पंजाब की सियासत में अमरेंद्र की सरगर्मी के मायने
ज्योति मल्होत्रा
वरिष्ठ भाजपा नेता कैप्टन अमरेंद्र सिंह की तुलना लेनिन या नेपोलियन से करना कुछ ज्यादा ही हो सकता है, उक्त दोनों के बारे में माना जाता है कि उन्होंने स्वीकार किया था कि वे नेता इसलिए बने क्योंकि मिले अवसर का पूरा लाभ उठाया था। साल 1917 में लंदन से सेंट पीटर्सबर्ग लौटने पर लेनिन ने कहा था कि सत्ता उन्हें सेंट पीटर्सबर्ग की सड़कों पर पड़ी मिली और उन्होंने तो महज उठाने का काम किया था। इसके बाद वह रूसी क्रांति हुई जिसने रूस और दुनिया के बड़े हिस्से की सूरत बदल दी थी। इससे लगभग सौ साल पहले, 1815 में, सेंट हेलेना में निर्वासन के दौरान नेपोलियन ने अपने करीबी विश्वासपात्र चार्ल्स ट्रिस्टन से कहा था, ‘मैंने किसी को गद्दी से नहीं उतारा। मुझे ताज़ गटर में पड़ा मिला। मैंने उसे उठाया और लोगों ने वह मेरे सिर पर रख दिया’।
यह स्पष्ट नहीं है कि पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) या फिर विपक्षी कांग्रेस या अकाली दल या भाजपा में से किसी को अपने कंधों पर इतिहास की जिम्मेदारी का अहसास है। बीते शुक्रवार की सुबह खन्ना मंडी में अपनी फसल की सरकारी खरीद किए जाने का सब्र से इंतजार कर रहे उम्रदराज किसानों से घिरे अमरेंद्र सिंह जब अपनी अंगुलियों के बीच से गुजार कर दानों का जायजा ले रहे थे तो उस वक्त खन्ना एशिया की सबसे बड़ी अनाज मंडी में लाखों क्विंटलों धान का अम्बार खुले में पड़ा था।
समय पर धान की खरीद न होने का किस्सा आज पंजाब में राजनीतिक संकट के केंद्र में है क्योंकि सूबे की खेती दो-फसलीय चक्र पर टिकी है। चूंकि जब धान की बुवाई, रोपाई जुलाई में हो रही थी तो उस समय लोकसभा चुनाव चल रहे थे और कटाई का वक्त आया तो अक्तूबर के शुरू में पंचायत चुनाव और आगामी नवंबर में जालंधर (पश्चिम) और चार अन्य विधानसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने जा रहे हैं। इसलिए राजनेताओं का इनमें लगातार उलझे रहना लाजिमी था।
इसके अलावा, पंजाब में सत्तारूढ़ आप आदमी पार्टी की सरकार अपने कार्यकाल का आधा रास्ता तय कर चुकी है, तो स्वाभाविक रूप से कुछ सुस्ती घर करने लगी है। बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की अफवाहें हैं। जहां मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अपनी नज़दीकी मंडली के लोगों को बदला है वहीं सूबे की गिरती वित्तीय स्थिति संभालने के लिए सलाहकारों को लाया जा रहा है।
और फिर फरवरी 2025 में दिल्ली में चुनाव होने हैं, जिसमें आप और भाजपा के बीच करो या मरो की लड़ाई होने की उम्मीद है। इसमें ज्यादा अक्ल लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी कि अरविंद केजरीवाल और उनकी मंडली नहीं चाहेगी कि पंजाब में कुछ भी ऐसा हो जिसके असर से दिल्ली की लड़ाई कमजोर पड़े। यही कारण है कि पंजाब में फिर जोर पकड़ रहे किसानों के विरोध प्रदर्शनों का इतना महत्व है, भले ही उनमें से कई इस चक्कर में अपना नुकसान करवाने के आदी लगते हैं– अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा। पिछले कई दिनों में, किसानों ने रेल पटरियों,सड़कों और राजमार्गों को धरना लगाकर अवरुद्ध किया है और राजनेताओं के घरों के सामने भी प्रदर्शन कर रहे हैं।
यहीं पर विडंबना है, और यही वजह है कि पंजाब में ‘आप’ का आधा कार्यकाल पूरा होने के वक्त, कहानी एक बार फिर से पलटने का खतरा है। जहां पंजाब के किसान अभी भी भाजपा को उन तीन कृषि कानूनों के लिए माफ करने के मूड में नहीं हैं, जो उसने 2020 में उन पर थोपने की कोशिश की थी - और वे भाजपा उम्मीदवारों को गांवों में प्रचार के लिए घुसने की अनुमति न देकर दंडित कर रहे हैं – वहीं यह भी सच है कि ‘आप’ पर भी उनका कोपभाजन बनने का खतरा मंडराने लगा है।
राजनीति, पूर्वानुमानित और उबाऊ, दोनों है। ‘आप’ सरकार भाजपा शासित केंद्र पर आरोप लगा रही कि वह पिछले साल के बचे धान भंडार को पंजाब से उठवाने से हील-हुज्जत कर रहा है, यही वजह है कि मंडियां और सड़कें धान से पटी हुई हैं, पंजाब सरकार का कहना है कि केंद्र ने मौजूदा फसल को उठवाने के लिए रोजाना 17 मालगाड़ियां चलाने का वादा किया था, लेकिन वे पर्याप्त नहीं आ रहीं। वहीं भाजपा ने अपनी प्रतिक्रिया में भगवंत मान पर झूठ बोलने का आरोप मढ़ा है।
बदतर कि धान खरीद को लेकर आप-भाजपा का आमना-सामना कई आसन्न संकटों के मद्देनजर है, जिनमें कुछ खुद के पैदा किए गए हैं। पंजाब के सबसे बड़े शहरों में नागरिक सुविधाएं बदहाल हैं - कूड़े के ढेर, अतिक्रमण, खुली सीवर लाइनें, अस्पतालों का बुरा हाल और सरकारी स्कूलों में स्कूली शिक्षकों की कमी पर द ट्रिब्यून में चल रही शृंखला निराशाजनक हाल का बखान करती है। कृषि में संकट जारी है, मामला चाहे जुर्माने या किसान के रिकॉर्ड में रेड एंट्री के बावजूद पराली जलाने के अड़ियलपन का हो या मुफ्त की बिजली देने पर राज्य के खजाने पर पड़ते भारी बोझ का हो या फिर निरंतर गिरते भू-जल स्तर का। हेरोइन की बढ़ती लत - आम बोलचाल की भाषा में 'चिट्टा' या 'सफेद पाउडर'–इसका कारोबार भारतीय और पाकिस्तानी एजेंटों के शातिर नेटवर्क द्वारा जारी है और इस काम में सीमापारीय ड्रोन बरते जा रहे हैं। सब्सिडी देने में राज्य के खजाने पर पड़ रहा 22,000 करोड़ रुपये का वित्तीय बोझ एक खुला रहस्य है, साथ ही इसको चुकाने में बढ़ती असमर्थता भी।
ढाई साल पहले, भगवंत मान ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया था और अकाली दल को फिर से संगठित होने और भाजपा को पनपने का मौका नहीं दिया। पंजाब के लोग शायद अभी भी भाजपा को वोट देने के लिए तैयार न हों, लेकिन पंजाब के चतुर राजनेता अच्छी तरह जानते हैं कि हर चुनाव में भाजपा के वोट बढ़ रहे हैं। इस बीच, सुखबीर बादल के नेतृत्व वाला अकाली दल या तो हिचक रहा है या फिर बढ़ती राजनीतिक शून्यता भरने के काबिल नहीं बचा। यह धारणा जोर पकड़ रही है कि ‘पंजाब बहुत सारे नशे में डूबा हुआ है’ और इसका नेतृत्व इससे निपटने में असमर्थ लग रहा है।
यही कारण है कि जब 82 वर्षीय अमरेंद्र सिंह ने खन्ना की अनाज मंडी पहुंचकर जब एक बार फिर से राजनीतिक हांडी में कड़छी चलाई, तो यह अभी भी मायने रखता है। हो सकता है कि वे फिर कभी मुख्यमंत्री न बन पाएं। उन्होंने हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में अपनी नई पार्टी के लिए प्रचार भी नहीं किया था। संभवतः कई गलत कामों के कथित दोषी भी हैं, जिनमें अपने अनेक वादों को पूरा न करना भी शामिल है।
लेकिन उनकी पूर्व पार्टी कांग्रेस और वर्तमान पार्टी भाजपा, दोनों में उनके सबसे बड़े आलोचक भी इस बात को स्वीकार करेंगे कि यह व्यक्ति अभी भी इस संकट को संबोधित करने को तैयार है, जो तेजी से राजनीतिक मायने अख्तियार कर रहा है।
सवाल यह है कि ‘आप’ सरकार इस बाबत क्या करने जा रही है?
लेखिका ‘द ट्रिब्यून’ की प्रधान संपादक हैं।