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न सोचा था यूं गले की फांस बनेगा

06:28 AM Sep 16, 2023 IST
न सोचा था यूं गले की फांस बनेगा
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सहीराम

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अभी तक तो जी मिस्टर इंडिया ही गायब हुआ करता था, लेकिन अब तो खतरा इंडिया को लेकर पैदा हो गया है। कभी चीन अरुणाचल को भारत के नक्शे से गायब करने की कोशिश करता है और कभी पाकिस्तान कश्मीर को भारत के नक्शे से गायब करने की कोशिश में लग जाता है। अच्छी बात यह है कि हम ऐसी कोई टुच्ची हरकत नहीं करते। अपने आचरण में हम उदार तथा उदात्त होते हैं। कभी कोई ऐसी हरकत करनी भी पड़े तो हम अपने ही साथ करते हैं। जैसे हम भारत में घुस आए चीन को नहीं कहेंगे कि वापस चीन चले जाओ। वहां तो हम यही कहेंगे कि न कोई घुसा है और न ही किसी ने कब्जा किया है। लेकिन अगर हमारे लोग हम पर उंगली भी उठा दें तो हम झट से उनसे कह देंगे कि पाकिस्तान चले जाओ। बताते हैं कि हम आज तक इतने लोगों को पाकिस्तान जाने को कह चुके हैं कि पाकिस्तान ने अपना टूरिज्म विभाग ही बंद कर दिया है। उनका तर्क यह है कि हमारे टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए इंडिया वाले तो हैं ही। फ्री में हमारा प्रचार कर रहे हैं।
इसी उदारता में अब हम इंडिया को गायब करने में लग गए हैं। कुछ विघ्न संतोषियों का कहना है कि इंडिया नाम से विपक्ष का गठबंधन बनने के बाद ही देशभक्तों की नींद खुली। वरना पहले तो वोट फॉर इंडिया का ही आह्वान किया जा रहा था। पहले तो मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, खेलो इंडिया जैसे उठो इंडिया, जागो इंडिया टाइप के ही आह्वान किए जा रहे थे। उन्हें क्या पता था कि एक दिन इंडिया इतना पराया हो जाएगा। उन्हें क्या पता था कि जिस इंडिया को वे ताबीज की तरह पहने घूम रहे हैं, वही एक दिन यूं गले की फांस बन जाएगा। अब तो हाल उस पड़ोसी वाला हो लिया है जनाब कि अपनी भले ही दोनों आंखें फूट जाएं, पर पड़ोसी की एक आंख तो जरूर फूटनी चाहिए। विद्वेष ऐसी ही चीज होती है जी, फिर चाहे वह पड़ोसी विद्वेष हो या विपक्षी विद्वेष। इस विद्वेष के चलते अभी तक हम अपना लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और शिष्टाचार ही खो रहे थे, लेकिन अब तो इंडिया तक को खोने के लिए तैयार हैं।
हम अंग्रेजी माध्यम के महंगे स्कूलों को खत्म कर समान शिक्षा नहीं देंगे, बस इंडिया नाम को बदल कर अपनी औपनिवेशिक गुलामी को खत्म कर लेंगे। हम अमेरिका, इंग्लैंड जाने से अपनी प्रतिभाओं को नहीं रोकेंगे, बस इंडिया का नाम मिटाकर अपनी औपनिवेशिक गुलामी खत्म कर लेंगे। हम बहुराष्ट्रीय निगमों को न्योतना बंद नहीं करेंगे, बस इंडिया का नाम बदलकर अपनी औपनिवेशिक गुलामी खत्म कर लेंगे। शहरों के नाम बदलने को क्या आपने मजाक समझा था, जनाब! उसे इसी परिणति पर पहुंचना था!

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