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पाक सियासत में हिंदू नारी से आशाएं

06:37 AM Jan 19, 2024 IST

अरुण नैथानी

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यूं तो अक्सर पाकिस्तान से हिंदू अल्पसंख्यक लड़कियों के अपहरण और धर्म परिवर्तन की ही खबरें आती हैं। लेकिन पिछले दिनों एक अच्छी खबर आई कि पहली बार किसी अल्पसंख्यक हिंदू बेटी को उत्तर पूर्वी खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की एक सीट से चुनाव लड़ने का मौका मिला है। सामान्य सीट से लड़ने वाली सवीरा पाक की पहली हिंदू महिला हैं। एक महिला का चुनाव लड़ना इस पिछड़े इलाके में अचरज जैसा है। ऐसा इलाका जहां महिलाएं कपड़ों से लिपटी ही पुरुषों के साथ घर से बाहर निकल सकती हैं। इतना ही नहीं, कई महिलाओं को वोट डालने का भी मौका नहीं मिलता। ऐसे इलाके में सवीरा घर-घर जाकर वोट के लिये संपर्क साध रही हैं। दरअसल, सवीरा को पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने बूनेर सीट से टिकट दिया है। आज गुमनाम बेनूर-सा बूनेर पूरे पाकिस्तान ही नहीं पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना हुआ है।
दरअसल, कुछ समय पूर्व तक बूनेर का इलाका पाक सेना व सुरक्षा बलों की संयुक्त कार्रवाई से चर्चा में आया था। दरअसल, इस सदी के पहले दशक में चरमपंथी संगठन तहरीक-ए-तालिबान ने स्वात घाटी पर कब्जा कर लिया था। कालांतर तालिबान ने अपनी सीमा का विस्तार बूनेर तक कर लिया था। कई जगह कब्जा करके अपनी पोस्ट बना ली थी। जिसे खाली कराने के लिये सेना ने बूनेर में ऑपरेशन ब्लैक थंडरस्टॉर्म चलाया था। जो मीडिया की सुर्खियां बना था। लेकिन अब यह छोटा शहर सवीरा प्रकाश की ख्याति से चर्चाओं में है।
वास्तव में स्वात घाटी के निकट स्थित बूनेर पश्तून बहुल इलाका है। पाकिस्तान की राजधानी से करीब सौ किलोमीटर दूर स्थित बूनेर कभी स्वात रियासत का हिस्सा था। सवीरा अब खुद को भी पख्तून संस्कृति का हिस्सा मानती है। जिसकी विशिष्ट सांस्कृतिक परंपराएं और रिवाज हैं। वह कहती है कि यह एक समावेशी समाज है जिसके चलते उनके परिवार को कभी किसी तरह के भेदभाव का शिकार नहीं होना पड़ा। जहां तक राजनीति में आने का सवाल है तो उन्हें घर में राजनीतिक रूप से जागरूकता का वातावरण मिला है। उनके पिता इलाके में एक चिकित्सक व समाजसेवी के रूप में पहचान रखते हैं। पिता सामाजिक कार्यों में तो संलग्न रहे ही हैं, साथ ही सक्रिय राजनीति में भी रहे हैं। वे पिछले तीन दशक से पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी में सक्रिय भूमिका निभाते रहे हैं।
यूं तो सवीरा पेशे से एक डॉक्टर हैं और सरकारी अस्पताल में सेवाएं दे रही हैं। लेकिन यह इलाका सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा हुआ है। उन्हें लगता है कि इस पिछड़े और आधी दुनिया के अंधेरे वाले समाज में वह सिर्फ चिकित्सक की भूमिका से सामाजिक बदलाव नहीं ला सकती है। वह कहती है कि इस इलाके के सामाजिक उत्थान के मकसद से वह राजनीति में आ रही है। उनका मानना है कि जब उन्होंने मेडिकल की पढ़ाई शुरू की तो मकसद समाज के वंचित व कमजोर वर्गों के हितों का ही ध्यान था। राजनीति में आने का मकसद भी मानवीय सरोकार ही हैं। वह कहती हैं कि मुझे लगता था कि एक डॉक्टर की भूमिका में मैं वह बदलाव नहीं कर सकती, जो व्यापक सामाजिक बदलावों का वाहक बन सके। वह चाहती है कि इन लक्ष्यों के लिये हमें अपने सिस्टम में सुधार लाने की जरूरत है, जो राजनीतिक ताकत के जरिये ही हासिल किया जा सकता है।
दरअसल, सवीरा का भरोसा है कि क्षेत्र का प्रतिनिधि बनकर वह आधी दुनिया के वाजिब हकों को दिलाने में सक्षम होगी। वह क्षेत्र में शिक्षा, स्वास्थ्य व पर्यावरण से जुड़े मुद्दों का वे समाधान करना चाहती हैं। दरअसल, इस पिछड़े इलाके में लड़कियों के आगे बढ़ने के मौके बहुत कम हैं। पहले तो उन्हें पढ़ने का अवसर ही नहीं मिलता। एक तो आर्थिक कमजोरी और दूसरा मानसिक गरीबी कि लड़की घर से बाहर न निकले। सवीरा इस लीक को तोड़ना चाहती है। सवीरा चाहती हैं कि लड़के-लड़कियां मदरसों से बाहर निकलकर आधुनिक शिक्षा ग्रहण कर सकें। ताकि मां-बाप लड़कियों को घरों में काम करने के लिये भेजने के बजाय स्कूल भेजें।
वैसे सवीरा की आगे की राह आसान भी नहीं है। वह लोगों से वोट मांगने नुक्कड़ सभाओं और बैठकों में जाती है तो असहज हो जाती है। दरअसल, इस पिछड़े इलाके में सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी नगण्य ही है। हालांकि कई सभाओं में वह अकेली महिला होने पर अजीब अनुभव करती है। लेकिन स्थानीय लोग इस परिवार के समाज के लिये योगदान के चलते सकारात्मक प्रतिसाद दे रहे हैं। राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से इतर लोग उन्हें समर्थन देने की बात कर रहे हैं। उनके पिता का रसूख भी उनके काम आ रहा है। जिससे उनका मनोबल बढ़ा भी है। वह कहती है कि हम इसी मिट्टी में पले-बढ़े हैं। हमारे पूर्वजों ने विभाजन के बाद भारत जाने के बजाय इस धरती में रहना चुना। यहां समावेशी समाज ने हमें स्वीकार किया। वही लोग मेरे चुनाव लड़ने से खासे उत्साहित हैं।
बहरहाल, अब सवीरा चुनाव को लेकर उत्साहित हैं। जैसे-जैसे मतदान वाला महीना फरवरी करीब आ रहा है, सवीरा का विश्वास बढ़ रहा है। पहले चुनाव लड़ने को लेकर मन में कई तरह की आशंकाएं थीं। कई तरह के भय थे। लेकिन नामांकन कराने के बाद उसका डर कम हुआ है। उनके पिता सामाजिक जीवन और पीपुल्स पार्टी में तीन दशक से सक्रिय हैं। अन्य दलों के लोग भी पिता के कान में कह जाते हैं, चिंता मत करो बिटिया को वोट देंगे।

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