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अन्न-धन की रक्षा

11:36 AM Jun 02, 2023 IST

सीमित भौगोलिक क्षेत्र और दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाले देश को आने वाले समय के लिये अनाज के एक-एक दाने की रक्षा करनी होगी। वह भी ऐसे में जब किसान का खेती से मोहभंग हो रहा है। वहीं दूसरी ओर जब विकास कार्यों तथा आवासीय-कारोबारी निर्माण के लिये बड़े पैमाने पर कृषि भूमि का उपयोग हो रहा है, भंडारण क्षमता बढ़ाना जरूरी हो जाता है। रूस-यूक्रेन युद्ध से बाधित हुई खाद्यान्न आपूर्ति शृंखला के चलते दुनिया के तमाम देश खाद्यान्न संकट से जूझ रहे हैं। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते मौसम के मिजाज में आये अप्रत्याशित बदलाव से अनाज की गुणवत्ता और मात्रा पर असर होने लगा है। किसी संप्रभु राष्ट्र के लिये खाद्यान्न की आत्मनिर्भरता अपरिहार्य ही है। ऐसे में केंद्रीय कैबिनेट द्वारा बुधवार को लिये गये उस फैसले की सराहना की जानी चाहिए, जिसमें सहकारी क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना को मंजूरी दी गई है। जिसके अंतर्गत अन्नदाता के उत्पादों को बचाने के लिये ब्लॉक स्तर पर पांच सौ से दो हजार मीट्रिक टन क्षमता वाले गोदाम बनाने का निर्णय लिया गया है। साथ ही योजना के क्रियान्वयन के लिये अंतर मंत्रालयी समिति के गठन को भी हरी झंडी मिली है। निश्चय ही यह देर से उठाया गया दुरुस्त कदम है। निश्चय ही देश में मौजूदा 1450 लाख टन की भंडारण क्षमता को पर्याप्त नहीं कहा जा सकता। यही वजह है कि अगले पांच सालों में 700 लाख टन भंडारण क्षमता और बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। भारत दुनिया के सर्वाधिक अन्न उत्पादक देशों में गिना जाता है, लेकिन उसकी भंडारण क्षमता अन्य विकसित देशों के मुकाबले बेहद कम रही है। जिससे किसान को फसल तैयार होने के तुरंत बाद मंडियों में अनाज बेचने जाना पड़ता है। भंडारण क्षमता न होने के कारण किसान को औने-पौने दामों में अपने उत्पाद बेचने पड़ते हैं। यही वजह है कि भरपूर फसल उत्पादन के बावजूद उसे घाटा उठाना पड़ता है क्योंकि आपूर्ति बढ़ने से उत्पादों के दाम गिर जाते हैं।

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वैसे शुरुआत में सहकारिता मंत्रालय देश के केंद्र शासित प्रदेशों व राज्यों के दस जिलों में इसकी पायलट योजना शुरू करेगा। जिससे हासिल अनुभव का लाभ शेष देश को दिया जा सकेगा, साथ ही योजना की खामियों को दूर किया जा सकेगा। केंद्रीय सहकारिता मंत्री की अध्यक्षता में एक अंतर मंत्रालयी समिति योजना के क्रियान्वयन की देखरेख करेगी। निश्चित रूप से इस योजना के क्रियान्वयन से हर साल बर्बाद होने वाला लाखों टन अनाज बचाया जा सकेगा। वह अनाज भी, जो आंधी, तूफान व बारिश में मंडियों में बर्बाद होता रहा है। यदि किसान अनाज को गोदामों में रोकने की स्थिति में होगा तो वह बाजार की जरूरत के हिसाब से ऊंचे दामों में अपने उत्पाद बेच सकेगा। इतना ही नहीं, किसान गोदाम में रखे उत्पाद के मूल्य के सत्तर फीसदी के बराबर कर्ज लेकर अगली फसल की तैयारी भी कर सकेगा। विडंबना ही है कि इस लाभकारी योजना को नीति-नियंताओं की अदूरदर्शिता के चलते आजादी के सात दशक बाद क्रियान्वित किया जा रहा है। जरूरी है कि देश की अन्न भंडारण क्षमता उत्पादन से अधिक होनी चाहिए। कोरोना काल के सबक हमें याद रखने चाहिए कि इसके बाद के वर्षों में लगातार अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज तभी दिया जा सका क्योंकि हमारे देश में अनाज का पर्याप्त बफर स्टॉक था। ऐसी महामारियां भविष्य में आ सकती हैं, जिससे मुकाबले के लिये पर्याप्त अनाज भंडारण अनिवार्य है। निश्चित रूप से अब तक कुल उत्पादन की 47 फीसदी भंडारण क्षमता में इस योजना से पर्याप्त वृद्धि की जा सकेगी। उल्लेखनीय है कि इसके क्रियान्वयन के लिये कृषि और किसान कल्याण, उपभोक्ता मामले, खाद्य व सार्वजनिक वितरण, खाद्य प्रसंस्करण और उद्योग मंत्रालयों की विभिन्न योजनाओं को मिलाकर इस योजना को मूर्त रूप दिया गया है। जिससे निश्चित रूप से कृषि क्षेत्र में रोजगार के नये मौके पैदा होंगे। सरकार को हर साल बर्बाद होने वाली लाखों टन फल-सब्जियों को बचाने के लिये पर्याप्त शीतगृह भी स्थापित करने होंगे। साथ ही वैज्ञानिक ढंग से भंडारण की जरूरत को भी समझना होगा।

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