तरक्की के आंकड़े और आर्थिक असमानता
राहत देने का प्रयास
देश की अर्थव्यवस्था में वृद्धि के बाह्य और आंतरिक पक्ष अमीर-गरीब जनता की तुलनात्मक असमानता का खुलासा करते हैं। सेंसेक्स की उछाल, विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि लेकिन 80 करोड़ जनता के आत्मनिर्भर न होने का सच सरकारी दावों की पोल खोलता है। गलत आर्थिक नीतियों का स्याह पहलू देश में भुखमरी, कुपोषण, बेकारी की मुंह बोलती तस्वीर है। लाभकारी आर्थिक योजनाओं को लागू करने से रोजगार को बढ़ावा मिलेगा। महंगाई पर नियंत्रण करना चाहिए। सरकारी खर्चों में कटौती करते हुए आमजन की आमदन पर टैक्स में राहत देनी चाहिए।
अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल
आबादी और अशिक्षा
भारत में तरक्की का सीधा लाभ उच्च वर्गीय परिवारों को अधिक एवं मध्य वर्गीय परिवारों को मध्यम जबकि कमजोर वर्गीय परिवारों को न के बराबर होता है। इसका मुख्य कारण गरीबी, धर्म और जाति में बंटे लोग अशिक्षा और साधनों की कमी के कारण और पिछड़ रहे हैं। भारतीय बहुसंख्यक लोगों की निम्न स्तर की आय होने का कारण बेरोज़गारी है और ठेका प्रथा भी है। इतना ही नहीं, अशिक्षा और गरीबी में फंसे लोगों की नाकामयाबी में जनसंख्या विस्फोट मुख्य कारण है। आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए सर्वप्रथम शिक्षा अनिवार्य हो।
अशोक कुमार वर्मा, कुरुक्षेत्र
आईना दिखाता सच
यदि धरातल के स्तर पर देखा जाए तो देश में गरीबी, आर्थिक असमानता, कानून व्यवस्था, नारी उत्पीड़न तथा युवतियों के साथ दुर्व्यवहार एवं हत्या जैसे अनेक विषयों की भयावह तस्वीर सबके सामने है। परन्तु देश की अर्थव्यवस्था के तेजी के साथ बढ़ने के जिस सुखद अहसास का स्वप्न हम देख रहे हैं वह सब आंकड़ों का खेल एवं भ्रमजाल है। जिसे अप्रत्याशित रूप से प्रचारित किया जा रहा है। 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन का सीधा अर्थ है गरीबों की संख्या अधिक है, बेरोजगारी बढ़ी है।
एमएल शर्मा, कुरुक्षेत्र
बहुत कुछ शेष
भारत की चमकदार तस्वीर के बरअक्स एक और तस्वीर हमारे सामने है, जिसको नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। सरकार एक कल्याणकारी योजना के तहत 80 करोड़ लोगों को पांच किलो राशन हर महीने मुफ्त देती है। यानी आधी से अधिक आबादी अपनी ज़रूरत का पर्याप्त खाद्यान्न भी अपने दम पर जुटा नहीं पा रही। जीवन प्रत्याशा, शिक्षा और स्वास्थ्य के मोर्चे पर दरपेश चुनौतियां भी किसी से छुपी नहीं हैं। इस परिदृश्य के आलोक में देश की तरक्की के आंकड़ों को रखकर देखा-परखा जाएगा तो निष्कर्ष कुछ और ही निकलेंगे। अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
ईश्वर चन्द गर्ग, कैथल
असमानता की खाई
वैसे तो देश विश्व की पांचवीं आर्थिक शक्ति बन गया है लेकिन अभी भी देश में भुखमरी, गरीबी और कुपोषण काफी है। आम आदमी को महंगी वस्तुएं खरीदने को बाध्य होना पड़ रहा है। शेयर बाजार की उछाल भी आम आदमी को उत्साहित नहीं कर पा रही है। आज क्रिकेटरों, फिल्मी कलाकारों को मिलने वाली राशियों के सामने आम आदमी को मिलने वाले चंद हजार रुपये के वेतन और तमाम टैक्सों से ओतप्रोत व्यापार से कमाया पैसा भी आर्थिक असमानता की खाई को मिटाने के लिए कम पड़ रहा है।
भगवानदास छारिया, इंदौर
नीतियां बदलें
आर्थिक असमानता किसी भी लोकतांत्रिक मुल्क पर एक दाग है। माना कि देश की प्रगति में उद्योगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। लेकिन बड़े औद्योगिक घरानों ने देश के प्रमुख आर्थिक संसाधनों पर कब्जा कर रखा है। उधर महामारी की चपेट में बंद हुए उद्योगों और रोज़गार देने वाली संस्थाओं ने असमानता की खाई को भयावह बना दिया। बहरहाल नए आंकड़े बताते हैं कि बढ़ती गरीबी और बढ़ते धनवानों की दौलत की तार्किक वजह ढूंढ़ना आसान नहीं। दौलत बंटवारे के ऐसे तर्कहीन आंकड़े किसी भी तरक्की पसंद मुल्क को परेशान करें तो आश्चर्य नहीं। लिहाज़ा गैरबराबरी को बढ़ाती नीतियों को बदलने की सख्त जरूरत है।
एमके मिश्रा, झारखंड
पुरस्कृत पत्र
आर्थिक विषमता
देश की तरक्की तब तक अधूरी है, जब तक आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा गरीब, भूखा और विभिन्न मूलभूत सुविधाओं से वंचित है। देश में अमीर-गरीब के बीच जो खाई बढ़ रही है, उसका मुख्य कारण सरकारों का कमजोर वर्ग की तरफ ढुलमुल रवैया और भ्रष्टाचार है। सरकारें अपने वादों पर खरी नहीं उतरतीं। आज अमीरों के लिए बैंक की सुविधा आसान है, जबकि मध्यम और गरीब वर्ग के लिए कई पेचीदगियां हैं। जब तक सरकारें मजदूर और गरीब वर्ग के हित के लिए ईमानदारी से काम नहीं करेंगी और भ्रष्टाचार रहेगा तब तक अमीर-गरीब की खाई बढ़ती ही जाएगी। साथ ही विषमता की तस्वीर दिनप्रतिदिन डरावनी होती जाएगी।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर