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मांगों पर जल्द गौर नहीं किया तो सड़कों पर उतरने को होंगे मजबूर

09:07 AM Jul 05, 2023 IST
भिवानी में मंगलवार को उपायुक्त को ज्ञापन सौंपने जाते हरियाणा प्रदेश चमार संघर्ष समिति के सदस्य। -हप्र
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भिवानी, 4 जुलाई (हप्र)
हरियाणा प्रदेश चमार संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने मंगलवार को उपायुक्त के माध्यम से हरियाणा के राज्यपाल को मांगपत्र भेजकर समाज की विभिन्न मांगें व मुद्दे उठाए हैं। इस दौरान समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि समाज पिछले लंबे समय से अपनी विभिन्न मांगों व मुद्दों का लेकर संघर्षरत है, जिनके बारे में कई बार सरकार को अवगत करवाया जा चुका है, लेकिन आज तक उनका समाधान नहीं हुआ। इसके चलते समाज के लोगों में रोष है।
मांगपत्र के माध्यम से हरियाणा प्रदेश चमार संघर्ष समिति के प्रदेश अध्यक्ष अधिवक्ता मांगेराम तोंदवाल, प्रदेश प्रवक्ता राजेश चौधरी एवं जिला अध्यक्ष वीरभान मुवाल ने मांग की कि वर्ष 1942 में बनी चमार रेजीमेंट 1945 में समाप्त कर दी गई जिसे तुरंत बहाल किया जाए, हरियाणा में संत शिरोमणि गुरु रविदास विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए, यूपीएससी के माध्यम से न्यायपालिका में योग्य युवाओं का चयन हो जिसमें नियमानुसार आरक्षण भी लागू किया जाए, भर्तियों में आरक्षण लागू किया जाए, अनुसूचित जाति के अभ्यार्थियों के लिए बैकलॉग पूरा किया जाए, पदोन्नति में आरक्षण का लाभ दिया जाए, जिन सरकारी विभागोंं का निजीकरण किया गया है उनमें आरक्षण लागू किया जाए, विभिन्न विभागों में रिक्त पड़े अनुसूचित जाति के पदों के बारे में श्वेतपत्र जारी किया जाए, अनुसूचित जाति के लोगों की वृद्धावस्था सम्मान पेंशन की आयु 60 वर्ष से घटाकर 55 वर्ष की जाए, नए संसद भवन का नाम भारत रत्न बाबा साहेब डा. भीमराव अंबेडकर के नाम पर रखा जाए, नई स्कीम बनाकर भूमिहीन गरीबों परिवारों को 100-100 गज के प्लॉट मुहैया करवाए जाएं, अनुसूचित जाति के छात्रों को दी जाने वाली छात्रवृत्ति में आय सीमा ढाई लाख से बढ़ाकर पांच लाख रुपये की जाए, एससी-एसटी एक्ट के विरोध में हुए प्रदर्शन में भाग लेने वालों के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लिए जाएं।
हरियाणा प्रदेश चमार संघर्ष समिति के प्रदेश अध्यक्ष अधिवक्ता मांगेराम तोंदवाल, प्रदेश प्रवक्ता राजेश चौधरी एवं जिला अध्यक्ष वीरभान मुवाल ने कहा कि जब भी वोट की बारी आती है तो राजनीतिक दलों को अनुसूचित जाति वर्ग की याद आ जाती है, लेकिन वोट लेने के बाद फिर से उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाता है। अनदेखी की मार झेल रहे अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों में गुस्सा है तथा जल्द ही उनकी मांगों पर गौर नहीं किया गया तो मजबूरन उन्हें संघर्ष का रास्ता अपनाना पड़ेगा।

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