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मदद का मन

01:34 PM Jul 05, 2022 IST
मदद का मन
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पूनम पांडे

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आज तो पूरा स्कूल ही ऐसा रौनक भरा लग रहा था कि क्या कहने। कक्षा सात के सारे विद्यार्थी आज उपस्थित थे। और होते भी, सब कितने मन से स्कूल आये। आज खेलकूद दिवस था और इतनी सारी स्पर्धाएं रखी गई थी जैसे लंबी दौड़, छोटी दौड़, मेढक दौड़, कंगारू दौड़, रस्सी कूद, ऊंची कूद, गोला फेंक, चक्का फेंक, कबड्डी आदि आदि कि हर बच्चा अपने गले में एक मेडल महसूस कर रहा था। अमन,गगन, रमन, चमन और तपन को तो साल भर से इस दिन की प्रतीक्षा थी। वे तो आज पूरे जोश में थे। असेंबली के बाद सबको पहले अपनी कक्षा में जाना था, उसके बाद खेलकूद शिक्षक के निर्देशानुसार मैदान में पहुंचना था। लगभग सभी बच्चे कक्षा में जा चुके थे कि अचानक एक बड़ा सा बंदर छत के रास्ते से कूद कर वहां आया। इस भागम-भाग में कुछ हड़बड़ाहट हुई और बंदर से एक गमला नीचे गिर गया। ‘अरे,,देखो देखो वो गमला गिर गया।’ तपन ने उधर इशारा करके कहा। ‘अरे, देखो कितनी मिट्टी फैल गई है?’-चमन भी आंखें फैलाकर कहने लगा। ‘ओह हो, देखो उसमें एक घोंसला बना हुआ था, मैं चिड़िया को रोज देखता था।’ -रमन ने गौर से देखकर कहा। ‘ओहो, अब तो पक्का चिड़िया का नुकसान हो जायेगा। है न।’- गगन भी पीछे कहां रहा वो भी बोल पड़ा। ‘पर इतना बड़ा मिट्टी का गमला है और हमने तो सफेद युनिफॉर्म पहन रखी है। अब हम तो कुछ नहीं कर सकते।’- ऐसा कहकर तपन ,रमन ,चमन, और गगन अपने अपने हाथ झाड़कर चलते बने। पर यह सब देखकर अमन से रहा नहीं गया, वो कुछ करना चाहता था। उसने चपरासी अंकल और आया आंटी को आवाज दी पर उसे तभी याद आया कि वो तो अभी खेलकूद के मैदान में ड्यूटी दे रहे होंगे। फिर अमन ने अपने दोस्तों को पुकारा, पर सब के सब टाल गये। अमन ने अब अपना रूमाल लिया और उससे अपनी हथेली को ढककर गिरा हुआ गमला उठाकर सीधा कर दिया। खिले हुए फूलों के बीचोंबीच एक घोंसला बना हुआ था। अमन ने उसे हल्के हाथ से सीधा कर दिया। झांक कर देखा, घोंसला खाली था ,तो उसमें, चिड़िया ने अभी तक अंडे नहीं दिये थे। ‘ओह, चैन मिला’ कहकर अमन ने नीचे फैली हुई सारी मिट्टी उठाकर गमले में भर दी और जिस जगह से गमले का एक कोना चटक कर गिरा उस टुकड़े को उठाकर वहीं पर टिका दिया। अमन ने पानी से हाथ धोए कि तभी उसने अपनी पैंट की तरफ नजर डाली। मिट्टी चिपकने से बदरंग हो गई थी व कमीज के सिरे भी गंदे हो रहे थे। अमन दोबारा नल के पास गया और पानी से मिट्टी साफ करने लगा पर वे तो और भी ज्यादा फैल गई। दाग और भी ज्यादा दिखन लगे। अमन जितना साफ करता जाता दाग फैलते चले जाते। उदास होकर अमन क्लास रूम में आ गया और चुपचाप बैठ गया। वह जानता था कि गंदी युनिफार्म देखकर खेलकूद शिक्षक उसे डांटने वाले हैं। वह कल्पना कर रहा था कि मैदान में जाते ही डांट-फटकार के बाद वह मन लगाकर किसी स्पर्धा में भाग नहीं ले सकता। यही सोचता हुआ जब वह कक्षा के भीतर आया तो खेलकूद शिक्षक वहीं खड़े थे। मुझे डांट पड़ेगी यह सोचकर वह डरकर दरवाजे पर खड़ा हो गया। उसके कानों में शिक्षक की ऊंची आवाज सुनाई दे रही थी- ‘तपन, चमन, गगन ,रमन- तुम मुझे इतनी सफाई मत ही दो। तुम बता रहे हो कि गमला गिर गया, बंदर आकर भाग गया, यही सब न। तुम सबको मैं चुपचाप देख रहा था। तुम लोग बस बोलने का काम कर रहे थे। पर अमन है सच्चा खिलाड़ी। वह अपनी सफेद पैंट-शर्ट की परवाह किये बगैर वो करता रहा जो कर सकता था।’ फिर वे अमन की तरफ देखकर बोले-आओ अमन, तुम कितनी हिम्मत रखते हो। सबसे अच्छा मन है तुम्हारा। तुम मेहनती हो। चलो सबके साथ मिलकर आ जाओ मैदान में। अब रमन, चमन, गगन और तपन ने सर से माफी मांग ली, साथ ही सबने अमन के लिए ताली बजाई। सब हंसते हुए मैदान की तरफ चल रहे थे।

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