Hindu Mythology : भगवान शिव को कैसे प्राप्त हुआ तीसरा नेत्र, माता पार्वती को बताया था रहस्य
चंडीगढ़, 20 दिसंबर (ट्रिन्यू)
Hindu Mythology : हिंदू धर्म में पूजनीय भगवान शिव को सृष्ति का कर्ता-धर्ता कहा जाता है। नीला रंग, विषधारी, गले में नाग, मुंडमालाएं धारण किए हुए भगवान शिव के माथे पर चंद्रमा और केशों में गंगा भी विराजमान है। ऐसा माना जाता है कि भगवान भोलेनाथ जितनी आसानी से अपने भक्तों की भक्ति से प्रसन्न हो जाते हैं उतनी ही जल्दी पापियों पर क्रोधित भी हो जाते हैं।
कहा जाता है कि भगवान शिव की तीसरी आंख खुल जाए तो ब्रह्मांड में प्रलय आ जाता है। शिव को उनकी तीन आंखों के कारण "त्रिलोचन" के रूप में जाना जाता है। उनकी बाईं आंख चंद्रमा और दाईं आंख सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है। भगवान शिव को तीसरी आंख कैसे मिली, इस बारे में कई कहानियां हैं..
माता पार्वती का खेल
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान शिव ध्यान कर रहे थे तब माता पार्वती ने पीछे से आकर दोनों हाथों से उनकी आंखों को बंद कर दिया था। इससे पूरे संसार में अंधेरा छा गया। उस समय भगवान शिव ने अपनी दैवीय क्षमता का उपयोग करके अग्नि यानि ज्योतिपुंज उत्पन्न किया और माथे पर तीसरी आंख बनाई। जब माता पार्वती ने तीसरी आंख के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि अगर यह नहीं होती तो संसार में अंधेरा छा जाता।
कामदेव का ध्यान भंग करना
कथाओं के अनुसार, माता पार्वती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी लेकिन भोलेनाथ ध्यान में मग्न थे। तभी प्रेम और वासना के देवता कामदेव एक पेड़ के पीछे छिप गए और भगवान शिव के हृदय पर बाण चलाया। इससे भगवान वासना से विचलित हो गए और क्रोध में आकर अपनी तीसरी आंख खोलकर कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया।
कहा जाता है कि फिर कामदेव की पत्नी रति ने भगवान शिव की तपस्या की और पति को जीवनदान देने के लिए कहा। रति की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव को श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया।
माना जाता है कि भगवान शिव की तीसरी आंख की अवधारणा पूरे इतिहास में आध्यात्मिक और धार्मिक परंपराओं, जैसे ताओवाद, बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म में मौजूद रही है। यह व्यक्ति के अंतर्ज्ञान से जुड़ा होता है। उनका तीसरा नेत्र ज्ञान और विवेक का प्रतीक भी माना जाता है।