तरक्की के आंकड़े और आर्थिक असमानता
राहत देने का प्रयास
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
आबादी और अशिक्षा
अशोक कुमार वर्मा, कुरुक्षेत्र
आईना दिखाता सच
एमएल शर्मा, कुरुक्षेत्र
बहुत कुछ शेष
भारत की चमकदार तस्वीर के बरअक्स एक और तस्वीर हमारे सामने है, जिसको नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सरकार एक कल्याणकारी योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को पांच किलो राशन हर महीने मुफ्त देती है। यानी आधी से अधिक आबादी अपनी ज़रूरत का पर्याप्त खाद्यान्न भी अपने दम पर जुटा नहीं पा रही। जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और स्वास्थ्य के मोर्चे पर दरपेश चुनौतियां भी किसी से छुपी नहीं हैं। इस परिदृश्य के आलोक में देश की तरक्की के आंकड़ों को रखकर देखा-परखा जाएगा तो निष्कर्ष कुछ और ही निकलेंगे। अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल
असमानता की खाई
भगवानदास छारिया, इंदौर
नीतियां बदलें
आर्थिक असमानता किसी भी लोकतांत्रिक मुल्क पर एक दाग है। माना कि देश की प्रगति में उद्योगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन बड़े औद्योगिक घरानों ने देश के प्रमुख आर्थिक संसाधनों पर कब्जा कर रखा है। उधर महामारी की चपेट में बंद हुए उद्योगों और रोज़गार देने वाली संस्थाओं ने असमानता की खाई को भयावह बना दिया। बहरहाल नए आंकड़े बताते हैं कि बढ़ती गरीबी और बढ़ते धनवानों की दौलत की तार्किक वजह ढूंढ़ना आसान नहीं। दौलत बंटवारे के ऐसे तर्कहीन आंकड़े किसी भी तरक्की पसंद मुल्क को परेशान करें तो आश्चर्य नहीं। लिहाज़ा गैरबराबरी को बढ़ाती नीतियों को बदलने की सख्त जरूरत है।
एमके मिश्रा, झारखंड
पुरस्कृत पत्र
आर्थिक विषमता
देश की तरक्की तब तक अधूरी है, जब तक आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा गरीब, भूखा और विभिन्न मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। देश में अमीर-गरीब के बीच जो खाई बढ़ रही है, उसका मुख्य कारण सरकारों का कमजोर वर्ग की तरफ ढुलमुल रवैया और भ्रष्टाचार है। सरकारें अपने वादों पर खरी नहीं उतरतीं। आज अमीरों के लिए बैंक की सुविधा आसान है, जबकि मध्यम और गरीब वर्ग के लिए कई पेचीदगियां हैं। जब तक सरकारें मजदूर और गरीब वर्ग के हित के लिए ईमानदारी से काम नहीं करेंगी और भ्रष्टाचार रहेगा तब तक अमीर-गरीब की खाई बढ़ती ही जाएगी। साथ ही विषमता की तस्वीर दिनप्रतिदिन डरावनी होती जाएगी।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर