कैसे सुधरेगा राजनीतिक वातावरण
जन संसद की राय है कि चुनावों के दौरान नेताओं का विषैला प्रचार उनकी रीतियों-नीतियों की विफलता का परिचायक है। आखिर देश के विकास और भविष्य की सकारात्मक योजनाओं को लेकर चुनाव प्रचार क्यों नहीं होता?
पुरस्कृत पत्र
विकास की बात हो
जैसे-जैसे चुनाव चरम सीमा पर पहुंच रहा है, देश के सभी राजनीतिक दल शिष्टाचार को भूलकर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। लोकतंत्र को खतरा, संविधान परिवर्तन, आरक्षण व्यवस्था को लेकर भय और चुनाव आयोग से लेकर ईवीएम पर संदेह का प्रचार किया जा रहा है। सरकार देश को विकास मार्ग पर ले जाकर नागरिकों की जीवनशैली को प्रभावित करती है। लेकिन यही राजनीतिक दल आखिर में धर्म, जाति व संप्रदाय के नाम पर वोट की अपील करते हैं। लोकतंत्र में विकास के नाम पर वोट मांगने चाहिए। सभी राजनीतिक दलों को अपने किए हुए कार्यों का लेखा-जोखा प्रस्तुत कर भविष्य का रोडमैप तैयार कर जनता के बीच जाना चाहिए।
सोहन लाल गौड़, बाहमनीवाला, कैथल
मतदाता विरोध करें
आम चुनाव निर्णायक मोड़ की तरफ बढ़ रहा है लेकिन राजनीतिक कटुता व आरोप-प्रत्यारोप तेज होते जा रहे हैं। चुनाव जनतंत्र का उत्सव ही नहीं होते इसके प्राण वायु भी होते हैं। मगर इस प्राण वायु में प्रचार के घटते स्तर के कारण ज़हर घुलता जा रहा है। चुनाव प्रचार की भाषा का स्तर इस कदर गिरता जा रहा है कि देश का आम नागरिक स्वयं को ठगा-सा महसूस कर रहा है। घटते स्तर के कारण चुनाव के असली मुद्दे उपेक्षित हैं। चुनाव आयोग मूकदर्शक बना हुआ है। चुनाव प्रचार का घटिया स्तर हमारे मीडिया की करनी पर भी सवाल उठाता है। इस घटिया राजनीति का विरोध मतदाता को ही करना होगा।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
अच्छा व्यवहार करें
देश में आम चुनाव इस समय एक अहम पड़ाव पर हैं। सभी राजनीतिक दलों के शीर्ष नेता चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं। इस दौरान आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है जिस कारण देश में राजनीतिक माहौल विषैला होने से देश के बच्चों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। दलबदल, आरोप-प्रत्यारोप व चरित्र हनन के प्रयास जैसी घटनाएं बच्चों के दिलों में नेताओं की छवि अच्छी नहीं बनने देती। देश का राजनीतिक वातावरण सुधारने के लिए जरूरी है कि सभी दलों के नेता आपस में तथा जनता के साथ संवाद के दौरान अपनी भाषा पर नियंत्रण रखते हुए अच्छा व्यवहार करें।
सतीश शर्मा माजरा, कैथल
जागने का वक्त
कुछ साल पहले देश में शक्तिविहीन चुनाव आयोग को पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएन शेषन ने जो ताकत दी थी उसके परिणामस्वरूप चुनाव के समय देश के राजनीतिक वातावरण में काफी सुधार हुआ था। लेकिन उनके बाद सत्तालोलुप सरकारों ने चुनाव आयोग के पंख ही काट दिए। इसके अतिरिक्त वोटर भी अपने वोट का प्रयोग सोच-विचार करके सही तरीके से नहीं करता। जनता को उस दल अथवा गठबंधन को बहुमत देना चाहिए जो देश के लोकतंत्र एवं संविधान तथा संवैधानिक संस्थाओं की रक्षा, भ्रष्टाचार मुक्त सामाजिक सुरक्षा तथा युवा प्रतिभाओं को सम्मानजनक स्थान दे सके।
एमएल शर्मा, कुरुक्षेत्र
विपक्ष की जवाबदेही
लोकसभा चुनावों के चरण जैसे-जैसे खत्म होते जा रहे हैं वैसे-वैसे राजनीतिक पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप, चरित्र-हनन, मिथ्या भाषण और धर्म को लेकर अनर्गल बातें कर रहे हैं। व्यक्तिगत आरोपों के बजाय राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस होनी चाहिए। आज की जनता जागरूक है वो हर कसौटी पर परख कर ही नेता चुनेगी। इसीलिए महंगाई, बेरोजगारी, विकास आदि मुद्दों पर विपक्ष को एक सशक्त नेतृत्व का रोल अदा करना चाहिए। जिससे लोकतंत्र की विजय के साथ-साथ तानाशाही रवैये पर रोक लग सके।
भगवानदास छारिया, इंदौर
वास्तविक लोकतंत्र जरूरी
भाषा की लुप्त होती मर्यादा, गरिमा विहीन विमर्श, दल-बदल, आरोप-प्रत्यारोप और चरित्र-हनन की घटनाओं को देखते हुए आसानी से कहा जा सकता है कि भारतीय राजनीति भयावह स्तर तक प्रदूषित हो चुकी है। सत्तापक्ष और विपक्षी गठबंधन ने राजनीतिक शुचिता को तिलांजलि दे दी है। आम जनता को बुरी तरह से हाशिए पर धकेल दिया गया है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि देश का राजनीतिक वातावरण कैसे सुधरेगा? इस जटिल समस्या को सिर्फ कानून की सख़्ती के सहारे हल नहीं किया जा सकता। राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र बहाल करके इस समस्या के समाधान की ओर बढ़ा जा सकता है।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल