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दो बार प्रधानमंत्री रहे गुलजारी लाल नंदा कैथल से बने थे सांसद

07:36 AM Apr 18, 2024 IST
दो बार प्रधानमंत्री रहे गुलजारी लाल नंदा कैथल से बने थे सांसद
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दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 17 अप्रैल
राष्ट्रीय राजधानी नयी दिल्ली से सटा होने की वजह से हरियाणा का राजनीतिक वजूद कभी से बना हुआ है। हरियाणा से जहां केंद्र को कई दिग्गज नेता दिए हैं, वहीं कई ऐसे नेता भी हैं, जो हरियाणा के नहीं होने के बावजूद यहां के लोगों ने उन्हें सिर आंखों पर बैठाया। दो बार उपप्रधानमंत्री रहे चौ़ देवीलाल के बारे में तो सभी जानते हैं। युवा पीढ़ी को शायद ही पता होगा कि दो बार प्रधानमंत्री (कार्यवाहक) रहे गुलजारी लाल नंदा भी दो बार हरियाणा की कैथल लोकसभा सीट से सांसद बने थे।
इतना ही नहीं, दिल्ली के मौजूदा सीएम अरविंद केजरीवाल के अलावा दो और नेताओं की जड़ें हरियाणा में रहीं और वे दिल्ली के मुख्यमंत्री बने। दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री रहे ब्रह्म प्रकाश यादव का जन्म बेशक केन्या में हुआ था, लेकिन उनके परिजनों की जड़ें हरियाणा से ही निकलीं। 17 मार्च, 1952 से 12 फरवरी, 1955 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे ब्रह्म प्रकाश यादव को ‘शेर-ए-दिल्ली’ भी कहा जाता था। स्वतंत्रता सेनानी रहे ब्रह्म प्रकाश के पिता हरियाणा के बड़े जमींदार थे, लेकिन वे दिल्ली शिफ्ट हो गए थे। हरियाणा में चौ़ देवीलाल की सरकार में पहले राज्य और फिर कैबिनेट मंत्री रही सुषमा स्वराज का जन्म भी अंबाला कैंट में हुआ था। वे दिल्ली की मुख्यमंत्री बनने वाली दूसरी हरियाणवी थीं। आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मौजूदा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी मूल रूप से हरियाणा के सिवानी मंडी के रहने वाले हैं। सुषमा स्वराज के राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय होने के बाद उन्होंने अंबाला कैंट से इस्तीफा दिया था। इसके बाद यहां हुए उपचुनाव से अनिल विज ने चुनावी राजनीति में प्रवेश किया था।
हरियाणा की ‘लाल सियासत’ के सबसे बड़े दिग्गज चौ़ देवीलाल पहली बार 2 दिसंबर, 1989 को देश के उपप्रधानमंत्री बने। वीपी सिंह सरकार में वे 242 दिनों तक इस पद पर रहे। इसके बाद, 10 नवंबर, 1990 को वे लगातार दूसरी बार चंद्रशेखर की सरकार में डिप्टी पीएम बने। इस बार उनका कार्यकाल 223 दिनों का रहा। देवीलाल हरियाणा के मुख्यमंत्री भी रहे। उस दौर में चौ़ देवीलाल राजनीति के राष्ट्रीय फलक पर छाये हुए थे। दिल्ली की सत्ता में उनका सीधा दखल भी था और पूरे देश की सियासत उनके इर्द-गिर्द घूमती थी।

इस तरह हरियाणा आना हुआ

आजादी के कुछ बरसों के बाद ही पंजाब के कुछ नेताओं ने अलग पंजाबी सूबे की मांग उठानी शुरू कर दी। ज्वाइंट पंजाब में शामिल हरियाणा बेल्ट के नेताओं द्वारा भी पृथक राज्य की मांग करनी शुरू कर दी। अचानक उपचे इस विवाद को सुलझाने के लिए उस समय पीएम इंदिरा गांधी ने संसद में पंजाब रिआर्गेनाइजेशन कमेटी का गठन किया। गुलजारी लाल नंदा कमेटी के चेयरमैन थे। उन्होंने संयुक्त पंजाब का दौरा किया और रिपोर्ट तैयार की। पंजाबी सूबे की मांग कर रहे नेता जीटी रोड पर पानीपत और सिरसा जिले के बड़े हिस्से को पंजाब में शामिल करने की मांग पर अड़े थे। उस समय गुलजारी लाल नंदा ने नये हरियाणा की तस्वीर खींची थी।

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यूं गुजरात छोड़कर हरियाणा में बसे

गुलजारी लाल नंदा अहमदाबाद में बसे थे। संयुक्त पंजाब के भ्रमण के दौरान उन्हें हरियाणवी बेल्ट इस कदर भाई कि वे यहीं के होकर रह गए। उस समय कुरुक्षेत्र संसदीय क्षेत्र नहीं था, बल्कि कैथल संसदीय सीट थी। नंदा ने पहली बार 1967 में कैथल से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद वे 1971 में भी कैथल से सांसद रहे। इससे भी रोचक पहलू यह है कि राजनीति से खुद को अलग करने के बाद वे कुरुक्षेत्र में ही आकर बस गए। कुरुक्षेत्र में कई तीर्थस्थलों के जीर्णोद्धार के लिए नंदा ने काम किया । हालांकि, बाद में वे फिर अहमदाबाद चले गए। वहीं, 15 जनवरी, 1998 को उनका निधन हुआ।

इंद्र के खिलाफ दर्ज  की जीत

1967 में कैथल संसदीय क्षेत्र से गुलजारी लाल नंदा ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा। उन्हें एक लाख 80 हजार 770 वोट मिले। उनके मुकाबले चुनाव लड़ रहे स्वतंत्र पार्टी टिकट पर चुनाव लड़े इंद्र सिंह को एक लाख 53 हजार 760 वोट मिले। कैथल के लोगों ने पहले ही चुनाव में नंदा को स्वीकार करते हुए उन्हें 27 हजार 10 मतों से जीत दिलवाई। इसके बाद 1971 में नंदा ने कैथल
से इंद्र सिंह के खिलाफ जीत दर्ज की।

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दोनों बार 13-13 दिन  ही रहे प्रधानमंत्री

13 का आंकड़ा अकेले पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के साथ नहीं जुड़ा रहा। उनसे पहले गुलजारी लाल नंदा भी ‘13’ के आंकड़े से पार नहीं पा सके। केंद्रीय मंत्रिमंडल में सबसे सीनियर होने की वजह से नंदा को दो बार पीएम (कार्यवाहक) बनने का मौका मिला। जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद पहली बार उन्हें 17 मई, 1964 को पीएम बनाया गया। इसके बाद लाल बहादुर शास्त्री के देहांत के बाद फिर पीएम बने। दोनों बार उनका कार्यकाल 13-13 दिन का रहा।

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