सनातन मूल्यों के प्रहरी
डॉ़ ओमप्रकाश कादयान
वरिष्ठ साहित्यकार हरिशंकर शर्मा की नई पुस्तक ‘सनातन के प्रहरी पं. राधेश्याम कथावाचक’ एक शोध पुस्तक है जो लेखक कथा वाचक पं. राधेश्याम के जीवन, सृजन, कथा वचनों, सनातन, समाज सुधारक विचारों पर केन्द्रित है। पं. राधेश्याम जीवनभर सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में लगे रहे। इसके लिए उन्हें भारत में बहुत से हिस्सों की यात्राएं भी करनी पड़ीं।
पुस्तक में लेखक हरिशंकर लिखते हैं कि उनके सनातन के मूल में नवजागरण काल की चेतना व आर्य समाज का सुधारवादी नज़रिया भी है। उन्होंने सनातन की नई सोच विकसित की तथा संकुचित विचारों से मुक्ति दिलाई। पं. राधेश्याम ने अपनी रचनाओं ‘राधे श्याम रामायण’, ‘कृष्णायन महाकाव्य’, ‘मेरा नाटक काल’ के माध्यम से समाज को जोड़ने का काम किया तो कथावाचक के रूप में स्त्री शिक्षा, राष्ट्रप्रेम, पश्चिमी सभ्यता का विरोध, राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार-प्रसार, धर्म के प्रति वैज्ञानिक सोच, समाज सुधार पर बल दिया तथा पाखंड, जादू-टोना, साम्प्रदायिकता के खिलाफ प्रचार किया।
रामानन्द सागर की रामायण का बहुत-सा हिस्सा इनके कथा-प्रसंगों से प्रभावित है। उन्होंने उन धनाढ्य लोगों का विरोध भी किया जो धन के मद में आम आदमी को तुच्छ समझते थे। हरिशंकर शर्मा ने अपनी इस पुस्तक ‘सनातन के प्रहरी पं. राधेश्याम कथावाचक’ को समीक्षात्मक दृष्टि से सात मुख्य अध्यायों में विभक्त किया है।
इन अध्यायों में लेखक हरिशंकर शर्मा ने उनके व्यक्तित्व कृतित्व पर गहन रूप से शोध किया है। पं. राधेश्याम कथावाचक का फिल्मों में कथा-गीत, संवाद, लेखन, श्रीराम व श्रीकृष्ण के जीवन का उद्देश्य व समाज पर उनके प्रभाव विषयों पर गहराई से चिन्तन किया है। पुस्तक के मुख्य पृष्ठ पर पं. राधेश्याम का चित्र है तो अन्तिम पृष्ठ उनके घर व हार्मोनियम के चित्र दिए हैं। कुल मिलाकर पं. राधेश्याम को जानने, समझने के लिए यह एक अच्छी पुस्तक कही जा सकती है।
पुस्तक : सनातन के प्रहरी पं. राधेश्याम कथावाचक लेखक : हरिशंकर शर्मा प्रकाशक : दीपक पब्लिशर्स, जयपुर पृष्ठ : 120 मूल्य : रु. 350.