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सुनहरे बालों वाली लड़की

06:33 AM Dec 01, 2024 IST
सुनहरे बालों वाली लड़की
चित्रांकन : संदीप जोशी
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डॉ. रंजना जायसवाल
गगनचुंबी इमारतें, मॉल, रेस्टोरेंट कितना कुछ था इस बड़े शहर में जिसकी चकाचौंध में मेघा की आंखें भी चौंधियां गई थीं। इसीलिए तो छोटे शहर की शांति, सुकून और अपनत्व को छोड़कर चली आई थी। आज भी उसे वह दिन याद है जब उसने निखिल से कहा था।
‘निखिल क्या रखा है इस शहर में…?’
‘खराबी क्या है इस शहर में…!’
निखिल ने बेपरवाह होकर कहा था। मेघा ने खीझ कर कहा था।
‘खराबी! एक हो तो बताऊं। सड़कें! सड़कों में सड़क कम, गड्ढे ज्यादा है। समझ नहीं आता, गड्ढों में सड़कें हैं या सड़कों में गड्ढे। एक कायदे का होटल और रेस्टोरेंट नहीं, अक्षय के भविष्य के बारे में सोचा है। इन झोलाछाप स्कूल में पढ़कर वह क्या सीखेगा।’
निखिल उसकी बात सुन मुस्कुरा दिए थे।
‘इसी झोलाछाप स्कूल में पढ़े लड़के से तुमने शादी की है।’
‘आप से तो बात करनी बेकार है। निखिल सोचो, माना तुम इस शहर में पैदा हुए हो। तुम्हारी पढ़ाई-लिखाई, शादी-ब्याह सब यहीं हुआ पर सोचो क्या भविष्य है हमारा… बड़े-बड़े शहरों में, बड़ी-बड़ी कम्पनियां हैं। तुम्हारे लिए कितना अच्छा एक्सपोजर होगा। अपनी छोड़ो, अक्षय का सोचो एक बेहतर भविष्य का हकदार तो वह है न…?’
निखिल सोच में पढ़ गया। बात गलत तो नहीं कही थी मेघा ने… पर बड़े शहर के खर्चें, सुकून रोज की भागदौड़ में कहीं खो गया था। खुली हवा में सांस लेने को तरस गए थे। हवाओं में ज़हर घुला हुआ था। मेघा कभी-कभी सोचती क्या बड़े शहर में बसने का उसका निर्णय सही था?
रेड लाइट होते ही गाड़ियों के हुजूम की रफ्तार पर अचानक से रोक लग गई। गाड़ियों के हॉर्न के शोर से मेघा चिड़चिड़ा गई।
‘उफ्फ! एक तो इतना ट्रैफिक ऊपर से रेड लाइट्स, गाड़ी रेंग रही है।’
उसने बेचैनी से अपनी ब्रांडेड घड़ी पर नज़र डाली। यह घड़ी उसे बहुत पसंद थी। निखिल बड़े चाव से उसके लिए दुबई से लाए थे। मटमैले कपड़ों और हफ्तों से गंदे जूट होते बालों के साथ हर उम्र के बच्चे रेड लाइट होते ही सड़कों पर बिखर गए। एक पल को लगा मानो अचानक गुल्लक टूट गई हो और सिक्के बेतरतीब इधर-उधर बिखर गए हों पर वो सिक्के नहीं थे। वो जीते-जागते हाड़-मांस के इंसान थे। सिक्के होते तो छोटे हो या बड़े अमीर या गरीब अपनी हैसियत भूल उन्हें उठाने के लिए झुक ही जाते पर न जाने क्यों उन्हें सड़क पर बिखरता देख कार में बैठे लोग कार का शीशा चढ़ाए वितृष्णा से सिकुड़ गए।
कहीं से इकट्ठा की गई गन्दी-सी स्प्रे बोतल में साबुन का घोल लिए वह हर गाड़ी के शीशे पर छिड़कते और एक गंदे से कपड़े से रगड़-रगड़ शीशे को चमकाने की नाकाम कोशिश करते। कभी-कभी लगता है कि वह शीशे को नहीं, बल्कि अपने हाथ में पकड़े धप्प पड़ चुके कपड़े से अपनी धूमिल हो चुकी किस्मत को चमकाने की कोशिश कर रहे हों।
‘फिस्स-फिस्स!’
स्प्रे बोतल ने पानी में घुला हुआ साबुन कार के शीशे पर उलीच दिया। मटमैला पानी छोटे-छोटे बुलबुलों में बदल गया। बुलबुले शैतान बच्चों की तरह खिलखिलाने लगे और झट से नीचे की ओर सरक गए। एक पल को लगा मानो नन्हे बच्चों का झुंड स्लाइडिंग झूले पर फिसल गए हों पर अभी भी एक बड़ा-सा साबुन का बुलबुला ढीठ बच्चे की तरह डटा अपनी उपस्थिति जता रहा था। जेठ की चिलचिलाती धूप की किरणें सीधे पड़ रही थीं। बुलबुले में किरणों की वजह से इंद्रधनुषी रंग खिल उठे। उन मटमैले हाथों ने मटमैले कपड़ों से उस इंद्रधनुषी गुब्बार की परवाह न करते हुए तेजी से हाथ फेरा।
‘ये शीशा चमका रहे हैं या उसे और गन्दा कर रहे हैं।’
निखिल ने झुंझला कर कहा। ट्रैफिक लाइट पीली हो चुकी थी। गाड़ी के शीशे पर बस दो हाथ मार वह लड़का ड्राइवर शीट के बगल में बैठे निखिल के आगे हाथ फैलाकर गरियाने लगा। उसके चेहरे से गरीबी टपक रही थी। वह शक्ल से खानदानी गरीब लग रहा था। उसके हाथ भी उसके चेहरे की तरह काले थे।
‘अंकल भूख लगी है, सुबह से कुछ नहीं खाया,’उसने अपने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा। उसकी आंखों से बेचारगी टपक रही थी। भूख से बिलबिलाती आंखें अंदर धंस गई थीं। मेघा के मन ने उसे कचोटा, उनके हाथ पर कुछ रख देगी तो उसका कुछ बिगड़ नहीं जाएगा। दान करने से पुण्य ही मिलता है। मेघा मन ही मन हिसाब लगा रही थी। पर्स में टूटे पैसे नहीं थे सिर्फ दस, बीस, सौ और पच्चास के नोट थे। उसने अपने सिर को झटका दे मन में तेजी से घुमड़ते दान करने के विचारों को झटक दिया और दान करने के भूत को एक झटके से उतार दिया।
तभी लगभग दस-बारह साल की सुनहरे बालों वाली लड़की मेघा की गाड़ी के दरवाजे से आकर टिक गई।
‘मम्मा! इसके बाल देखो, गोल्डन कलर कराया है। जब इतना पैसा है तो फिर भीख क्यों मांग रही हैं।’
अक्षय की बात सुन मेघा मुस्कुरा दी। क्या बताती कि जिंदगी की धूप ने उनके जीवन के सारे रंग सोख लिए थे। उसने चेहरे पर बिखर आई अपनी लटों को बड़ी अदा के साथ अपनी उंगलियों में घुमाया। पिछले महीने ही उसने इनमें हेयर स्पा, कैरेटिन और स्ट्रेटनिंग करवाई थी। कितने खूबसूरत लगने लगे थे। लगने भी थे आखिर चौदह हजार खर्च किए थे।
सुनहरे बालों वाली लड़की उसे एकटक देख रही थी। उसके बालों को देखकर लग रहा था कि महीनों से उन बालों में तेल नहीं लगा था और न ही किसी भी तरह की कोई देखभाल हुई थी। एक बार इसी तरह की बच्ची को सड़क किनारे कपड़ा धोने वाले साबुन से रगड़-रगड़ कर बाल धोते देख उसे अपने महंगे, ब्रांडेड शैम्पू, कंडीशनर और सीरम की याद आ गई थी। इतने जतन के बाद भी उसके बाल टूट रहे थे और तेज़ी से सफेद होते जा रहे थे। न जाने कितने सारे नुस्खे, दवाइयां और तेल आजमाए थे पर…...
‘मेघा शीशे बंद करो। कोई भरोसा नहीं इन सबका कब मोबाइल,चेन छीनकर भाग जाएं।’
वह अपने सोच के दायरे से बाहर आ गई और निखिल की बात सुन एक पल को हड़बड़ा गई। उसका हाथ शीशा बन्द करने वाले बटन पर चला गया। वह अपनी बेवकूफी पर मुस्कुरा दी। ए.सी. की वजह से शीशा पहले से ही बन्द था। लड़की की कमर पर एक छोटा-सा बच्चा लदा हुआ था। उस बच्चे को देख न जाने क्यों मेघा को दया आ गई थी। इस चिलचिलाती धूप में उसकी आंखें मुंदी जा रही थी। आंसुओं की एक गहरी लकीर उसके चेहरे पर स्पष्ट देखी जा सकती थी।
‘एक हमारे बच्चे हैं जिनसे अपना स्कूल बैग भी नहीं उठता और एक इस बच्ची को देखिए अपने भाई को कमर पर लादे टहल रही है।’
ड्राइवर भैया ने बैक मिरर से मेघा को देखा और मुस्कुरा दिया।
‘मैडम जी! कौन से भाई-बहन…’
‘मतलब!’
‘कोई जरूरी नहीं यह उसका भाई हो। यह लोग किराए पर बच्चे ले लेते हैं।’
अबकी चौंकने की बारी निखिल की थी।
‘किराए पर बच्चे? कौन देगा इन्हें…?’
‘इनके आस-पास अपने जैसे ही लोग रहते हैं जो आदमी काम पर नहीं जाता वह उनके बच्चों को अपने कमर पर लादे ऐसे ही चौराहों पर टहलता रहता है।’
‘ कोई अनजान लोगों को अपने बच्चे कैसे दे सकता है?’
मेघा की आंखों से ममत्व टपक रहा था। मेघा ने अक्षय के सिर पर हाथ फिराया और अपने सीने से चिपका लिया।
‘मैडम भूख और गरीबी अपना-पराया नहीं देखती। जो लोग बच्चों को किराए पर लेते हैं, कमाई का कुछ हिस्सा बच्चे के घरवालों को भी दे देते हैं। वैसे भी ये सब अगल-बगल ही तो रहते हैं। बच्चे भी उन्हें अच्छे से पहचानते हैं। फिर दिक्कत किस बात की।’
मेघा आश्चर्य से ड्राइवर को देखती रह गई। नैतिकता कहीं दूर कराह रही थी। जिस बच्चे को देख उसे दया आ रही थी अब वह भाव भाप बनकर उड़ चुका था। मेघा का अचानक से नजरिया बदल गया जो बच्चा अभी तक मासूम और हालात का मारा नज़र आ रहा था वह अचानक से पैसा कमाने की मशीन नज़र आने लगा था।
मेघा ने सुनहरे बालों वाली लड़की को आगे बढ़ने का इशारा किया पर वह वैसे ही खड़ी रही। मेघा उसकी इस हरकत पर खीझ गई।
‘कितनी ढीठ है।’
उसने कसमसा कर कहा। उसने अपने पर्स को खोला और जेब में एक अदद सिक्का टटोलने की नाकाम कोशिश की। एक-दो-तीन …तीनों चेन खोलने के बाद कहीं भी सिक्का नहीं मिला। सामान जरूर उलट-पुलट हो गया। वह झुंझला गई। सुनहरे बालों वाली लड़की बड़ी उम्मीद से उसे देख रही थी। मेघा ने कार की बगल वाली सीट पर पर्स को जोर से पटका और तेज आवाज़ में फटकारते हुए कहा
‘कुछ नहीं है, आगे बढ़ो।’
सुनहरे बालों वाली लड़की के होंठ बुदबुदाए वो शायद कुछ कह रही थी। मेघा ने हल्के से शीशे को खोला।
‘क्या है! क्या चाहिए तुम्हें?’
‘मैडम! अपनी घड़ी दे दो।’
‘ये?’
मेघा ने आश्चर्य और हिकारत भरी नजरों से उसकी ओर देखा।
‘हिम्मत तो देखो इन सब की!’
उसने मन ही मन बुदबुदाया। उसने अपने गुस्से पर काबू करते हुए कहा
‘क्या करोगी! समय भी देखना आता है?’
उस लड़की ने मुस्कुराकर उसकी ओर देखा और आगे बढ़ गई। उसकी मुस्कुराहट में ऐसा कुछ था जिसने मेघा को सोचने को मजबूर कर दिया। तब तक चौराहे की ट्रैफिक लाइट हरी हो गई और उसकी गाड़ी आगे बढ़ गई। मेघा सोच रही थी। सुनहरे बालों वाली लड़की का वर्तमान तो सामने ही दिख रहा था। भविष्य इससे कुछ अलग नहीं था और रहा अतीत की बात तो वह उसके वर्तमान की तरह ही खुरदरा था।
मेघा विचारों के सागर में डूब और उतर रही थी। आखिर वह लड़की उसकी घड़ी क्यों मांग रही थी। शायद उसे घड़ी सुंदर लगी थी और वह उसे पहनना चाहती थी या फिर शायद वह अपना वक्त बदलना चाहती थी जिसके कांटे ठहर गए थे जिसकी चुभन उसे टीस देती रहती थी। शायद उन कांटों के ठहरने के साथ उसकी जिंदगी भी कहीं न कहीं ठहर गई थी। क्या वक्त को सचमुच कोई बदल पाया है? क्या कलाई में घड़ी बांध भर लेने से वक्त बंध पाया है? सुनहरे बालों वाली लड़की न जाने कितने सवालों के साथ मेघा को छोड़ ओझल हो चुकी थी। कुछ सवालों के जवाब नहीं होते। शायद…?

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