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मरहम का वक्त

11:39 AM May 22, 2021 IST
मरहम का वक्त
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पिछले दिनों तृणमूल कांग्रेस के मंत्री और विधायकों पर सीबीआई द्वारा की गई कार्रवाई से यही जान पड़ता है कि राजनीतिक दल चुनाव की कड़वाहट को भुला नहीं पाए हैं। जब पूरा देश कोरोना महामारी से त्रस्त है तो इस राजनीतिक लड़ाई से किसका भला होने जा रहा है‌? राजनीतिक दलों को संयम का परिचय देना चाहिए और चुनी हुई सरकार को भी जन सरोकारों के प्रति प्रतिबद्धता दर्शाते हुए बड़प्पन का परिचय देना चाहिए। इस संकट के समय में सभी सरकारों को अपनी सारी ऊर्जा कोरोना महामारी से जूझने में लगानी चाहिए।

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पूनम कश्यप, बहादुरगढ़


वन-पुत्रों की सुध

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देश की अधिकांश आबादी कोरोना महामारी की दूसरी लहर से जूझ रही है। वहीं दूसरी तरफ ओडिशा के माली पहाड़ के लोग प्राइवेट कंपनियों से अपनी जल, जंगल, जमीन बचाने के लिए जूझ रहे हैं। माली पहाड़ ऐसा क्षेत्र है जहां पर बॉक्साइट खनिज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। माली पहाड़ आदिवासी विशेष क्षेत्र है, जिसमें वे लोग निवास करते हैं। ऐसे में आदिवासी जो प्रकृति के सबसे करीब हैं, उनकी बातों पर विचार करने की जरूरत है। अगर समय रहते इनकी समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया तो पहाड़, जंगल व पर्यावरण को नहीं बचाया जा सकता।

नितेश कुमार सिन्हा, मोतिहारी


कारगर भी हो

प्रधानमंत्री ने गरीब वर्ग को महंगे इलाज से निजात दिलाने के लिए आयुष्मान भारत योजना चलाकर काफी सराहनीय काम किया था। योजना को शुरू करने से पहले सरकार को देश में सरकारी अस्पतालों की गिनती बढ़ाने, आधुनिक सुविधाओं से लैस करने और डॉक्टरों की गिनती बढ़ाने के उपाय करने चाहिए। हाल ही में विजिलेंस ब्यूरो ने पंजाब में कुछ जगहों पर इस योजना से संबंधित कुछ चेहराें बेनकाब किया है। ऐसी योजनाओं को अमल में लाने के साथ सरकार को पारदर्शी कदम भी उठाने होंगे।

राजेश कुमार चौहान, जालंधर

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