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मर्दानगी है तो जनानगी से संकोच क्यों है भाई !

07:30 AM May 30, 2024 IST
मर्दानगी है तो जनानगी से संकोच क्यों है भाई
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शमीम शर्मा

‘ये हुई न मर्दों वाली बात।’ यह डॉयलॉग आम है। जब भी बात साहस, बहादुरी और दबंगपने की होगी तो मर्दों की मानी जायेगी। मर्दानगी पुरुषत्व का प्रतीक मानी जाती है। और अगर औरत भी बहादुरी की बात करे तो उसे भी यही सुनना पड़ता है कि ये हुई न मर्दों वाली बात। तो क्या अर्थ लगाया जाये कि बहादुर होने के लिये मर्द होना जरूरी है? ‘मर्दानगी है तो जनानगी’ शब्द भला इज़ाद क्यों नहीं हो सकता‍‍?
लक्ष्मीबाई को अगर हम यह कहें की खूब लड़ी जनानी वह तो झांसी वाली रानी थी। इसमें क्या गलत है। उसे मर्दानी बताकर यह अहसास होता है कि उसके समकक्ष बीड़ा उठाने वाले मर्द थे ही नहीं। समझ से परे है कि बहादुरी का मर्द होने से क्या ताल्लुक है। यह सिर्फ लालन-पालन का फर्क मात्र हो सकता है।
पहलवान का स्त्रीलिंग ही नहीं है। किसी ने सोचा ही नहीं होगा कि महिलाएं भी पहलवानी करेंगी। महापुरुष का भी स्त्रीलिंग नहीं है। किसी के जहन में ही नहीं रहा होगा कि औरतें भी महापुरुषों के समकक्ष हो सकती हैं। और बात लिंग पुल्लिंग की चल रही है तो एक सत्य यह भी है कि गुरु शब्द का भी स्त्रीलिंग नहीं है। यह भी शायद इसलिये था कि महिलाओं के गुरु होने पर सन्देह रहा होगा।
पुरुषों के शौर्य-वीर्य को उभारने के लिये वीरतासूचक शब्द सिंह लगाया जाता है। कई बार तो अति हो जाती है जैसे शेरसिंह यानी दो बार शेर। या फिर वीरबहादुर। वीर और बहादुर यानी डबल वीर। ठीक उसी प्रकार जैसे घर में मेहमान के आने पर कहा जाता है कि भई फल-फ्रूट खिलाओ, जबकि फल और फ्रूट एक ही चीज का नाम है। मेजर सिंह, कप्तान सिंह जैसे नाम भी लड़कों की बहादुरी को रेखांकित करने के लिए ही रखे जाते हैं। यही तथाकथित बहादुरी आगे जाकर हिंसा का कारण बनती है। जरूरी बात यह है कि लड़कियों को जरा-जरा लड़कों की तरह पाला-पोसा जाये ताकि वे भी साहसी बन सकें और लड़कों के लालन-पालन में लड़कियों का धैर्य और कर्मशीलता का भाव उपजाया जाये ताकि समाज में संतुलन और सामंजस्य का स्तर बढ़ सके। न तो आज तक यह पता कि ईश्वर मेल है या फीमेल, न आत्मा का पता और न ही गूगल का कि मेल है या फीमेल।
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एक बर की बात है अक नत्थू का खून होग्या। कोर्ट मैं मुकदमा चाल रह्या था। सुरजे वकील नैं नत्थू की घरवाली तैं बूज्झी अक नत्थू के आखरी बोल के थे? नत्थू की लुगाई बोल्ली- उसके आखरी बोल थे ः भतेरी! मेरा चश्मा तन्नैं कित धर दिया? वकील अचम्भे मैं बोल्या- इसमैं खूनखराबा करण की के बात थी? नत्थू की घरवाली बोल्ली- मेरा नाम भतेरी कोनीं रामप्यारी है।

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