हाईकोर्ट ने रद्द की पूर्व पुलिसकर्मी की पत्नी द्वारा दर्ज एफआईआर
शिमला, 11 जनवरी (हप्र)
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पुलिस अधीक्षक अंजुम आरा व दो अन्य पुलिस अधिकारियों के खिलाफ पूर्व पुलिस कर्मी धर्मसुख नेगी की पत्नी द्वारा दर्ज प्राथमिकी को रद्द कर दिया है। जबरन सेवानिवृत के आरोप को लेकर पुलिस कर्मी धर्मसुख नेगी की पत्नी ने पूर्व डीजीपी संजय कुंडू, दो रिटायर्ड पुलिस ऑफिसर, 3 एसपी समेत 10 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी। पूर्व डीजीपी संजय कुंडू और प्रार्थियों समेत 10 पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति एक्ट की धारा 3 (1)(पी), एससी-एसटी एक्ट 1989 के तहत मुकदमा रजिस्टर हुआ था। इस प्राथमिकी के खिलाफ एसपी अंजुम आरा और दो अन्य पुलिस अधिकारियों ने इस प्राथमिकी को रद्द करने की गुहार लगाई थी। न्यायाधीश विरेंदर सिंह ने प्राथमिकी को रद्द करते हुए कहा कि इस मामले में जांच एजेंसी द्वारा जांच के दौरान शिकायत में लगाए गए आरोपों के अनुसार कुछ भी नहीं पाया गया और न ही शिकायतकर्ता याचिकाकर्ताओं को कथित अपराध से जोड़ सकी।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अस्पष्ट आरोपों के आधार पर, यदि कार्यवाही जारी रखने की अनुमति दी जाती है, तो यह कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के अलावा और कुछ नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि हालांकि मामले की जांच के बाद, पुलिस ने इस मामले में निरस्तीकरण रिपोर्ट दाखिल करने का फैसला किया है, लेकिन वर्तमान मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में, याचिकाकर्ताओं को निरस्तीकरण रिपोर्ट पर अधिकारियों के निर्णय की प्रतीक्षा करने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता है। याचिकाकर्तागण राहत की सांस लेने के हकदार हैं, क्योंकि निरस्तीकरण रिपोर्ट के लंबित रहने के दौरान भी, अप्रत्यक्ष रूप से, उन्हें अपने खिलाफ एफआईआर दर्ज होने का दंश झेलना पड़ता है।
यह था मामला
मामले के अनुसार जबरन सेवानिवृत किए पुलिस कांस्टेबल धर्म सुख नेगी की पत्नी ने पूर्व डीजीपी संजय कुंडू, पूर्व आईपीएस समेत अन्य पुलिस अधिकारियों पर पति के उत्पीड़न का आरोप लगाया था। पूर्व पुलिस कर्मी और उसकी पत्नी जनजातीय जिला किन्नौर के रहने वाले हैं। महिला ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ दर्ज शिकायत में बताया था कि पुलिस के उच्च अधिकारियों ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए उसके पति धर्म सुख नेगी को नौकरी से जबरन सेवानिवृत किया। महिला ने बताया था कि पुलिस अधिकारियों ने पहले उसके पति पर झूठे व मनगढ़ंत आरोप लगाए और फिर विभागीय जांच बैठा कर 9 जुलाई 2020 को जबरन बेइज्जत करके जबरन नौकरी से निकाल दिया, जबकि पुलिस कर्मी के तौर पर उसके पति का 8 वर्षों का सेवाकाल बचा हुआ था। प्रार्थी अंजुम आरा, पंकज शर्मा और बलदेव दत्त ने उनके खिलाफ लगाए आरोपों को निराधार बताते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर कर प्राथमिकी को रद्द करने की गुहार लगाई थी।