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बलिहारी जाऊं इस बागीपन पर!

09:02 AM Sep 18, 2024 IST

केदार शर्मा

हे भरतार! आप बागी हो गए हो यह सुनकर मेरा दिल भी बाग-बाग हो गया है। टिकट के प्रति आपकी इस निष्ठा पर यह पुख्तार मोहर लग गई है। यह टिकट ही आपके इधर से सरककर सरकार में जाने का पुल था। जब पुल ही टूट गया तो आप इस पार्टी में रहकर क्या करोगे? बागी बनकर आपने यह सिद्ध कर दिया कि टिकट का मौका आप भले ही चूक गए हो पर अभी चुके नहीं हो। इस टिकट के लिए आपने क्या-क्या नहीं किया? हर वार, त्योहार और पर्व पर, हर चौराहे और बाजार में, विशाल होर्डिंग्स और समाचारपत्रों के विज्ञापनों पर सवार होकर मुस्कुराते हुए जन-जन को बधाई दी। हर राजनीतिक कार्यक्रम में पार्टी के बड़े नेताओं के साथ मंच पर आगे-पीछे, दाएं-बाएं घूमते दिखाई देने लगे थे। पहचान बनाने के इन प्रयासों पर पानी तब फिर गया, जब टिकट किसी ओर को मिल गया। दिल आपका पूरी तरह से हिल गया।
परंतु तभी आप राख झाड़कर फिनिक्स पक्षी की भांति उठ बैठे और घोषणा कर दी कि हम अकेले दम पर चुनाव लड़ेंगे। यदि आप बेटिकट होकर चुपचाप घर बैठ जाते तो मैं आपको कभी माफ नहीं करती। आज इस बगावत का करिश्मा है कि दरबान से लेकर आलाकमान तक आपको मनाने में लगे हैं। हो सकता है आपकी झोली में कोई वजन रखकर गोदभराई कर दे तो मान जाना कि भागते भूत की लंगोटी तो मिली। वैसे बागी बनकर आपने अनेक संभावनाओं को जन्म दे दिया है। यदि आपके और टिकट के बीच में आया उम्मीदवार हार गया तो वैसे भी आपकी उपादेयता सिद्ध हो जाएगी। यदि आप जीत गए और किसी भी पार्टी को सरकार बनाने जितना बहुमत नहीं मिला तो आपके तो वारे-न्यारे ही समझो। उस दिन आपकी असली कीमत सबको पता चल जाएगी कि आपमें सही समय पर सही बागी बनने का हुनर मौजूद है।
आप तो ऐसे हुनर में कई बार बाजी मार चुके हो। याद करो जब विवाह के बाद प्रथम बार मुझे लिवा लाने के लिए आप आए थे और पिताजी ने मना कर दिया था कि अभी नहीं भेजेंगे। तब आप बागी होकर वहीं बैठ गए थे। पिताजी को हार माननी पड़ी थी और कहा था-‘यही एक शख्स मेरी बेटी से बराबर की टक्कर ले सकता है।’ बाद में मेरे सामने तो आप उन्नीस ही साबित हुए पर अब चुनावी टक्कर में आपको इक्कीस ही रहना है।
आपको जनता को दिखा देना है कि आपका यह बागीपन तो एक ट्रेलर है अगर वोट देकर दरबार में भेज दिया तो असली फिल्म भी देखने को मिलेगी। हे भरतार! आप दरबार के अनुशासन की परपंरा में नए-नए कीर्तिमान जोड़ सकते हैं। बार-बार वाकआउट करना, ऐसा शोरगुल बरपाना कि विरोधियों की एक बात सुनाई नहीं पड़े और सभाध्यक्ष का सिंहासन हिल जाए।
मैं तो बलिहारी जाऊं इस बागीपन पर!
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