अब गुड्डी जैसी नहीं रही : जया
दीप भट्ट
अभिनेत्री जया भादुड़ी यानी जया बच्चन का अभिनय अपने कैरियर की सभी शुरुआती फिल्मों जैसे गुड्डी, अभिमान, मिली, जंजीर और शोले में प्रभावित करता है। खासकर गुड्डी में उनका चुलबुलापन और शोख मिजाजी। बेशक शोले में किरदार गंभीर रहा। लोकसभा चुनाव के दौरान, उत्तर प्रदेश स्थित पंतनगर एयरपोर्ट पर उनके अभिनय कैरियर समेत हिन्दी सिनेमा के लंबे सफर बारे में एक्ट्रेस जया भादुड़ी से बातचीत हुई।
क्राउड शॉट्स से शुरुआत
बातचीत में जया भादुड़ी ने बताया, ‘मैं बारह-तेरह बरस की थी, तब कलकत्ता अपने पिता के साथ गई थी। मेरे पिता तरुण कुमार भादुड़ी के कई मित्र बंगाली फिल्मों की दुनिया से जुड़े थे। तभी एक बार हम जगन्नाथपुरी गये तो वहां समुद्रतट पर घूम रहे थे। वहां चल रही एक फिल्म की शूटिंग देखने पहुंच गए। डायरेक्टर तपन सिन्हा की कोई फिल्म थी। उन्हें अपनी फिल्म के लिए क्राउड के कुछ शॉट्स चाहिए थे। मैं बीच पर घूम रही थी, तो मेरे भी कुछ शॉट्स ले लिए गए। बाद में मुझे बताया कि तुम तो फिल्मों में काम कर सकती हो।’
सत्यजीत रे की फिल्म में मिला पहला रोल
जया भादुड़ी ने आगे बताया, ‘पुरी से हम सब कलकत्ता वापस आ गए। फिल्म यूनिट के कई लोग हमारे साथ थे जिनमें पापुलर कॉमेडियन राबिन घोष भी थे। वे मुझे सत्यजीत रे से मिलाने ले गये। उसके बहुत दिन बाद, एक दिन पिताजी ने पूछा, सत्यजीत रे अपनी फिल्म ‘महानगर’ में तुमको लेना चाहते हैं। तुम काम करोगी? मैं इच्छुक नहीं थी। मैंने जवाब दे दिया कि मेरे स्कूल में सब क्या कहेंगे। और वहां तो डांस भी करना पड़ेगा। पिताजी ने ऐसा बुरा भी नहीं माना। लेकिन यह भी था कि सत्यजीत जैसी हस्ती कुछ कह रही है। पिताजी ने कहा, कलकत्ता चलो। पसंद आए तो करना, नहीं तो छोड़ देना। इस तरह, मैं फिल्म में काम करने लग गई। मैं हीरो की बहन का रोल कर रही थी। थोड़ी नर्वस हुई हूंगी, ऐसा मुझे लगता है। इतना मुझे याद है कि मैंने कहा था-मेरी तस्वीर किसी को मत दिखाइएगा, और अखबार में भी नहीं दें।’
फिल्में देखने का जुनून
बातचीत की अगली कड़ी में जया भादुड़ी बताती हैं, ‘एक बार फिल्म ‘महानगर’ में काम कर लेने के बाद भी, अभिनेत्री बनने की कोई इच्छा मेरे मन में भी नहीं रही थी। लेकिन इसके बाद मेरी फिल्में देखने में रुचि इस कदर बढ़ी कि उसे जुनून ही कहेंगे। उस समय तक मैं काफी हिन्दी फिल्में देख चुकी थी। इंग्लिश फिल्में भी जितनी वहां आती थीं, देख लेती थी। इसलिए फिल्मों के बारे में जानकारी पहले की बनिस्बत ज्यादा हो गई थी।’
हृषिदा ने ‘गुड्डी’ में दिया मौका
जया भादुड़ी के अनुसार, ‘कुछ समय के बाद जब अभिनय का मन बना लिया तो पुणे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट से प्रशिक्षण लिया। वहां मेरी एक फिल्म हृषिदा ने देखी तो उन्होंने मुझे ‘गुड्डी’ के लिए कास्ट किया। इस फिल्म को करने में मैंने बहुत एंजॉय किया। मैं बिल्कुल गुड्डी जैसी थी, एकदम चुलबुली, शोख और मजाक करने वाली, पर अब वैसी नहीं रही। हालांकि मेरी मूल फितरत आज भी वही है, पर गंभीर हो गई हूं।’
सभी निर्देशकों संग काम एंजॉय किया
वे आगे बताती हैं, ‘जहां तक मेरे जमाने के निर्देशकों की बात है तो मैंने सभी के साथ एंजॉय किया। हृषिदा के साथ जितना एंजॉय किया, उतना ही करन जौहर जैसे नए निर्देशकों के साथ भी। मुझे अपने दौर में तनूजा बहुत पसंद थी, पर जितना क्रेडिट उसे मिलना चाहिए था, उतना नहीं मिला। उसे मैं बहुत समर्थ अभिनेत्री मानती हूं। जहां तक नूतन, मीना कुमारी और आशा पारेख की बात है तो इन सबको तो काफी फेम मिला।’
अमिताभ के एक एक्टर के तौर पर विश्लेषण के सवाल पर जया ने कहा, मैं उनका क्या विश्लेषण करूंगी। लोग उनकी फिल्म दीवार की बहुत चर्चा करते हैं, पर मुझे उनकी हृषिदा के निर्देशन में जितनी भी फिल्में बनीं, बहुत अजीज हैं। चाहे वो अभिमान हो या मिली, चुपके-चुपके या आनंद, सभी तो बेहतरीन फिल्में थीं। - फोटो लेखक