Historical Love Story : वो खूबसूरत रानी, जिन्होंने प्यार के लिए अपने ही पिता से की बगावत, सोने की मूर्ति को पहनाई थी वरमाला
चंडीगढ़ , 22 जनवरी (ट्रिन्यू)
Historical Love Story : पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता की प्रेम कहानी हर किसी को 'सच्चे प्यार' पर विश्वास करने के लिए मजबूर कर देगी। 12वीं सदी के राजाओं की इस महाकाव्य प्रेम कहानी को उनके दरबारी कवि चंद बरदाई ने अपनी महाकाव्य कविता पृथ्वीराज रासो में अमर कर दिया था।
पृथ्वीराज चौहान एक राजपूत राजा थे, जिन्होंने 12वीं सदी में उत्तर भारत में अजमेर और दिल्ली के राज्यों पर शासन किया था। उन्हें राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता था। उन्होंने अजमेर और दिल्ली की जुड़वां राजधानियों पर शासन किया। राजा के रूप में उन्होंने अपने क्षेत्रों का विस्तार करने के लिए कई अभियान चलाए और एक बहादुर और साहसी योद्धा के रूप में प्रसिद्ध हुए।
वहीं, संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी और पृथ्वीराज चौहान की तीन पत्नियों में से एक थी। पृथ्वीराज रासो के अनुसार, पृथ्वीराज और संयोगिता के बीच का प्रेम भारत के सबसे लोकप्रिय मध्ययुगीन प्रेमों में से एक है। किंवदंती है कि मुहम्मद गौरी ने दिल्ली पर 17 बार हमला किया और पृथ्वीराज चौहान और उनकी सेना के हाथों 16 बार पराजित हुआ।
साहस और वीरता की कहानी संयोगिता के कानों तक पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा लेकिन पृथ्वीराज से प्यार करने से पहले वह यह नहीं देख पाई कि दिल्ली और कन्नौज के बीच रिश्ते तनावपूर्ण थे। वह पृथ्वीराज का एक चित्र देखकर ही उनपर मोहित हो गई थी। वहीं, पृथ्वीराज भी संयोगिता का चित्र देख उन्हें दिल दे बैठे थे।
मगर, कन्नौज के राजा जयचंद्र पृथ्वीराज को पसंद नहीं करते थे। जयचंद्र और पृथ्वीराज के बीच दुश्मनी थी। तब जयचंद ने संयोगिता के स्वयंवर की योजना बनाई, जिसमें उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया। स्वयंवर के दिन जयचंद ने द्वारपाल के रूप में पृथ्वीराज की एक मूर्ति स्थापित की। जब पृथ्वीराज को स्वयंवर के बारे में पता चला तो वह वहां चोरी-छिपे पहुंच गए। माना जाता है कि स्वयंवर के दौरान संयोगिता सभी राजाओं और राजकुमारों को अनदेखा करते हुए पृथ्वीराज की सोने की मूर्ति के गले में माला डाली थी।
मगर, पृथ्वीराज मूर्ति के पीछे छिपे हुए थे। वह अचानक मूर्ति के पीछे से सामने आए और संयोगिता को अपनी बाहों में उठाकर दिल्ली ले आए। जब पृथ्वीराज संयोगिता के साथ कन्नौज से भाग निकले तब हजारों सैनिकों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी ताकि वह अपनी पत्नी संयोगिता को कन्नौज से सुरक्षित निकाल सकें।
जयचंद अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सका और उसने अफगान शासक गौरी से संधि कर ली, जिसने चौहान के हाथों 16 बार हार का स्वाद चखा था। राजपूत राजाओं के साथ संधि करके गौरी ने पृथ्वीराज पर हमला किया और इस बार वह युद्ध हार गया और गौरी ने उसे पकड़ लिया। मगर, पृथ्वीराज ने सुल्तान के सामने अपना सिर झुकाने से इंकार कर दिया। तब गौरी ने गर्म लोहे की सलाखों से उसे अंधा कर दिया।
चंद बरदाई की सलाह पर मुहम्मद गौरी ने तीरंदाजी का खेल घोषित किया। इस खेल में पृथ्वीराज भी भाग ले रहे थे। जब मुहम्मद गौरी ने अंधे राजा को तीर चलाने का आदेश दिया, तो पृथ्वीराज ने बरदाई के संकेतों के आधार पर गौरी के ऊपर तीर चला दिया और उसका निशाना चूक नहीं पाया। मुहम्मद गौरी मारा गया।