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जिस पार्टी का सूटकेस भारी... उसी से यारी

06:50 AM Nov 17, 2023 IST

मनीष कुमार चौधरी

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दलबदलू यानी राजनीति का ऐसा विचित्र चरित्र, जिसने राजनीति की साम, दाम, दण्ड, भेद जैसी परंपराओं को अक्षुण्ण बनाए रखा है। हिरण की तरह कुलांचे भरने वाला, बंदर की तरह गुलाटी मारने वाला ऐसा निराला प्राणी, जो सब राजनीतिक पार्टियों की नाक में दम किए रहता है। कबड्डी का शौकीन। हू...तू..तू.. करता हुआ विपक्षी पाले में घुसता है, लेकिन ज्यादा देर वहां नहीं टिकता। एक-दो को छूकर लौट आता है। कोई उसे पकड़ ही नहीं सकता। कारण, जिस दल में सत्ता की मलाई उसे थोड़ी भी ज्यादा नजर आती है, वह उसी का हो जाता है। दलबदलू की पूछ-परख इसी से होती है कि वह कितने दल बदलता है। यदि वह बार-बार दल नहीं बदले तो लोग उसे कुएं का मेंढक कहने लगते हैं। बेपेंदी के लोटे की तरह कभी इधर लुढ़कता है, तो कभी उधर।
दलबदलू में भाईचारे की भावना इतनी प्रबल होती है कि दो मिनट पहले जिस दल को वह घोर निकम्मा और भ्रष्टाचारियों का अड्डा कहकर पुकार रहा होता है, डील होने के दो मिनट बाद उस दल को देश की प्रतिष्ठा का सूचक बताने लगता है। राजनीति में कोई दोस्त-दुश्मन नहीं होता, जाने कब किसे दोस्त बनाकर उससे दुश्मनी निकालने पड़े। जिस दल ने इस पर बेपनाह आरोप लगाए होते हैं, उस दल में प्रवेश के समय ‘बीत गयी सो बीत गयी’ कहकर आरोपों को दरकिनार कर देता है और नयी पार्टी के नेताओं के साथ अंगुलियों से ‘वी-वी’ करने लगता है।
दल बदलने में नाकामी मिलने पर दलबदलू कभी निराश नहीं होता। निर्दलीय बनकर वोट काटने की युक्ति के अलावा किसी के भी समर्थन में वह बैठ सकता है। खड़े होने-बैठने की इस प्रक्रिया में वह अपना भला करना नहीं भूलता। खोखों से नीचे वह बात ही नहीं करता और आश्वासनों के बल पर एक साथ चार-पांच दलों को वह रिझाए रखता है। सबको इस असमंजस में रखता है कि अगर उससे बनाकर रखी जाए तो वह किसी के भी साथ हो सकता है। हरे पत्ते पाए बिना वह एेन वक्त तक अपने पत्ते नहीं खोलता। रंग बदलने में इतना प्रतिभाशाली होता है कि गिरगिट भी शरमा जाए। कभी-कभी दल बदलने की उसकी प्रक्रिया इतनी गति पकड़ लेती है कि बाथरूम में किसी पार्टी का रंग लगाकर जाता है और बाथरूम से जब बाहर आता है तो चेहरे पर किसी अन्य पार्टी का लोशन लगा होता है। रात को चादर किसी पार्टी की ओढ़कर सोता है, सुबह उठता है तो चादर किसी और पार्टी की होती है। लंच किसी दल के साथ लेता है, तो डिनर किसी और दल के साथ। दलबदलू को अपनी इमेज बनाए रखने के लिए यह सब करना जरूरी होता है। यह किसी एक पार्टी का नहीं होता, फिर भी सब पार्टियों की आंखों का तारा होता है।

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