For the best experience, open
https://m.dainiktribuneonline.com
on your mobile browser.
Advertisement

आदर्शवाद सर्वोपरि

08:31 AM Feb 10, 2024 IST
आदर्शवाद सर्वोपरि
Advertisement

पंडित मदनमोहन मालवीय ने जब कॉलेज की शिक्षा पूर्ण की, तब उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उन्हें अध्यापक की नौकरी करनी पड़ी। कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह ने उनकी बहुत ख्याति सुन रखी थी। उन्होंने उस समय ‘हिंदुस्तान’ नामक समाचारपत्र का प्रकाशन आरंभ किया था, जिसके लिए उन्हें एक सुयोग्य संपादक की जरूरत थी। उन्होंने मालवीय से संपादक बनने का आग्रह किया। आर्थिक तंगी के चलते मालवीयजी ने यह प्रस्ताव स्वीकार तो कर लिया, किंतु राजा के सामने शर्त रखी कि जब आप नशे में हों तो कृपया कार्यालय में मेरे पास न आएं। इसके बाद मालवीय ने संपादन का कार्य शुरू कर दिया। एक दिन राजा साहब नशे में मालवीय के कार्यालय जा पहुंचे। मालवीय ने तुरंत त्यागपत्र दे दिया। नशा उतरने पर राजा साहब को बड़ी ग्लानि हुई और उन्होंने मालवीयजी से क्षमा-याचना की। मालवीय जी बोले, मैं अपने आदर्शों को सर्वोपरि मानता हूं। आप मुझे क्षमा करें। राजा साहब ने उस दिन से शराब छोड़ दी और मालवीयजी को वकालत पढ़ने के लिए 250 रुपये मासिक छात्रवृत्ति देते रहे।

Advertisement

प्रस्तुति : सुरेन्द्र अग्निहोत्री

Advertisement
Advertisement
Advertisement