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Haryana News : पिहोवा का सरस्वती तीर्थ जिसका कोई वारिस नहीं

08:58 AM Nov 14, 2024 IST
पिहोवा के सरस्वती तीर्थ में तैरती गंदगी व जल में उगा घास। -निस

सुभाष पौलस्त्य/निस
पिहोवा, 13 नवंबर
सरकार सरस्वती के विकास के लिए कितनी जागरूक है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिहोवा में सरस्वती नदी व सरस्वती तीर्थ इन दिनों लावारिस पड़ा हुआ है। इस तीर्थ का कोई भी वालीवारिस नहीं है। मनोहर सरकार के समय इस तीर्थ का प्रबंध कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड से लेकर पिहोवा नगरपालिका को दे दिया गया था, परंतु बिना बजट के नगरपालिका इसका रखरखाव न कर सकी तथा उन्होंने इसके रखरखाव से इनकार कर दिया। बाद में 6 अप्रैल, 22 को मुख्यमंत्री ने पिहोवा अनाज मंडी में घोषणा की कि सरस्वती तीर्थ को कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के अधीन किया जाता है। सरकार द्वारा जारी किया गया यह नोटिफिकेशन आज तक कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के पास ही नहीं पहुंचा।
कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड यह कहता है कि सरस्वती तीरथ उनके अधीन नहीं है व नगरपालिका भी इससे इनकार कर रही है। कहने को 3 किलोमीटर लंबी सरस्वती नदी, सरस्वती तीर्थ पर कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड, नगरपालिका, पिहोवा हेरिटेज बोर्ड, सरस्वती विकास बोर्ड, सरस्वती समिति, नहर विभाग, लोक निर्माण विभाग सहित दर्जनों सरकारी विभाग इसकी देखरेख के लिए लगे हुए हैं।
परंतु कोई भी इस बात की जिम्मेवारी नहीं ले रहा कि सरस्वती तीर्थ का प्रभार उनके पास है। नहर विभाग का कहना है कि वह केवल पानी भरने के लिए ही जिम्मेवार है। इसी तरह अन्य विभाग भी अपना पल्ला झाड़ रहे हैं। सरस्वती तीर्थ इन दिनों इस कदर बेहाल है कि सरस्वती हेरिटेज बोर्ड भी सही ढंग से इसकी देखरेख करने में असफल हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सरस्वती तीर्थ के विकास के लिए 387 करोड़ रुपये दिये गए थे। यह राशि भी तीर्थ का विकास न कर सकी। सरस्वती तीर्थ का जल बहता करने के साथ सरस्वती तीर्थ के एक छोर पर स्थित गंगा, जमुना, सरस्वती के संगम स्थल सूर्यकुंड के पास से पानी निकासी के लिए योजना तैयार की गई थी।
इसका 6 करोड़ रुपये का बजट मंजूर हुआ था। इसको सरस्वती प्राणी विहार स्योंसर जंगल में सौ एकड़ झील में पानी देना था ताकि झील में पानी आने से हजारों की संख्या में रह रहे जंगली जीवों को जल मिल सके।
इतना ही नहीं यहां से बिना पानी के पलायन करके जो हिरन, बारहसिंघे, नीलगाय, खरगोश, गीदड़ व अन्य जानवर चले गए थे। वह दोबारा वापस लौट आएंगे। इतना ही नहीं झील के कारण इस क्षेत्र का भूजल स्तर भी ऊपर हो जाएगा तथा इस क्षेत्र का डार्क जोन भी खत्म हो जाएगा तथा पानी आगे किसानों को देने के कारण बिजली की बचत भी होगी। साथ ही 10,000 एकड़ में फैला यह जंगल भी हरा-भरा हो जाएगा। बरसात भी इस क्षेत्र में ज्यादा होगी तथा जल समस्या का भी समाधान हो जाएगा। परंतु 6 करोड़ की यह योजना अभी तक कार्यालय की फाइलों में ही दब कर रह गई। इतना ही नहीं प्राची तीर्थ से महिला घाट तक दोनों और दीवार बनाकर जाल लगाने के लिए लगभग तीन करोड़ की एक योजना बनाई गई थी।
जाल लगने से तीर्थ में गिरने वाली गंदगी पर जहां रोक लगेगी, वहीं हादसे भी कम होंगे। यह योजना भी हेरिटेज बोर्ड के दफ्तर की फाइलों में दब कर रह गई। सरकार सरस्वती के विकास पर करोड़ों रुपया खर्च करने का दम तो भरती है, पर सरकार का यह दम फाइलों में ही दम तोड़ रहा है।

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अधिकारी बोले

इस बारे सरस्वती हेरिटेज बोर्ड के उपाध्यक्ष धुम्मन सिंह किरमच से बात की तो उन्होंने बताया कि स्योंसर जंगल में झील में पानी देने के लिए जो योजना 6 करोड़ की बनाई थी, वह तकनीकी रूप से ठीक नहीं है। नहर विभाग ने अनेक बार इसका सर्वे किया, परंतु यह योजना सिर ही नहीं चढ़ी। तकनीकी रूप से कमी होने के कारण ऐसा करना संभव नहीं है। नहर विभाग ने इसका खर्च 20 करोड़ से भी अधिक का बताया। इसके लिए नहर विभाग अलग से ही किसी योजना पर विचार कर रहा है। प्राची तीर्थ से महिला घाट तक जाल लगाने का कार्य कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड व नगर पालिका पिहोवा करेगा, यह क्षेत्र इन दोनों के अधीन है। हेरिटेज बोर्ड का इसमें कोई अधिकार नहीं है।

कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के सचिव बोले

कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के सचिव उपेंद्र सिंगल से जब सरस्वती तीर्थ की रखरखाव की जिम्मेवारी बारे फोन पर बात की तो उन्होंने बताया कि सरस्वती तीर्थ नगरपालिका पिहोवा के अधीन है। नगरपालिका पिहोवा के प्रधान आशीष चक्रपाणि से जब इस बारे पूछा तो उन्होंने बताया कि नगरपालिका पिहोवा सरस्वती तीर्थ की केवल साफ-सफाई की देखरेख करती है। इस बारे जानकारी पूछने के लिए पालिका सचिव को अनेक बार फोन किया तो उन्होंने फोन उठाने की जहमत ही नहीं उठाई।

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