आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते गुप्त नवरात्रे
चेतनादित्य आलोक
धर्म शास्त्रों के अनुसार सनातन धर्म में अत्यंत ही विशेष मानी जाने वाली नवरात्रि का प्रायः प्रत्येक युग और काल में विशेष महत्व रहा है। चाहे सतयुग हो या त्रेतायुग, द्वापर युग हो या कलियुग मां भवानी जगदम्बा की पूजा-आराधना के पुण्य एवं पवित्र पर्व की गरिमा और महिमा कभी कम नहीं हुई। कलियुग में जीवन के मूल्य और सिद्धांत भले ही बदल गए हों, मनुष्य की प्राथमिकताएं और जरूरतें भले ही बदल गई हों, लेकिन माता जगद्धात्री भगवती के भक्त नवरात्रि पर्व के आयोजन, पूजन और आराधन में कभी पीछे नहीं रहते। वे प्रायः प्रत्येक वर्ष इस पर्व के आगमन की प्रतीक्षा करते रहते है और इसके आगमन पर वैसे ही प्रसन्न होते हैं, जैसे कोई बच्चा लंबे समय के बाद अपनी माता को देखकर चहक उठता है।
वैसे तो सनातन धर्म में प्रत्येक वर्ष चार नवरात्रियां आती हैं, जिनमें दो प्रत्यक्ष अथवा उदय एवं दो गुप्त होती हैं। चैत्र और आश्विन महीने की नवरात्रियां प्रत्यक्ष नवरात्रि कहलाती हैं। इन्हें ही क्रमशः वासंतीय एवं शारदीय नवरात्रि भी कहा जाता है, जबकि आषाढ़ और माघ की नवरात्रियां गुप्त नवरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार सतयुग में चैत्र महीने की प्रत्यक्ष नवरात्रि का विशेष प्रचलन था। वहीं, त्रेतायुग में आषाढ़ महीने की गुप्त नवरात्रि का और द्वापर युग में माघ महीने की गुप्त नवरात्रि का विशेष महत्व था, लेकिन कलियुग में शारदीय नवरात्रि का संपूर्ण भारत में विशेष प्रचलन है।
आजकल वर्ष के चारों ही नवरात्रि-पर्वों का आयोजन बड़े ही धूमधाम से पूरे देश में किया जाने लगा है, लेकिन यह सच है कि शारदीय नवरात्रि की धूम कुछ अधिक ही होती है। वैसे गुप्त नवरात्रि का पर्व हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड एवं आसपास के क्षेत्रों में विशेष तौर पर मनाया जाता है। बहरहाल, अभी आषाढ़ का महीना चल रहा है और आषाढ़ी गुप्त नवरात्रि का पर्व 6 जुलाई से प्रारंभ हो चुका है।
गौरतलब है कि इस नवरात्रि में मां दुर्गा की शक्ति रूप में उपासना करने का विधान है। देवी भागवत पुराण के अनुसार जिस प्रकार एक वर्ष में चार बार नवरात्रि का पर्व आता है और जिस प्रकार शारदीय नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, ठीक उसी प्रकार गुप्त नवरात्रि में माता के भक्त देवी मां की 10 महाविद्याओं यानी त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी, काली, तारा देवी, त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्तिका, मातंगी और कमला के रूपों की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान माता की दसों महाविद्याएं अत्यधिक शक्तिशाली और विशिष्ट रूप से ऊर्जावान बनी रहती हैं। यही कारण है कि माता के भक्त उनकी कृपा प्राप्त करने के उद्येश्य से उनका विशिष्ट पूजन-आराधन करते हैं, ताकि मां दुर्गा की कृपा प्राप्त कर वे मानव रूप में मिला अपना यह जीवन धन्य कर सकें।
गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की तंत्र-साधना की जाती है, जो हमेशा ही गुप्त रूप से की जाती है। दरअसल, इस नवरात्रि में मां दुर्गा की तंत्र-साधना गुप्त रूप से किए जाने के कारण ही इसे गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। इस नवरात्रि में अघोरी तांत्रिक गुप्त महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए विशेष साधना करते हैं। वहीं, सामान्य जनों के लिए भी यह बड़ी लाभकारी मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि यदि तंत्र-साधना नहीं भी करें तो गुप्त नवरात्रि में मां दुर्गा की विधिवत पूजा-अर्चना करने वाले भक्तों के सभी दुखों का नाश होता है और जीवन में सुख-समृद्धि का आगमन होता है।
इनके अतिरिक्त यह नवरात्रि कुल देवी एवं कुल देवताओं को प्रसन्न करने का भी उत्तम अवसर होता है। सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार कुल देवी एवं कुल देवता हमारे लिए रक्षा कवच एवं सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शक होते हैं। इसलिए गुप्त नवरात्रि के दौरान लोग अपने-अपने कुल देवी एवं कुल देवताओं को पूजा, आराधना और प्रार्थना के माध्यम से प्रसन्न करने का प्रयास करते हैं। यही नहीं, यह साधकों की आध्यात्मिक उन्नति, ज्ञान प्राप्ति, मोक्ष प्राप्ति और मनोकामना पूर्ति के लिए भी उत्तम समय माना जाता है। इस बार आषाढ़ी गुप्त नवरात्रि 10 दिनों की होगी, क्योंकि इस बार चतुर्थी तिथि दो दिन होने वाली है।