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मर्यादा से निभाएं माननीय अपना दायित्व

08:54 AM Feb 19, 2024 IST

सुरेश सेठ
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भारतीय इस बात पर गर्वित होते हैं कि भारत में दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। अभी हाल ही में 17वीं लोकसभा का सत्रावसान भी हो गया। इसके बाद देश में आम चुनाव होंगे और 18वीं लोकसभा अपना पदभार संभालेगी। बेशक पहली फरवरी को वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने देश का अंतरिम बजट पेश कर दिया लेकिन वहीं चौंकाने वाली घोषणाओं से परहेज किया गया। अब देश के जनमानस को जुलाई मास का इंतजार शिद्दत से रहेगा कि नई सरकार नया बजट क्या पेश करती है और इसके द्वारा भारत की विकास यात्रा कितनी द्रुत गति से हो पाती है।
वहीं देशभर में चुनावी समर तो शुरू हो ही गया है। विपक्षी कांग्रेस द्वारा भारत जोड़ो न्याय यात्रा निकाली जा रही है। वहां मोदी जी विकसित भारत संकल्प यात्रा निकाल रहे हैं। वे अपने कार्यों ‍व उपलब्धियों का लेखा-जोखा जनता के सामने रख रहे हैं। अभी संसद के बीते सत्र में मोदी सरकार के श्वेत पत्र को विपक्ष के स्याह पत्र के साथ पंजा लड़ाते हुए भी देखा गया। जहां राजग सरकार द्वारा प्रस्तुत श्वेत पत्र काे यह कहा गया था कि पिछली कांग्रेस सरकार की आर्थिक नीतियों ने जहां देश की अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया था, साथ ही यह भी दावा किया गया कि देश में जो तरक्की हुई वह मोदी सरकार की दो पारियों में हुई। जबकि स्याह पत्र में विपक्षी यह कहते रहे कि जो बीत गया, उसके तुलनात्मक अध्ययन में अपने पूर्वाग्रही निष्कर्षों को छोड़कर अगर सरकार देश को दरपेश महंगाई, बेकारी और बेरोजगारी की समस्या से जूझने का पत्र पेश करती तो शायद यह अधिक समीचीन होता। विपक्ष वास्तविकता को सामने लाने की बात करता रहा है।
इस बात को छोड़कर अगर हम लोकसभा के इस सत्र का आकलन करें तो लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला का कहना अतिशयोक्ति न माना जाएगा कि लोकसभा ने 97 फीसदी उत्पादकता के साथ काम किया है। लेकिन लोकसभा के लगभग सभी सत्र कोलाहल भरे और हंगामाखेज भी रहे। चिंतन, मनन और सार्थक विचारों का आदान-प्रदान तो नहीं हुआ लेकिन हर सत्र में सरकार ने अपनी बहुसंख्या के बल पर दरपेश विधेयक पास करवा लिए। संसद के आखिरी सत्र के आखिरी दिन मोदी जी ने बहुत कुछ साफ-साफ बातें कहीं। लोकसभा के कुल कामकाज को देखते हैं तो 221 विधेयक इसमें पास हुए नजर आए हैं।
निस्संदेह, ये लोकसभा नौजवान और शिक्षित लोकसभा थी। इसकी औसत आयु 54 वर्ष थी और इसके 400 सदस्य स्नातक थे। 207 सदस्य पहली बार चुनकर आए। संसद को नया संसद भवन मिला और मिलते ही संसद की सुरक्षा में चूक हो गई। आतंकी हमले की बरसी वाले दिन ही दो लोग लोकसभा में घुस आए। इस पर खूब हंगामा हुआ। वहीं 100 से ज्यादा सांसदों का निलंबन एक ऐतिहासिक घटना थी।
अब 18वीं लोकसभा गठित होगी। भारतीय लोकतंत्र के लिये शुभ इसी में है कि इसके माहौल, कामकाज और चुनकर आने वाले सदस्यों के दायित्व में बदलाव देखा जाए। अभी तक परंपरा रही है कि संसद का सत्र शुरू होने से पहले सभी पार्टियों की बैठक होती थी, जिसमें यह फैसला किया जाता कि फालतू का कोलाहल नहीं होगा। गंभीर विचार-विमर्श होगा और देश को विकास मार्ग पर चलने के लिए सही दिशा पकड़ने का सुभीता भी लोकसभा का सत्र देगा। लेकिन किसी भी सत्र में ऐसा न हो सका। कभी अडानी पर जांच की बात, कभी चीनी घुसपैठ का झंझट और कभी जातीय जनगणना को लेकर उठापटक होती रही। राम की महिमा के बारे में जो आखिरी दिन संसद के सत्र का विस्तार हुआ, वहां भी राजनीतिक उठापटक नजर आई।
आजकल संसद की कार्यवाही का लाइव प्रसारण होता है। सांसदों का यह व्यवहार और लोकसभा या राज्यसभा के स्पीकर द्वारा डांट-फटकार आम जनता को बहुत शोभनीय नहीं लगती। आखिरी दिन भी राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को भारत रत्न की घोषणाओं पर विपक्षी दलों की चीखो-पुकार के बारे में सख्त रुख अपनाना पड़ा।
इसीलिए अब जब अगले आम चुनावों के बाद 18वीं लोकसभा का गठन होगा तो कुछ बातों के बारे में सत्तापक्षी और विपक्षी सांसदों को सचेत होना पड़ेगा। पहली बात तो यह है कि देश के सामने खड़ी गंभीर समस्याओं पर गंभीर चर्चा कब होगी? नारेबाजी, विरोध, आंकड़ेबाजी और उनके मिथ्या होने के आरोप संसद की गरिमा को नहीं बढ़ाएंगे। राष्ट्रहित ही सर्वोपरि होना चाहिए। सांसद अपने-अपने दायित्व का निर्वाह करते हुए जनसमस्याओं पर चर्चा करेंगे। इसके अतिरिक्त आने वाले वर्षों के लिए भी मोदी जी ने नये सुधारों का संकल्प लिया। लोकसभा और राज्यसभा के सांसदों के व्यवहार में भी सुधार होने चाहिए। देश महत्वपूर्ण है व्यक्ति नहीं। जितनी जल्दी यह स्वीकार कर लिया जाए, उतना ही भारतीय संसद का माहौल लोकतंत्र के गौरव के अनुरूप हो जाएगा। यह लोकतंत्र के लिये शुभ होगा।

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