Haryana News : भगवान शिव की ब्रह्म कपाली इस सरोवर में स्नान करने से हुई थी दूर
यमुनानगर, 13 नवंबर (हप्र)
मेला कपाल मोचन के तीसरे दिन चार लाख से अधिक श्रद्धालु मेले में पहुंच चुके हैं। उनका लगातार आना जारी है। अधिकांश श्रद्धालु पंजाब के विभिन्न जिलों से आ रहे हैं। इसके अलावा हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली और हिमाचल से भी भारी संख्या में श्रद्धाल पहुंच रहे हैं। श्रद्धालु यहां लगातार तीनों सरोवरों में स्नान कर पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
देशभर में प्रसिद्ध ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल तीर्थराज कपाल मोचन यमुनानगर जिले में सिंधुवन में बिलासपुर के पास स्थित है। देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में हिन्दू, मुस्लिम तथा सिख श्रद्धालु हर वर्ष कार्तिक मास की पूर्णिमा के अवसर पर यहां लगने वाले विशाल मेले में भाग लेते हैं तथा मोक्ष की कामना से तीन पवित्र सरोवरों में आस्था की डुबकी लगाते हैं। श्रद्धालु का कहना है कि कार्तिक पूर्णिमा की अर्धरात्रि के समय ही भगवान शिव की ब्रह्म कपाली इसी कपाल मोचन सरोवर में स्नान करने से दूर हुई थी।
प्राचीनकाल से ही इस भू-भाग पर पांच तीर्थ कपालेश्वर महादेव (कलेसर) तथा चंडेश्वर महादेव (काला अम्ब) स्थित हैं, इनके मध्य 360 यज्ञ कुंड हैं। इनमें कालेश्वर तीर्थ प्रमुख एवं केंद्र बिन्दु है। कपाल मोचन तीर्थ पर राम मंदिर के बारे में यह मान्यता है कि अकबर-ए-आजम के शासनकाल के समय इस स्थान पर आबादी नहीं थी, केवल जंगल ही था। तीर्थ के समीप स्थित एक टीले पर झाड़ी के नीचे दूधाधारी बाबा केशव दास तपस्या करते थे।
एक दिन अकबर के परगना साढौरा के काजी फिमूदीन, जोकि निसंन्तान एवं वृद्ध थे, शिकार खेलते हुए पानी की तलाश में यहां आए तो उन्होंने तपस्यालीन महात्मा केशवदास तक पहुंचने का प्रयत्न किया, परन्तु जैसे ही वे उसके समीप पहुंचे, उन्हें दिखाई देना बंद हो गया। जब महात्मा जी ने तपस्या उपरांत आंखें खोलीं तो कहा कि तुम उनकी समाधि की परिधि के अन्दर आ गए हो, इसलिए कुछ पीछे हट कर अपनी बात कहो। काजी जैसे ही पीछे हटे तो उन्हें पुन: दिखाई देने लगा और उन्होंने स्वयं के नि:संतान होने की बात कही एवं संतान की कामना की। केशवदास ने उन्हें एक वर्ष बाद अपनी बेगम सहित आने को कहा। इसी अवधि में काजी के घर एक लड़का पैदा हुआ और एक वर्ष बाद काजी ने सपरिवार यहां आकर केशवदास को 1300 बीघा जमीन देकर भगवान श्रीराम का तीन मंजिला मंदिर बनवाया, जिसके ऊपर रोजाना चिराग जलाया जाता था। काजी हर सायं चिराग देखकर ही खाना खाते थे। उन्हीं के वंशजों के रूप में साढौरा में आज भी काजी मोहल्ला आबाद है। इस कारण हिन्दू व सिखों के अलावा मुसलमान भी कपाल मोचन तीर्थ एवं मेले के प्रति श्रद्धा रखते हैं।