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ग्रेट वॉल से लेकर शंघाई के ऐतिहासिक बाज़ारों तक

08:10 AM Nov 15, 2024 IST
ग्रेट वॉल से लेकर शंघाई के ऐतिहासिक बाज़ारों तक
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अमिताभ स.
चीन घूमने जाएं, तो सबसे यादगार अनुभव है ग्रेट वॉल ऑफ चाइना पर चढ़ना और फ़ोटो खिंचवाना। अब तो चीन की महान दीवार न्यू सेवन वंडर्स में शुमार है। वाकई अजूबा है अजूबा! करीब 6400 किलोमीटर से ज्यादा लंबी है। हर साल सवा करोड़ से ज्यादा पर्यटक इस पर चढ़ते हैं, और इनसे कई गुणा चढ़ने के लिए मौक़े की तलाश में आतुर रहते हैं। इतिहास बताता है कि मंगोलो के हमलों से बचने के लिए चीन ने इतनी लम्बी, ऊंची और बड़ी दीवार खड़ी कर दुनिया को अचम्भे में डाल दिया था। सुनी-सुनाई बातों पर यक़ीन करें, तो कहते हैं कि अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखें, तो एकमात्र ग्रेट वॉल ऑफ चाइना ही ज़रा-ज़रा दिखाई देती है।

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हज़ारों साल का इतिहास

यूं तो, दीवार चीन के बड़े हिस्से से गुजरती है, लेकिन बीजिंग से दो घंटे के सड़क सफर की दूरी पर है। आगे पैदल या रोप-वे ट्रॉली से पहाड़ों के ऊपर बनी दीवार पर चढ़ जाते हैं। पैदल दीवार तक पहुंचने में 3 से 4 घंटे लगते हैं। बीजिंग से करीब 70 किलोमीटर परे ग्रेट वॉल का यह हिस्सा सबसे ज्यादा मजबूत और चढ़ने लायक है। इस हिस्से की लम्बाई 3741 मीटर है। ​साफ मौसम में, दीवार पर सुबह-सवेरे सूर्योदय का नजारा दिलकश लगता है। उधर कोहरे के दिनों में तो दीवार रोमाचंक हो उठती है। कहीं-कहीं एकदम तीखी चढ़ाई है और जमीन के पत्थर भी घिसे हैं। इसलिए पैर फिसल-फिसल जाते हैं। सो, पाइप पकड़-पकड़ कर चढ़ना-उतरना पड़ता है।
दीवार की सैर के लिए अक्तूबर सबसे बेहतर है। इस पर पर्यटकों के मेले तो सारा साल ही लगे रहते हैं। गिफ़्ट आइटम और सौगातें बेचते हॉकर दीवार पर ही डेरा जमाए रहते हैं। चीनी मान्यता है कि ग्रेट वॉल पर न चढ़ने वाला अच्छा चीनी नहीं होता। चीनी इस कायदे का कड़ाई से पालन करते हैं, इसलिए ज़िंदगी में एक दफ़ा इस पर जरूर चढ़ते हैं। और फिर, ऐतिहासिक, बेमिसाल और देखने लायक ग्रेट वॉल का निर्माण ईसा पूर्व सातवीं और छठी सदी में शुरू तो हुआ। लेकिन करीब 2000 सालों तक 20 से ज्यादा राजा और राज वंशों ने दीवार का निर्माण जारी रखा। ग्रेट वॉल का निर्माण खासा जोखिम भरा रहा। बताते हैं कि निर्माण के दौरान हर 100 मीटर दीवार खड़ी होने में 2000 मजदूर मरते गए।

सेहत को सुकून

करीब 22 साल पहले, सन‍् 2002 से चाइना ईस्ट एयरलाइंस ने नई दिल्ली से बीजिंग तक सीधी उड़ानें शुरू कीं, हिन्दुस्तानी पर्यटकों ने चीन की सैर का रुख ही कर लिया। चीन के खासमखास शहरों में, राजधानी बीजिंग और वित्तीय राजधानी शंघाई हैं। फिर नजिंग और शेनजेन का नम्बर आता है। बीजिंग की आबादी दिल्ली जितनी करीब 2 करोड़ ही है।
पुराना और ऐतिहासिक शहर है बीजिंग। जगह- जगह फुटपाथों पर खुले और मुफ्त जिम बने हैं। लोग देर रात-रात तक जिमों में कसरत करते देखे जा सकते हैं। इन की देखा-देखी ही भारत के महानगरों के बागों में जिम बनाने का चलन चला। हर ओर लोगों की भीड़ है और साइकिलों की भी। अपनी दिल्ली की तरह साइकिल और रिक्शानुमा ठेले आम नजर आते हैं। साइकिलों के लिए सड़क के एक ओर अलग ट्रेक हैं। करीब-करीब हर फुटपाथ पर साइकिल स्टैंड बने हैं, ताकि लोगों को अपनी साइकिलें खड़ी करने में दिक्कत पेश न आए।

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...और भी बहुत कुछ

ग्रेट वॉल के अलावा बीजिंग में घूमने लायक हैं फोरबिडन सिटी, समर पैलेस, टेम्पल ऑफ हैवन, इम्पीरियल टोम्स वगैरह। खरीदारी के शौकीनों के लिए अलग-अलग मार्केट हैं- फूलों की फ्लावर मार्केट, औरतों की शॉपिंग के लिए लेडी स्ट्रीट और न जाने क्या-क्या। चीन की चाय और सिल्क वर्ल्ड फेमस है। चाय की दुकानों पर ढेरों फ्लेवर होते हैं। हर चाय पत्ती पसंद कराने के लिए चाय बना और पिला कर बाकायदा टेस्ट करवाते हैं। ताकि पसन्दीदा जायके की चाय खरीद सकें।

गर्मी यानी छुट्टी

बीजिंग के लोग गर्मी से खासे घबराते हैं। तापमान 40 डिग्री सेल्सियस हुआ नहीं कि स्कूल, कॉलेज और ऑफिसों में छुट्टी का ऐलान हो जाता है। इसलिए आमतौर पर चीनी सरकार का मौसम विभाग 40 डिग्री सेल्सियस तापमान होने के बावजूद अधिकारिक तौर पर सूचना सार्वजनिक नहीं करता। ताकि लोगों में घबराहट न पैदा हो जाए।
चीन के महान विचारक कंफ्यूजियस के चिंतन का चीनियों पर गहरा प्रभाव है। चीनी उन्हें भगवान मानते हैं। हाालांकि, वहां बौद्ध धर्म प्रमुख है। सन‍् 1980 से कुछ साल पहले तक चीन में एक दम्पति-एक संतान का कायदा था। नतीजा यह हुआ कि आज करीब 40 साल तक की उम्र वाले किसी चीनी का कोई भाई या बहन नहीं है। खैर, अब तो भाई-बहन होने और बनने लगे हैं।

चाइनीज फूड

चाइनीज फूड ने तो सारी दुनिया में धाक जमाई है। चाउमिन, मंचूरियन, स्वीट कॉर्न सूप, स्प्रिंग रोल, मोमोज वगैरह सारी दुनिया के बच्चे-बड़े चाव से खाते हैं। इसीलिए हर देश में चाइनीज रेस्टोरेंट खुल चुके हैं। चीनी पतंगें भी दुनिया भर में मशहूर हैं। पतंगों पर ही नहीं ड्रेगन उनकी कथा-कहानियों में भी रचा-बसा है। चीन का राष्ट्रीय जानवर पांडा है। रंग काला-सफेद होता है। चीन अपने पांडा दुनिया के दूसरे देशों के चिड़ियाघरों को बढ़-चढ़ तक गिफ़्ट करता है।

सभी चित्र लेखक

पुराना है, नया भी

शंघाई बेशक पुराना शहर है, लेकिन तरक्की और विकास के मामले में किसी यूरोपीय या अमेरिकी शहर से पीछे नहीं है। शंघाई की ओल्ड स्ट्रीट 700 साल पुराना बाजार है। करीब सवा आठ सौ मीटर लम्बा और दुकानें करीब सवा दो सौ होंगी। यूआन गार्डन को ओल्ड स्ट्रीट को स्माल कॉम्युडिटीज किंगडम भी कहते हैं। क्योंकि यहां पारम्परिक चीनी संस्कृति के साज- सामान के 30 से ज्यादा स्टोर हैं। यहीं है सबसे पुरानी सन‍् 1798 से चालू कैंचियों की निराली दुकान। यहां 1000 से ज्यादा अलग-अलग किस्म की कैंचियां बिकती हैं। देखेंगे, तो दंग रह जाएंगे। इसे ‘शंघाई फेमस ब्रेंड’ का दर्जा हासिल है। यहीं और है सन‌् 1888 से चालू किस्म- किस्म के पंखों की दुकान। कंघी, छड़ी, चॉपस्टिक्स और म्यूजिकल यंत्रों की दुकानें भी हैं, जो किसी म्यूजियम से कम नहीं लगतीं।

कितनी दूर..

* हवाई सफर से दिल्ली से बीजिंग पहुंचने में करीब 7 घंटे लगते हैं। और समय के लिहाज़ से, चीन भारत से ढाई घंटे आगे है।
* सैर-सपाटे के लिए चीन सारा साल ही अच्छा मौसम रहता है।
* चीन की करेंसी ‘आरएमबी’ है। आजकल एक आरएमबी करीब 13 रुपये का है।

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