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कैसी है हवा मगर किसकी है हवा

07:58 AM Apr 06, 2024 IST

सहीराम

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चुनावों में हवा का बड़ा महत्व होता है जी। वैसे तो हवा का महत्व हमेशा ही होता है। हवा चलती रहे तो अच्छा रहता है। घुटन नहीं होती। सांस लेने में तकलीफ नहीं होती। सर्दियों में हवा न चले तो स्मॉग छा जाता है। फॉग रोमांटिक हो सकता है, पर स्मॉग भयावह होता है। हवा ज़हरीली हो जाती है। लोग मास्क पहनने लगते हैं। मास्क दुनिया को कोरोना की देन नहीं हैं, मास्क दुनिया को ज़हरीली हवा की देन हैं। लोग बच्चों को स्कूल भेजने से भी डरने लगते हैं। दिल्ली और एनसीआर के इलाके में सर्दियों में फॉग नहीं होता, स्मॉग होता है। हवा अक्सर ज़हरीली हो जाती है। इसका दोष अक्सर किसानों के पराली जलाने पर मढ़ दिया जाता है। न ऑटोमोबाइल की धुआं को कोई जिम्मेदार ठहराता है और न ही कारखाने की धुआं को। हवा चल जाए, तो हवा साफ हो जाती है, लेकिन उससे सर्दी बढ़ने का खतरा होता है। सर्दी की हवा को शीत लहर कहा जाता है। एकदम बर्फीली होती है। फिर खबरें छपने लगती हैं कि शीत लहर से दिल्ली में इतने मरे और यूपी, बिहार में इतने मरे। गर्मियों में इस इलाके में हवा गर्म हो जाती है। एक जमाना था, जब आंधियां भी चलती थीं, अब नहीं चलती। अब तो लू चलती है। गर्म हवा माने लू। लू से लोगों के मरने की खबरें भी अखबारों में खूब पढ़ने को मिलती हैं। टेलीविजन चैनलों को न शीत लहर से कुछ लेना, न लू से, वे अपनी ही हवा में रहते हैं। लोगों का मानना है कि वह भी ज़हरीली ही होती है।
खैर जी, चुनावों में भी हवा का बड़ा महत्व होता है। चुनावों में कई बार आंधी भी चलने लगती है। लेकिन कई बार हवा भी नहीं चलती। वैसे तो लोग हालचाल भी ऐसे ही पूछते हैं-और कैसी हवा तवा है? कुछ लोग वैसे ही हवा में रहते हैं। नेताओं के बारे में तो अक्सर ही कहा जाता है कि वे हवा में ही रहते हैं। इसका मतलब हवाई जहाज में उड़ान से नहीं है। इसके बावजूद नेताओं को हवा की असली परख होती है। कुछ नेता तो हवा की परख करके ही मौसम विज्ञानी हो गए। उन्होंने इस कहावत को पूरी शिद्दत से अपने जीवन में उतारा कि जैसी बहे बयार पीठ तब तैसी दीजे। बयार माने हवा। फिर भी चुनाव आता है तो हवा में सबकी ही रुचि बढ़ जाती है। क्या अखबार वाले और क्या टीवी वाले सब हवा देखने लगते हैं। सर्वे करने वालों से लेकर सोशल मीडिया वाले तक सब हवा देखने लगते हैं। कई बार जब हवा का पता नहीं चलता तो लोग अंडर करेंट देखने लगते हैं। अंडर करेंट वैसे दिखता नहीं है, फिर भी लोग देखने की कोशिश करते रहते हैं। वैसे ही जैसे लोग अपने चुनावी इरादों की भनक नहीं लगने देते। फिर लोग कोशिश करते हैं कि देखें हवा कैसी है।

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