ था। इनके पिता का नाम ‘रग्घु’ और माता का नाम ‘घुरविनिया’ था। उन्होंने पैतृक व्यवसाय को सहर्ष स्वीकार किया। अपने कार्य को यह बहुत लगन और मेहनत से किया करते थे। उनकी समयानुपालन की प्रवृत्ति तथा मधुर व्यवहार के कारण लोग इनसे बहुत प्रसन्न रहते थे। उन्होंने जाति, वर्ग एवं धर्म के मध्य की दूरियों को मिटाने और उन्हें कम करने का भरसक प्रयत्न किया।
रविदास जी भक्त, साधक और कवि थे। उनके पदों में प्रभु भक्ति भावना, ध्यान-साधना तथा आत्म-निवेदन की भावना प्रमुख रूप में देखी जा सकती है। रैदास जी ने भक्ति के मार्ग को अपनाया था। सत्संग द्वारा इन्हाेंने अपने विचारों को जनता के मध्य पहुंचाया तथा अपने ज्ञान तथा उच्च विचारों से समाज को लाभान्वित किया।
प्रभुजी तुम चंदन हम पानी। जाकी अंग अंग वास समानी॥
प्रभुजी तुम धनबन हम मोरा। जैसे चितवत चन्द्र चकोरा॥
प्रभुजी तुम दीपक हम बाती। जाकी जोति बरै दिन राती॥
प्रभुजी तुम मोती हम धागा। जैसे सोनहि मिलत सुहागा॥
प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा। ऐसी भक्ति करै रैदासा॥
उपर्युक्त पद में रविदास ने अपनी कल्पनाशीलता, आध्यात्मिक शक्ति तथा अपने चिंतन को सहज एवं सरल भाषा में व्यक्त करते हैं। संत रैदास के सहज-सरल भाषा में कहे गये इन उच्च भावों को समझना आमजन के लिए बहुत आसान रहा है। उनके जीवन की घटनाओं से उनके गुणों का ज्ञान होता है।
एक घटना के अनुसार गंगा स्नान के लिए रैदास के शिष्यों में से उनसे भी चलने का आग्रह किया तो वे बोले-गंगा स्नान के लिए मैं अवश्य जाता, परंतु मैंने किसी को आज ही जूते बनाकर देने का वचन दिया है। अगर मैं जूते नहीं दे सका तो वचन भंग होता है। अतः मन सही है तो कठौती के जल में ही गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है।
कहा जाता है कि इस प्रकार के व्यवहार के बाद से ही कहावत प्रचलित हो गयी कि- मन चंगा तो कठौती में गंगा। रविदास जी की भक्ति-गीतों एवं दोहों में भारतीय समाज में समरसता एवं प्रेम-भाव उत्पन्न करने का प्रयास किया है। हिन्दू और मुस्लिम में सौहार्द एवं सहिष्णुता उत्पन्न करने हेतु रविदास जी ने अथक प्रयास किए थे और इस तथ्य का प्रमाण उनके गीतों में देखा जा सकता है। वे कहते थे कि तीर्थ यात्राएं न भी करो तो भी ईश्वर को अपने हृदय में वह पा सकते हैं।
मन चंगा तो कठौती में गंगा कहते हुए उन्होंने मन की शुद्धता पर विशेष रूप से जोर दिया। रविदास राम और कृष्ण भक्त परम्परा के कवि और संत माने जाते हैं। उनके प्रसिद्ध दोहे आज भी समाज में प्रचलित हैं। जिन पर कई भजन बने हैं, संत रविदास जयंती देशभर में उत्साह एवं धूमधाम के साथ मनाई जाती है। इस अवसर पर शोभा यात्रा निकाली जाती हैं।

Advertisement

Advertisement