अमीरी-गरीबी के बीच बढ़ती खाई
विसंगति और संरक्षण
वैश्विक महामारी गरीबों के लिए एक अभिशाप बनकर कहर ढहा रही है। आर्थिक विषमता किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक चिन्ह नहीं माना जा सकता। देश की अर्थव्यवस्था पर, इस आर्थिक विषमता के दूरगामी प्रभाव देखने को मिलेंगे। सरकार को इस दिशा में समय रहते कदम उठाने की आवश्यकता है। हर बार बजट में सरकार को ऐसे प्रावधान करने होंगे, जिससे अगर निर्धन लोगों की आय में वृद्धि संभव नहीं हो सकती तो कम से कम महंगाई की मार उन पर न पड़े। सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
यवकृत वशिष्ठ, देहरादून
गंभीर प्रयास जरूरी
कोरोना काल के दौरान भारत में 4.6 करोड़ लोगों का गरीबी के दलदल में धंसना निश्चित रूप से चिंता का विषय है। स्थानीय मज़दूरों, रेहड़ी वालों, रिक्शा चलाने वालों और छोटी-मोटी फैक्टरियों में काम करने वालों को भी काम न मिल पाने के कारण कमाई में कमी आ गई। दूसरी ओर सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने, निजीकरण को बढ़ावा देने, बैंकों के एनपीए को बट्टे खाते में डालने, आर्थिक सुधारों के नाम पर श्रम कानूनों को पूंजीपतियों के हित में परिवर्तित करने के कारण अरबपतियों की आमदनी दोगुनी से अधिक हो गई। गरीबी के दलदल में फंसे लोग बुनियादी सुविधाओं, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित होते जा रहे हैं। इन सब समस्याओं के समाधान हेतु शिक्षा के प्रसार और रोज़गार के अवसरों में वृद्धि हेतु गंभीर प्रयास करने होंगे।
शेर सिंह, हिसार
समता की सोच
अमीरी-गरीबी के बीच बढ़ती खाई बेहद चिंताजनक है। संपन्न लोगों को अपने लोभ पर नियंत्रण रखकर जरूरतमंद लोगों का ख्याल रखना चाहिए। सरकारी नीतियां भी अमीरी-गरीबी की खाई को बढ़ाती जा रही हैं। समय आ गया है कि सरकारें जमीनी स्तर की नीतियां बनाएं, जिससे कमजोर व अभावग्रस्त लोग लाभान्वित हो सकें। महंगाई की मार सामान्य जनों पर ही ज्यादा पड़ती है। राजनीतिक दल अपने एजेंडे में अच्छी आर्थिक नीतियां लेकर आएं, जिससे कमजोर लोगों का भला हो सके। संपन्न लोग लाभ के पदों को छोड़ें, त्याग करें, दूसरे लोगों को आगे बढ़ने का भी मौका दें ताकि गैर बराबरी मिटाई जा सके।
प्रदीप गौतम सुमन, रीवा, म.प्र.
नीतियां बदलें
वैश्विक महामारी एक तरफ प्राणों पर भारी पड़ रही है तो दूसरी ओर निर्धन लोगों की रोजी-रोटी भी छीन रही है। देश की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा पहले से ही गरीबी रेखा से ऊपर आने के लिए संघर्ष कर रहा है। आर्थिक विषमता देश के विकास के मार्ग में एक चुनौती के रूप में सामने आने वाली है। सरकार ने गरीबी को नियंत्रित करने के लिए बहुत-सी योजनाएं चलाई हुई हैं जैसे मनरेगा, एमएसएमई प्रोत्साहन, मुद्रा ऋण आदि। लेकिन सरकार को आर्थिक विषमता की समस्या को हल करने के लिए हरेक बजट में दैनिक उपभोग की वस्तुओं को सस्ता करना चाहिए। मनरेगा का दायरा बढ़ाने तथा मुद्रा ऋण पर ब्याज दर कम करने की आवश्यकता है।
योगिता शर्मा, सुधोवाला, देहरादून
सामाजिक संतुलन हो
महामारी के दौरान अमीरी और गरीबी की खाई और बढ़ गई है। वहीं शेयर बाजार की तेज़ी अमीरों को और अमीर बना रही है। सरकारों की नीतियां भी अमीरों के लिए ही बनती हैं, गरीबों के लिए सिर्फ नारा बनता है। सरकार निचले तबके को राहत दें वहीं धनाढ्य वर्ग से अधिक टैक्स वसूलना चाहिए। आर्थिक असमानता दूर करने के लिए मजदूरों को वाजिब मजदूरी मिले, किसानों को उनकी उपज का उचित दाम मिले। वहीं गरीबों को उनके हक का भी नहीं मिल पाता है इसलिए ऐसी व्यवस्था को बदलना होगी। आर्थिक नीतियां और उदार बनानी होंगी। संतुलन ही अमीर और गरीब की खाई को पाट सकेगा।
भगवानदास छारिया, इंदौर, म.प्र.
असमानता खत्म करें
आर्थिक असमानता किसी भी लोकतांत्रिक देश पर एक दाग है। देश की प्रगति में उद्योगों की महत्वपूर्ण भूमिका है। निश्चित रूप से बड़े औद्योगिक घरानों ने देश के प्रमुख आर्थिक संसाधनों पर एक तरह से कब्जा कर रखा है। उधर महामारी के चलते बंद होते उद्योगों और रोज़गार देने वाली संस्थाओं ने असमानता की खाई को भयावह बना दिया। बहरहाल नए आंकड़े बताते हैं कि बढ़ती गरीबी और बढ़ती धनवानों की दौलत की तार्किक वजह ढूंढ़ना आसान नहीं। दौलत बंटवारे के ऐसे आंकड़े किसी भी तरक्की पसंद राष्ट्र को परेशान करें तो आश्चर्य नहीं। लिहाज़ा गैर-बराबरी को बढ़ा रही नीतियों को बदलने की सख्त जरूरत है।
एमके मिश्रा, रांची, झारखंड
पुरस्कृत पत्र
विसंगतियां दूर हों
सवाल उठता है कि जब कोरोना काल में आम लोगों की आमदनी में कमी हुई तो अमीर लोग पहले से भी ज्यादा अमीर कैसे हो गए। यह सब आर्थिक गतिविधियां बहुत मंद होने तथा गलत आर्थिक नीतियों के कारण ही हुआ है। अगर देश में आर्थिक असमानता, गरीबी तथा बेकारी को दूर किया जाना है तो सरकार को अमीर लोगों पर प्रगतिशील कर लगाने चाहिए। लघु, कुटीर तथा ग्रामीण उद्योगों को प्रोत्साहन देने के साथ कृषि के विकास की तरफ ध्यान देना पड़ेगा। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों की कार्यकुशलता को बढ़ाना पड़ेगा। आर्थिक नीतियों में तब्दीली करनी पड़ेगी, फिजूल सरकारी खर्चे में कमी करनी पड़ेगी।
शामलाल कौशल, रोहतक