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भूला गया वानप्रस्थ

06:27 AM Aug 28, 2023 IST

धर्मेश बोहरा

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वानप्रस्थ भारतीय संस्कृति का वह पहलू है जिसे विस्मृत कर देना संस्कृति में आवश्यक माना जा रहा है। छात्र जीवन के बाद विरले ही कोई इस आश्रम का नाम लेता हो और चालीस पार करने के बाद तो इसका नाम लेना पाप माना जाता है। आजकल हम संयुक्त परिवार, माता-पिता की सेवा और श्रवण कुमार की गाथा गाते हैं। श्रवण ने माता-पिता की क्या इच्छा पूरी की? तीर्थ यात्रा! आपने कब सोचा तीर्थ जाने के लिए? उन्हें तो अंधेपन ने बेटे का सहारा लेने के लिए बाध्य किया वरना वह खुद वानप्रस्थ लेते और चल देते। बस अपने मतलब की प्रेरणा लीजिएगा? आजकल चलन हुआ है, शायद पुरुषों में अधिक है, बुढ़ापे में साथ नहीं बैठता जैसी कहानियां-किस्से और फ़ेसबुकिया पोस्ट लिखने का।
वैसे भी यह बुढ़ापा और नीरसता मध्य वर्ग का रोग है। सेवानिवृत्त जज साहब, बाबू साहब, प्रोफ़ेसर साहब किसी न्यायाधिकरण, प्राधिकरण, आयोग या समिति में बैठकर राज करते हैं तो बड़े उद्योगपति किसी फाउंडेशन, समिति, संस्था, ट्रस्ट आदि में जा समाज की सेवा करते हैं। वकील साहब, डाक्टर साहब सब अपने धंधे के नाम, प्रकार-आकार बदल कर मरने तक खोले रहते हैं। इनमें से तो कोई नहीं कहता, बहुत सेवा कर ली, अब बच्चे सेवा करें। निम्न वर्ग तो चर्चा से बाहर ही है, मरने तक कमाते रहिए। मध्यवर्ग को मात्र रोना आता है। यह आदत ही इनका बुढ़ापा हो जाती है। जिसने भी अपनी जवानी में अपने बूढ़े मां-बाप को गांव में छोड़ दिया और अपनी पत्नी को दोष पड़ते रहने दिया, अब ‘बच्चे नालायक हैं’ का गाना गाते हैं। ऊपर से तुर्रा यह कि उनका बुढ़ापा नहीं पचास साला सनक थी और हमारा साठ साला बुढ़ापा। मजे हैं, रहिए जिंदा लंबा, मत सुनिए –रहिमन विपदा हू भली, जो थोड़े दिन होय– आप महामारी बन कर अपने जीवन पर पड़े हैं।
सोचिए न कभी जिस उम्र में आपके मां-बाप बूढ़े होने लगे आज आपके उस उम्र के बच्चे आपकी सेवा कर रहे हैं। इंसान की लंबी उम्र बच्चों के जीवन पर सिरदर्द न हो, इसलिए ही तो वानप्रस्थ है। आप समाज के लिए और समाज आपके लिए। आपको पश्चिमी देशों के वृद्धाश्रम में दोष निकालने से फुर्सत हो तब न वानप्रस्थ समझिएगा। अब औलाद औरंगजेब न बने तो क्या करे, समय पर हज के लिए निकल लें तो पत्नी की कब्र पकड़ कर न रोना पड़े। बच्चों को बांधने और उनके आपके बंद कमरे में आने का इंतजार करने से बेहतर है, खुद को अपने आप से, अपने कमरे से और अपनी सनक से आजाद करें। बूढ़ों के नाम पर लिखी हिन्दी कहानियां न पढ़ें तो बेहतर। कुछ करते रहिये। बुढ़ापे में भी। यह करना सिर्फ कमाना ही नहीं।
साभार : गहराना डॉट कॉम

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