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समझौते नहीं करता इसलिए अड़ता हूं

10:20 AM Dec 03, 2023 IST
समझौते नहीं करता इसलिए अड़ता हूं
अंबाला के बाजार में आम लोगों के साथ चाय की चुस्िकयां लेते अनिल विज। -दैिनक टि्रब्यून
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अनिल विज आज भले ही हरियाणा के गृह एवं सेहत मंत्री हों, लेकिन वे तब भी सुर्खियों में हुआ करते थे जब राज्य में डबल इंजन सरकार नहीं थी। वे जनसरोकारों, सरलता और अपने तेवरों के लिये जाने जाते हैं। वे अपनी बातों पर पार्टी, सरकार व शासन के दिग्गजों से भिड़ते नजर आते हैं। वे कहते हैं यह मेरा स्वभाव है कि मैं समझौता नहीं करता। कोरोना काल में वे सख्त नीतियों, सेवा कार्यों, खुद के कोरोना की चपेट में आने के कारण सुर्खियों में रहे। वे ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ सचिवालय में काम करते नजर आए। वैसे वे साढ़े तीन दशक से अम्बाला में जनता का दरबार हर सुबह लगाते हैं। ऐसे ही एक दरबार में उनसे हुई बातचीत-

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अरुण नैथानी
साढ़े तीन दशक से जारी दरबार?
ये शहर के हालचाल जानने का हमारा ठिया रहा है। यहां लोग आते, बहुत सारे अखबार लाते। वे मिलकर पढ़े जाते। धीरे-धीरे सिलसिला बन गया। कभी कोई बता देता कि आज यह खबर आई। दरअसल, यहां रिलेक्स करते हैं। सारे शहर का सुख-दुख पता चल जाता है।
संघ की पृष्ठभूमि?
दरअसल, मैं कालेज जीवन से एबीवीपी का हिस्सा रहा। जनरल सेक्रेटरी था अपने कॉलेज में। तो वो भी संघ का ही हिस्सा था। फिर संघ से जुड़ अनेक प्रकल्पों में काम करता रहा। विहिप का महामंत्री चार साल रहा। भारत विकास परिषद का संस्थापक जनरल सेक्रेटरी रहा हूं। बीएमएस में बहुत काम किया।
राजनीति में आना?
ऐसा कभी नहीं लगा। दरअसल, मैं पार्टी का काम करता था। फिर मेरी 1974 में बैंक में नौकरी लग गई। ऐसे में मेरी सीमाएं थीं। मैं संघ की सामाजिक संस्थाओं में तो काम करता ही था। मैंने अपनी दो संस्थाएं भी बनायी थी। एक का नाम था कल्याण भारती। जिसमें सामाजिक काम करते थे। दो डिस्पेंसरी चलती थीं। सस्ती दरों पर एक एंबुलेंस चलाते थे। तब न कोई सरकारी एंबुलेंस थी, न किसी अस्पताल के पास। आई डोनेशन व आई ऑपरेशन कैंप लगाते थे।
निश्चित रूप से अम्बाला के लोगों के प्यार की ताकत थी। दरअसल, बैंक में काम करते हुए भी पार्टी का काम करता था। साल 1977 में जनता पार्टी सरकार बनी, पार्टी का काम किया। यहां सुषमा स्वराज चुनाव लड़ने के लिये आई। मैंने बैंक से छुट्टी लेकर 1987 में वह चुनाव लड़वाया। सूरजभान जी को लोकसभा चुनाव लड़वाया। फिर नब्बे का बाइ-इलेक्शन आया। दरअसल, सुषमा राज्यसभा चली गईं। इधर भाजपा इनेलो से अलग हो चुकी थी। वो ग्रीन ब्रिगेड का दौर था। महम कांड हुआ था। भाजपा को चेतावनी दी कि तुम इनेलो से अलग होकर हरियाणा में एक सीट भी नहीं जीत सकते। मुझे पार्टी व संघ ने कहा, कि मैं चुनाव लड़ूं। मैंने तब संघ से कहा कि मेरी बैंक की 17 साल की सर्विस हो गई है। तीन साल की सेवा के बाद पेंशन लग जाएगी, कुछ सहारा हो जाएगा। उसके बाद होल टाइमर लगा देना।
फिर उपचुनाव का नामांकन भरने से दो दिन पहले मुझे रोहतक बुलाया गया। उस दिन बीजेपी व आरएसएस की पूरे प्रदेश की टीम ने पूरा जोर लगाया कि मुझे चुनाव लड़ाया जाए। लास्ट में जो प्रदेश में संघ के अध्यक्ष थे प्रेमचंद जैन, उन्होंने कहा कि बस हो गया फैसला, आप संघ के स्वयं सेवक हो, नौकरी छोड़ो, चुनाव लड़ो। मैं आया और बैंक से रिजाइन कर दिया। वैसा इलेक्शन पहले नहीं हुआ था। भजन लाल व चौटाला एक-एक बूथ पर गए। डॉ. मंगलसेन ने अम्बाला में एक महीने डेरा डाला, मैं लड़ा और जीता।
बार-बार जीत के मायने?
लोग जानते हैं कि मैं आम जनता की राजनीति करता हूं। आम कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चलता हूं। मोहल्ले के दादाओं से नहीं, आम लोगों से बात करता हूं।
अम्बाला के लोगों का संबल?
अम्बाला के लोग सजग हैं। नहीं तो मेरे जैसे साधनहीन को कैसे मौका मिलता। आज देश में राजनीति बाहुबल, जातिबल और धनबल से चलती है। मेरे पास ये तीनों नहीं थे। जनता ने छह बार विधायक बनाया।
माता-पिता की सीख?
सही मायनों में माता-पिता की सीख ने मुझे आज यहां तक पहुंचाया। मेरे पिताजी भीमसेन विज रेलवे कर्मचारी थे। मैंने उनके निधन के बाद ही चुनाव लड़ा। हमारे पास साधन नहीं थे। माता राजरानी विज ने हमें संस्कार दिये। कठिनाइयों से पाला-पोसा। उनकी एक ही इच्छा थी कि हम खूब पढ़ें, अच्छे इंसान व नागरिक बनें। उनके प्यार व संस्कारों ने हमें हर लड़ाई को लड़ने में बल दिया। आज भी हम तीन भाई हैं। ज्वाइंट फैमिली है। एक ही घर है। एक ही किचन में खाना खाते हैं।
अविवाहित रहने का फैसला?
मैं तो शुरू से पूर्णकालिक संघ सेवकों में रल गया था। सारे मेरे जैसे ही थे। उस वक्त कौन शादी करता था? जब मैंने कह दिया था कि तीन साल दे दो, फिर पूर्णकालिक कार्यकर्ता बनूंगा तो फिर शादी कराने का मतलब ही नहीं था। अटल जी , मोदी जी और मनोहर जी को देखिये।
सम्मोहन से परहेज?
दरअसल, उधर हम गये ही नहीं। कालेज में भी हमारे साथ कौन फ्रेंड होता? हम तो सारे दिन जिंदाबाद-मुर्दाबाद ही करते रहते थे।
पढ़ाई में मध्यम मार्ग?
मैं हमेशा ही मीडियम छात्र रहा। मैं कभी फेल हुआ नहीं। कंपार्टमेंट कभी आई नहीं। फर्स्ट क्लास आई नहीं।
मनोरंजन के लिए पिक्चर, सीरियल?
पिक्चर देखता हूं। टीवी सीरियल देखता हूं। कल रात बारह बजे तक सीरियल देखा था- रेलवे मैन। भोपाल गैस त्रासदी पर था। तब तक देखता हूं जब तक सोने का समय नहीं होता। कोई न कोई वक्त-बेवक्त उठा देता है। फिर सारी रात काली हो जाती है। तब सोता हूं जब पूरा हरियाणा सो जाता। सुबह छह बजे उठता हूं।
खुद के लिये समय?
बहुत बड़ी दिक्कत है। हमारा लाइफ स्टाइल ही कुछ ऐसा है। कोई भी ,कभी भी आकर बात कर लेता है। चंडीगढ़ में मंत्रियों के लिये कोठी लेना ख्वाब होता है। मैंने कोठी नहीं ली। मैं यहीं रहता हूं। रोजाना चंडीगढ़ जाकर काम करके आ जाता हूं। यहां अपने लोगों के बीच में हूं। उन्हें पता है उनका नुमाइंदा सरेबाजार बैठा है।
लोगों के बीच सुरक्षा का अहसास?
कभी ये महसूस नहीं हुआ। पिछले 30-35 साल से बैठ रहा हूं। जिस दिन मंत्री बना और शपथ ली, उसके अगले दिन यहां आकर अखबार पढ़नी शुरू कर दी।
सेहत के लिए योग-व्यायाम?
योग पहले बहुत करता था। जब कालेज से बैंक गया वहां रोज योग करता था। अब समय नहीं मिलता। क्या करें राजनीति ने गालिब को निकम्मा कर दिया।
सही पर समझौता न करने की जिद्द?
ये मेरा गुण है। अकसर लोग मुश्किल में समझौता कर लेते हैं। मैं समझौता नहीं करता इसलिए जिद्दी हूं।
टकराना स्वभाव या अम्बाला की ताकत?
इन्हीं लोगों की ताकत। इनका ही विश्वास है। इतनी बड़ी राजनीति से टकरा जाना, उसके लिये ये मेरी ताकत हैं।
दाढ़ी रखने की असल वजह?
ये प्रण नहीं लिया था। किसी के कहने से नहीं। डॉक्टर की सलाह थी। दरअसल, हाईडाइबिटीज से प्रभावित था। शेविंग करता तो खून निकल जाता।
कोरोना से हरियाणा को बचाते-बचाते हुए संक्रमित?
उस वक्त कोरोना लगभग निकल चुका था, जब मैं संक्रमित हुआ। अपने शहर के सिविल अस्पताल में भर्ती हुआ। लोगों ने सलाह भी दी बड़े अस्पताल जाने की। बड़े अस्पतालों से फोन भी आए कि आप आ जाओ। मैंने कहा नो, मैं हेल्थ मिनिस्टर हूं। जैसे आम लोगों के लिये व्यवस्था मैंने दिलायी है, उसी में इलाज कराना है। मेदांता के डॉ. त्रेहन का फोन आया- कमरा तैयार है, आप आ जाओ। यहां थोड़ा केस बिगड़ गया। फिर भी मैं किसी बड़े अस्पताल में जाने के बजाय रोहतक पीजीआई चला गया। तीन दिन रहा, स्थिति देखकर डॉक्टर भी डर गये। बोले आप कहीं और चले जाओ। वहां भी केस बिगड़ गया। फिर मेदांता भेज दिया। डॉक्टर जिनका ट्रीटमेंट था, उनसे पूछा- बचने के कितने चांसेज हैं। वो महिला डॉक्टर रो पड़ी- वेरी लेस। ठीक है, मैंने कहा, एक सोफा व एक बड़ा टीवी लगवाइए। वे बोले- नो, आप ऐसा नहीं कर सकते। मैंने कहा, मैं बैठूंगा। मैं वहां बैठ गया। डॉक्टर आते थे, इंजेक्शन लगाते थे। एक दिन में तीन बार 125 एमजी का स्टीरॉयड लगता। धीरे-धीरे ठीक हुआ। डिस्चार्ज करते वक्त डॉ. त्रेहन आए व कहा, कमाल हो गया आपके बचने के चांसेज सिर्फ दस प्रतिशत थे। हम आपका केस वर्ल्ड फोरम में ले गये। उन्होंने कहा-उम्मीद कम है, पुट हिम ऑन वेंटिलेटर। पर मैं वेंटिलेटर पर नहीं गया।
चमत्कार की तार्किकता!
जब लौटा तो लोगों ने बताया कि हर घर-गली में लोगों ने दुआएं की। गली-मोहल्लों में यज्ञ-हवन हुए। तब मैंने लिखा- आपकी दुआओं से ही मैं जिंदा हूं, /वरना मैं धरती का एक छोटा परिंदा हूं। /कभी ऊंचा उड़ने की ख्वाइश की नहीं मैंने, /काम अधूरे छोड़कर चला जाता। ये सोचकर ही मैं शर्मिंदा होता।
सिलेंडर लेकर सचिवालय जाना?
दरअसल, मैं डिस्चार्ज तो हो गया था, लेकिन मेरी ऑक्सीजन सेटल नहीं हुई थी। फिर भी मैं एक महीने अपने सेक्रेटेरिएट सिलेंडर लेकर गया। एक सिलेंडर लेकर काम करने जाता। एक छोटा सिलेंडर गाड़ी में होता। हां, एक बार सिलेंडर के साथ गिर गया। पीजीआई में एडमिट हुआ। एक बार एम्स भी गया। फिर ठीक हो गया।
ट्रायल वैक्सीन लाइव?
जब ट्रायल के लिए वैक्सीन पीजाआई रोहतक आई तो मैंने पूछा कितने टेस्ट हुए। वे बोले, कोई करा नहीं रहा। जिसे कहा उसने दफ्तर आना बंद कर दिया। मैंने कहा कि आप मेरे लगाओ। उसको लाइव चलाएंगे। कुछ चैनल जिनमें आज तक व कुछ लोकल चैनल थे, आए भी।

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