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आक्सीजन के स्रोत जंगल

12:06 PM May 03, 2021 IST

स्थानीय भागीदारी
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वन-संपदा मानवीय जीवन की अमूल्य धरोहर होती है। उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से पर्यावरण को भारी नुक़सान हुआ है। कोरोना-काल में आक्सीजन की भारी कमी महसूस की जा रही है। वनों से ही मिलने वाली आक्सीजन से हमारा वातावरण सुधरता है। जंगलों में आग का लगना शासन-प्रशासन की घोर लापरवाही को दर्शाता है। स्थानीय लोग अगर अपनी कुछ जरूरतों को पूरा करने के लिए जंगलों को जलाते हैं तो प्रशासन को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। स्थानीय लोगों की भागीदारी द्वारा प्रोत्साहन देकर जंगलों को बचाया जाना चाहिए।

सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम

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पौधारोपण को बढ़ावा

मार्च, 2020 में जब लॉकडाउन लगाया गया तो ध्वनि प्रदूषण, वायु प्रदूषण और नदी नालों का प्रदूषण भी न्यूनतम स्तर पर आ गया था। वातावरण को ऑक्सीजन देने वाले पेड़-पौधों की कटाई न्यूनतम होगी तो वातावरण में ऑक्सीजन ज्यादा उत्सर्जित होगी। उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से पुराने वृक्ष जो कि ऑक्सीजन के बड़े स्रोत नष्ट माने जाते थे, अग्निकांड में भस्म हो गए। वातावरण में ऑक्सीजन उत्सर्जन करने वाले पेड़-पौधों की रक्षा करके ही पर्यावरण संरक्षण किया जा सकता है। इसलिए मानसून सीजन में अधिकाधिक पौधारोपण को बढ़ावा दिया जाए।

युगल किशोर शर्मा, खाम्बी, फरीदाबाद

स्वच्छ पर्यावरण हेतु

हमारे वातावरण में प्राणवायु अशुद्ध होने के कारण प्रकृति प्रदत्त सौगात पेड़ों, जंगलों का अग्नि की भेंट चढ़ना मनुष्य के स्वार्थ का ही परिणाम है। विकास की दौड़ में पेड़ों का अवैध कटान वातावरण प्रदूषण बढ़ाने में पर्याप्त है। वहीं दूसरी ओर, वृक्ष ऑक्सीजन मुहैया करवाने के नि:शुल्क कारखाने हैं। वृक्षों की कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध होना चाहिए। अधिक से अधिक पेड़ लगाकर उन्हें उचित संरक्षण प्रदान कर वन महोत्सव की सार्थकता सिद्ध करनी होगी। वातावरण की शुद्धता के लिए वनस्पतियों का महत्व महामारी काल के दौरान रामबाण साबित हो सकता है।

अनिल कौशिक, क्योड़क, कैथल


सेहत की शर्त

उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग लोगों की लापरवाही का कारण है। वन न केवल अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, बल्कि जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन देकर हमें कृतार्थ करते हैं। आज कोरोना महामारी के दूसरे दौर में जिस तरह से संक्रमित लोग ऑक्सीजन के न मिलने से बेमौत मारे जा रहे हैं, उससे हम ऑक्सीजन के महत्व को अच्छी तरह समझ सकते हैं। हमें न केवल वनों की अंधाधुंध कटाई रोकनी चाहिए, बल्कि जलने से भी बचाना चाहिए। ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण करना चाहिए। हमारी संस्कृति में वनों का विशेष महत्व है।

शामलाल कौशल, रोहतक


सामूहिक जिम्मेदारी

वातावरण में दूषित हवा से लाखों जिंदगियां मौत के मुंह में चली जाती हैं। पेड़-पौधे ऑक्सीजन का मुख्य स्रोत हैं। देश में बढ़ रही बेहिसाब आबादी का दबाव वन संपदा पर भी पड़ा है। वन विभाग द्वारा प्रत्येक वर्ष पौधारोपण के जो आंकड़े प्रकाशित किए जाते हैं वे आंकड़े वास्तविकता से कोसों दूर होते हैं। देखरेख के अभाव में अधिकांश पौधे सूख जाते हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों अथवा अन्य मार्गों पर जिस तरह की हरियाली होनी चाहिए वह अभी तक नहीं है। व्यक्तिगत स्तर पर भी लोगों को वृक्षों के महत्व को समझाना होगा।

सुरेन्द्र सिंह ‘बागी’, महम


प्राणवायु की रक्षा

उत्तराखंड का हिमालयी जंगल अपने हरे-भरे पेड़-पौधों, दुर्लभ वनस्पतियों के लिए पूरे विश्व में विशेष महत्व रखता है। इस मौसम में वन क्षेत्र की आग अनियंत्रित होना स्थानीय लोगों की जंगल के प्रति बेरुखी और प्रशासन की उदासीनता को ही उजागर करता है। जीवन के लिए एक सिलेंडर भर आक्सीजन कितनी कीमती होती है, कोरोना संकट काल ने एक बार फिर इसका अहसास करा दिया है। पेड़ों को बचाने के लिए सरकार द्वारा इस मद में वित्तीय आवंटन बढ़ाकर स्थानीय लोगों की भागीदारी से वन क्षेत्र के पोषण की जरूरत है।

देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद


पुरस्कृत पत्र

संरक्षण से संतुलन

कोरोना की बढ़ती और बेकाबू होती रफ्तार ने सरकार और आमजन को आक्सीजन की कीमत का अहसास करा दिया है। कभी इस बात को गंभीरता से लिया ही नहीं गया कि आक्सीजन पैदा होने के स्रोत क्या हैं। मान लिया जाता है कि पेड़-पौधों का काम ही मानव जाति के लिए आक्सीजन तैयार करना है। अब जब आक्सीजन की कमी हो रही है तो उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग की तरफ ध्यान गया है। प्राकृतिक रूप से मिलने वाली सरल, सुलभ आक्सीजन को प्राप्त करने की चाबी हमारे हाथ में है। बस उसे प्रयोग करने का तरीका बदलने की जरूरत है। पर्यावरण का संतुलन पेड़ बनाते हैं और पेड़ों को मनुष्य लगाते हैं तो फिर दूसरे-तीसरे की तरफ देखने की आवश्यकता ही नहीं है।

जगदीश श्योराण, हिसार

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