मतवाले का क्या भरोसा किस पर बरसे
मुकेश राठौर
एक समय था जब लोग हवा का रुख देखकर मौसम की भविष्यवाणी कर देते थे। उड़ते पंछियों को देख बता देते थे कि ये किस डाल पर जाकर बैठेंगे और पशुओं की मुखमुद्रा देखकर उनके मरखने या कटखने की मुहर लगा देते थे। दरअसल, वह अनुमानों का वक्त था, तब कोई ऐसी तकनीक विकसित नहीं हुई थी कि किसी के कार्य और व्यवहार के बारे में एक्जेक्ट बता दिया जाए। चुनांचे लोग अनुमानों के आधार पर घोषणाएं किया करते थे जिसे धूल में लट्ठ चलाना भी कहा गया, फिर भी लट्ठ में दम था।
खुश होइए कि यह विज्ञान का युग है। अब समय देखने के लिए आपको रेत घड़ी या अपनी परछाई देखने की जरूरत नहीं। अब आपके हाथ स्मार्ट वॉच है जो आपको यहां तक बता देती है कि सुबह से अब तक आप कितने कदम चले, कितनी सांसें लीं और कितने गिलास पानी पिया तो फिर मौसम और चुनाव परिणामों की भविष्यवाणी करना कोई बड़ी बात नहीं। मौसम की भविष्यवाणी हेतु बाकायदा सरकार का मौसम विभाग कार्यरत है, जो कहां कितने बादल बरसेंगे, कहां कितनी और किसकी आंधी चलेगी, बताता भी रहता है। हां, चुनाव परिणाम पूर्व किसकी कितनी सीटें आएंगी, इस हेतु कोई अधिकृत विभाग अभी नहीं बना। अलबत्ता टीवी चैनलों और स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा यह कार्य जरूर किया जाने लगा है। अच्छा भी है। खुशी आने से पहले खुश हो लेना कोई गुनाह तो नहीं।
मगर होता यह है कि बेचारा मौसम विभाग जब भी कहता है कि कल फलां-फलां जिलों में भारी से भारी वर्षा होगी, वहां मौसम खुश्क निकल जाता है और जिधर मौसम साफ रहने की घोषणा करता, उधर बेरहम बदरा बरस जाते हैं। बादलों का यह रवैया गलत है। अब बेचारे मौसम वैज्ञानिक बादलों तक पहुंचने से तो रहे, जैसे टीवी चैनल वाले जा पहुंचते हैं, जो बता दें कि हमारा सैंपल साइज चार लाख सड़सठ हजार नौ सौ चौरासी होकर बादलों से किए गए सर्वे के आधार पर उनसे पूछकर उनके बरसने की घोषणा की थी।
हरियाणा और जम्मू-कश्मीर चुनाव संपन्न होते ही बिना कोई मिनट गंवाए टीवी चैनलों ने चीख-चीखकर कहा था कि फलां राज्य में फलां पार्टी स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बना रही है। अला को इतनी और फलां को इतनी सीटें आ रही हैं। बेचारे दो दिन खुश भी नहीं रह पाए और सचमुच के चुनावों परिणामों ने उनके एग्जिट पोल की पोल खोलकर रख दी। क्या करते पर्याप्त समय ही नहीं मिला, पोल को कसकर बांधने का। बेचारे खुद को ठगे से महसूस कर रहे हैं। दुखी तो पहले से दुखी लड्डू भी हैं जो एडवांस में सज-धजकर बैठे थे। अब गाते हुए सुनाई दे रहे हैं ‘किसका रस्ता देखें, ये दिल ये सौदाई।’
सूरत-ए-हाल देखकर तो यही लगता है ‘मतवाले’ बादलों का कोई भरोसा नहीं, कब किस पर बरस जाएं और कब, कौन तरस जाए।