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गंभीर रोगों के इलाज में मददगार शोध को सम्मान

07:09 AM Oct 26, 2024 IST
डॉ. शशांक द्विवेदी

माइक्रो आरएनए की खोज और ट्रांसक्रिप्शन के बाद जीन एक्प्रेशन को रेगुलेट करने में उनकी भूमिका के लिए अमेरिका के दो विज्ञानियों विक्टर एंब्रोस और गैरी रुवकुन को संयुक्त रूप से साल 2024 का चिकित्सा का नोबेल पुरस्कार मिलेगा। नोबेल असेंबली ने कहा कि उनकी खोज जीवों के विकास और कार्य करने के तरीके के लिए मौलिक रूप से महत्वपूर्ण साबित हो रही है। माइक्रो आरएनए जेनेटिक मैटेरियल आरएनए का सूक्ष्म हिस्सा होता है जो कोशिका के स्तर पर जीन की कार्यप्रणाली को बदलने देता है। माइक्रो आरएनए की जीन की गतिविधि को नियंत्रित करने और जीवों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। दोनों विज्ञानियों की खोज ने जीन को नियंत्रित करने के नए सिद्धांत के बारे में बताया है। उनके शोध से यह समझने में मदद मिली कि शरीर में कोशिकाएं कैसे काम करती हैं। एंब्रोस ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में माइक्रो आरएनए को लेकर शोध किया। वह यूनिवर्सिटी आफ मैसाचुसेट्स मेडिकल स्कूल में नेचुरल साइंस के प्रोफेसर हैं, जबकि रुवकुन ने यह शोध मैसाचुसेट्स जनरल हास्पिटल और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में किया। पिछले साल कैटालिन कारिको और ड्रू वीसमैन को चिकित्सा का नोबेल दिया गया था। इन्हें न्यूक्लियोसाइड बेस संशोधनों से संबंधित उनकी खोजों के लिए यह सम्मान दिया गया था। इस खोज की वजह से कोरोनावायरस के खिलाफ प्रभावी एमआरएनए टीकों के विकास में मदद मिली थी।
नोबेल दुनिया का सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है, जिसके तहत विजेताओं को एक स्वर्ण पदक, प्रमाणपत्र और करीब एक करोड़ स्वीडिश क्रोना यानी करीब 8.3 करोड़ रुपए की राशि दी जाती है।
माइक्रो आरएनए एक छोटा अणु है जो जीन गतिविधि को रेगुलेट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भले ही हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं में एक जैसे जीन होते हैं, लेकिन विभिन्न प्रकार की कोशिकाएं, जैसे मांसपेशी और तंत्रिका कोशिकाएं, अलग-अलग कार्य करती हैं। यह जीन रेगुलेशन के कारण संभव है, जो कोशिकाओं को केवल उन जीनों को ‘चालू’ करने की अनुमति देता है जिनकी उन्हें आवश्यकता होती है। यह खोज जीवों के विकास और कार्य करने के तरीके को समझने के लिए मौलिक रूप से महत्वपूर्ण साबित हो रही है। माइक्रो आरएनए को लेकर एम्ब्रोस और रुवकुन की खोज ने इस विनियमन के होने का एक नया तरीका बताया है।
अमेरिकी विज्ञानी विक्टर एंब्रोस ने 1993 में पहला माइक्रो आरएनए खोजा था। जीवविज्ञानी गैरी ब्रूस रुवकुन ने दूसरे माइक्रो आरएनए एलईटी-7 की खोज की थी। उन्होंने पता लगाया कि विक्टर एंब्रोस द्वारा पहचाना गया पहला माइक्रो आरएनए लिन-4 आरएनए को कैसे नियंत्रित करता है। हमारे शरीर की हर कोशिका में लगभग 20,000 जीन होते हैं। ये जीन, प्रोटीन बनाने के लिए आवश्यक निर्देशों को एनकोड करते हैं। प्रोटीन हमारे शरीर के लिए बिल्डिंग ब्लॉक्स जैसे होते हैं। लेकिन हर कोशिका के काम करने का तरीका अलग होता है। जैसे मांसपेशी कोशिका और तंत्रिका कोशिका अलग-अलग काम करती हैं। इसलिए हर कोशिका को अलग तरह के प्रोटीन की जरूरत होती है। मतलब, हर कोशिका में कुछ खास जीन ही काम करते हैं। ये जीन, कोशिका के आसपास के वातावरण अनुसार बदलते रहते हैं।
जब कोई जीन काम करना शुरू करता है, तो उस जीन से एक नया अणु बनता है जिसे मैसेंजर आरएनए कहते हैं। यह आरएनए प्रोटीन बनाने के लिए कोशिका के एक हिस्से में जाता है। बहुत समय तक वैज्ञानिकों का मानना था कि जीन की गतिविधि मुख्य रूप से डीएनए से जुड़ने वाले विशेष प्रोटीन द्वारा नियमित होती है, जिन्हें ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर कहा जाता है। लेकिन विक्टर एंब्रोस और गैरी रुवकुन ने एक नई खोज की व पाया कि माइक्रो आरएनए नाम के बहुत छोटे अणु भी इस काम में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
जब ये दोनों वैज्ञानिक 1993 में एक सीरीज में लगातार लैब में प्रयोग कर रहे थे, तब इन्होंने एक छोटे से कीड़े, सी. एलिगेंस में, एक विशेष प्रकार के मोलिक्युल की खोज की। इस मोलिक्युल को उन्होंने लिन-4 नाम दिया। बाद में यही मोलिक्युल माइक्रो आरएनए कहलाया। इसी तरह साल 2000 में वैज्ञानिकों ने एक और माइक्रो आरएनए लेट-7 की खोज की। यह माइक्रो आरएनए न केवल सी. एलिगेंस में बल्कि सभी जानवरों में पाया जाता है। अब तक एक हजार से ज्यादा माइक्रो आरएनए खोजे जा चुके हैं।
इंपीरियल कालेज लंदन में मोलिक्युलर आंकोलाजी की लेक्चरर डॉ. क्लेयर फ्लेचर के अनुसार, इस शोध ने कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज के लिए विज्ञानियों के रास्ते खोल दिए हैं। माइक्रो आरएनए कोशिकाओं को नए प्रोटीन बनाने के लिए जेनेटिक निर्देश देता है। यह रोगों के उपचार के लिए दवाओं के विकास और बायोमार्कर के रूप में उपयोगी हो सकता है। त्वचा कैंसर के इलाज में माइक्रो आरएनए तकनीक किस तरह से मददगार हो सकती है, इस पर क्लीनिकल परीक्षण जारी हैं।
गुणसूत्रों में मौजूद जानकारी हमारे शरीर की सभी कोशिकाओं के लिए निर्देश पुस्तिका की तरह है। हर कोशिका में एक जैसे गुणसूत्र होते हैं, इसलिए उन सभी के पास निर्देशों का एक ही सेट होता है। लेकिन मांसपेशी और तंत्रिका कोशिकाओं जैसी विभिन्न प्रकार की कोशिकाएं एक-दूसरे से बहुत अलग होती हैं। यह मनुष्यों सहित दूसरे जीवों के लिए बेहद मायने रखता है। मानव शरीर में एक हजार से ज्यादा माइक्रो आरएनए होते हैं। ऐसे में उनकी खोज ने हमें जीवों के बढ़ने और काम करने के तरीके के बारे में एक नया पहलू समझने में मदद की है। 1901 के बाद से चिकित्सा के क्षेत्र में दिया जाने वाला यह 115वां नोबेल पुरस्कार है।

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लेखक विज्ञान विषयों के जानकार हैं।

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