बढ़ते खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से बढ़ेगा निर्यात व रोजगार
हाल ही में भारत को ‘दुनिया की खाद्य टोकरी’ के रूप में प्रदर्शित करने के उद्देश्य से दिल्ली में आयोजित वर्ल्ड फूड इंडिया से यह स्वर उभरा कि भारत का खाद्य प्रसंस्करण (फूड प्रोसेसिंग) सेक्टर एक ऐसा उभरता उद्योग है, जिसमें पिछले नौ वर्षों में 50 हजार करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) हुआ है और भारत की खाद्य प्रसंस्करण क्षमता 15 गुना से अधिक बढ़कर 12 लाख टन से दो सौ लाख टन हो गई है। देश के कुल कृषि निर्यात में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी 13 से बढ़कर 23 प्रतिशत हो गई है। प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्यात में 150 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
भारत में खाद्य प्रसंस्करण के तहत पांच क्षेत्र हैं। पहला, डेयरी क्षेत्र, दूसरा, फल एवं सब्जी प्रसंस्करण, तीसरा, अनाज का प्रसंस्करण, चौथा, मांस मछली एवं पोल्ट्री प्रसंस्करण तथा पांचवां, उपभोक्ता वस्तुएं पैकेट बंद खाद्य और पेय पदार्थ। सरकार द्वारा देश में खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर के तहत इन पांचों क्षेत्रों की व्यापक संभावनाओं के विस्तार के लिए कई कदम उठाए गए हैं। छोटे फूड प्रोसेसिंग उद्योगों को वित्त, तकनीक और अन्य तरह की मदद पहुंचाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की ‘केन्द्रीय प्रायोजित पीएम फॉर्मलाइजेशन ऑफ माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइजेज योजना’ आगे बढ़ रही है। इस योजना के तहत 2020-21 से 2024-25 तक 10,000 करोड़ रुपये के खर्च किए जाने सुनिश्चित किए गए हैं। इस योजना के तहत राज्यों की जिम्मेदारी है कि वे कच्चे माल की उपलब्धता का ध्यान रखते हुए हर जिले के लिए एक खाद्य उत्पाद की पहचान करें। ऐसे उत्पादों की सूची में आम, आलू, लीची, टमाटर, साबूदाना, कीनू, पेठा, पापड़, अचार, बाजरा आधारित उत्पाद, मछली पालन, मुर्गी पालन भी शामिल हैं। पिछले तीन वर्षों से वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के आधार पर चुने गए उत्पादों का प्रोडक्शन करने वाले उद्योगों को प्राथमिकता के आधार पर मदद दी जा रही है। हिमाचल प्रदेश से काले लहसुन, जम्मू-कश्मीर से ड्रैगन फ्रूट, मध्य प्रदेश से सोया दूध पाउडर, लद्दाख से सेब, पंजाब से कैवेंडिश केले, जम्मू से गुच्ची मशरूम और कर्नाटक से कच्चा शहद जैसे खाद्य प्रसंस्कृत उत्पादों का निर्यात तेजी से बढ़ रहा है। साथ ही अब मोटा अनाज जैसे खाद्य प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का निर्यात बढ़ रहा है।
वहीं कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के अंतर्गत विभिन्न फलों, खाद्यान्नों और फूलों की खेती के लिये ईपीएफ का गठन किया गया है। मौजूदा ‘कृषि-क्लस्टरों’ को मजबूत करने और अधिक उत्पाद-विशेष वाले कलस्टर बनाने पर भी जोर दिया गया है। एपीडा को श्रीअन्न के प्रचार-प्रसार की जिम्मेवारी सौंपी है और उसके संसाधन बढ़ाए हैं। एपीडा ने एक कदम और बढ़ाते हुए श्रीअन्न की खपत और कारोबार को प्रोत्साहित करने के लिए श्रीअन्न ब्रांड का निर्माण किया है। रेडी टू ईट और रेडी टू सर्व के अनुकूल श्रीअन्न पर आधारित सैंपल और स्टार्टअप जुटाए जा रहे हैं, जो ज्वार-बाजरा, रागी एवं अन्य मोटे अनाजों से नूडल्स, बिस्कुट, ब्रेकफास्ट, पास्ता, सीरियल मिक्स, कुकीज, स्नैक्स एवं मिठाइयां आदि बना सकें, ताकि विश्व बाजार में निर्यात को बढ़ावा देने में सहूलियत हो सके।
केंद्र सरकार ने उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए 10,900 करोड़ रुपये आवंटन के साथ जो पीएलआई योजना लागू की है उससे मूल्यवर्धित खाद्य उत्पादों को बढ़ावा मिल रहा है। इसके तहत रेडी टू ईट और रेडी टू कुक, डेयरी क्षेत्र, फल एवं सब्जी प्रसंस्करण, अनाज का प्रसंस्करण, मांस, मछली, पोल्ट्री प्रसंस्करण, उपभोक्ता वस्तुएं, पैकेट बंद खाद्य और पेय पदार्थ के विनिर्माताओं को उनकी निवेश और संवर्धित बिक्री की प्रतिबद्धता के आधार पर प्रोत्साहन दिया जा रहा है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को प्रोत्साहन देने के इन कदमों के साथ-साथ सितंबर, 2020 में कृषि इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के लिए सुनिश्चित किए गए एक लाख करोड़ रुपये की वित्तपोषण सुविधा से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग लाभान्वित होते हुए दिखाई दे रहा है। खाद्य प्रसंस्करण को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार लॉजिस्टिक्स क्षेत्र को बुनियादी ढांचे का दर्जा दे चुकी है। इससे सस्ते कर्ज के साथ निर्यात में प्रतिस्पर्धी माहौल बना है। साथ ही देश में वर्ष 2020 से शुरू की गई किसान ट्रेनें भी खाद्य प्रसंस्करण बढ़ाने में अहम भूमिका निभाते हुए दिखाई दे रही हैं।
महत्वपूर्ण यह है कि सरकार ने फसल कटाई के बाद की सुविधाएं विकसित करने और शीतगृह का बुनियादी ढांचा विकसित करने का उद्देश्य रखने वाली इकाइयों के लिए 100 फीसदी एफडीआई की इजाजत सुनिश्चित की है। वस्तुत: खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र कृषि और विनिर्माण दोनों क्षेत्रों का महत्वपूर्ण घटक है। जहां खाद्य प्रसंस्करण कृषि क्षेत्र में किसानों की आय बढ़ाने में मदद करता है, वहीं इसकी बदौलत फसल उत्पादन में वृद्धि और उसका मूल्यवर्धन होता है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से उपज का अधिकतम इस्तेमाल हो पाता है और प्रसंस्कृत वस्तुएं उपभोक्ताओं तक सुरक्षित और साफ-सुथरी स्थिति में पहुंच पाती हैं। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों और महिलाओं के रोजगारपरक क्षेत्रों में अहम है। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र कई अन्य पूंजी आधारित उद्योगों की तुलना में ज्यादा रोजगार प्रदान करता है। विनिर्माण क्षेत्र में पूंजी गहन उत्पादन को तरजीह तथा स्वचालन, रोबोट, इंटरनेट आफ थिंग्स जैसे उभरती प्रौद्योगिकी नवप्रवर्तन से रोजगार के खतरे को देखते हुए बड़ी संख्या में कार्यबल को रोजगार देने के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की आवश्यकता बढ़ गई है।
नि:संदेह खाद्य प्रसंस्करण से बहुत अच्छे कृषि आधार भारत के पास हैं। इस समय पूरी दुनिया में भारत को खाद्यान्न का नया वैश्विक कटोरा माना जा रहा है। दुनिया में भारत सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बना हुआ है। गेहूं तथा फलों के उत्पादन के मामले में भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर तथा सब्जियों के उत्पादन में तीसरे स्थान पर है। विश्व स्तर पर, भारत केला, आम, अमरूद, पपीता, अदरक, भिंडी, चावल, चाय, गन्ना, काजू, नारियल, इलायची और काली मिर्च आदि के प्रमुख उत्पादक के रूप में जाना जाता है। लेकिन फिर भी इनमें खाद्य प्रसंस्करण के मामले में भारत बहुत पीछे है। लेकिन भारत में खाद्य उत्पादन के प्रसंस्करण का स्तर विश्व के अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल खाद्य उत्पादन का 10 फीसदी से भी कम हिस्सा प्रसंस्कृत होता है। जबकि फिलिपींस, अमेरिका, चीन सहित दुनिया के कई देशों में खाद्य प्रसंस्करण भारत की तुलना में कई गुना अधिक है। खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर में पीछे रहने का एक बड़ा कारण खाद्यान्न भंडारण में बहुत पीछे होना भी है। अनाज के अन्य बड़े उत्पादक देशों चीन, अमेरिका, ब्राजील, यूक्रेन, रूस और अर्जेन्टीना के पास खाद्यान्न भंडारण क्षमता वार्षिक उत्पादन की मात्रा से कहीं अधिक है।
इस समय देश का अनुमानित खाद्यान्न उत्पादन लगभग 3305 लाख टन है, जबकि भंडारण क्षमता कुल उत्पादन का केवल 47 प्रतिशत ही है। इस समय समुचित संरक्षण के अभाव में बर्बाद होने से बचाने के लिए देश में खाद्यान्न भंडारण की जो क्षमता फिलहाल 1450 लाख टन की है, उसे अगले 5 साल में सहकारी क्षेत्र में 700 लाख टन अनाज भंडारण की नई क्षमता विकसित करने के मद्देनजर लगभग एक लाख करोड़ रुपये के खर्च के साथ 31 मई, 2023 स्वीकृत हुई योजना के कारगर क्रियान्वयन पर ध्यान देना होगा।
लेखक अर्थशास्त्री हैं।