पहले खुद की खातिरदारी... बाद में यारी, रिश्तेदारी
प्रदीप कुमार दीक्षित
प्यारेलाल कट्टर सिद्धांतजीवी माने जाते हैं। वे हर बात में सिद्धांत का उल्लेख करते हैं। वे सिद्धांत को ओढ़ते हैं, बिछाते हैं और उसी पर सोते हैं। प्यारेलाल जैसे लोगों ने अपने-अपने हिसाब से सिद्धांत बना रखे हैं। जैसे किसी का सिद्धांत है कि सूर्योदय से पहले बिस्तर से उठ जाऊंगा तो किसी अन्य का सिद्धांत है कि सूर्योदय के बाद ही बिस्तर छोड़ूंगा। अब कुछ भी हो जाए दोनों किस्म के जीव अपने सिद्धांत पर अड़े रहते हैं। कुछ लोगों का सिद्धांत है कि चाय, नाश्ता, भोजन के लिए अपनी जेब ढीली नहीं करेंगे। इसके लिए उन्हें कितनी भी बदनामी झेलनी पड़े और उनकी खिल्ली उड़ाई जाए, वे अपने इस सिद्धांत से टस से मस नहीं होते।
प्यारेलाल शासकीय नौकरी में हैं। उन्होंने रिश्वत लेकर ही काम करने का सिद्धांत बना रखा है। उनकी टेबल से जो भी दस्तावेज या फाइल गुजरती है, उसे वे बिना खर्चा-पानी के निकलने नहीं देते हैं। इसके लिए कोई पहचान, यारी-दोस्ती या रिश्तेदारी भी कोई मायने नहीं रखती है। सारे रिश्ते-नाते एक तरफ हैं और उनका रिश्वत लेकर काम करने का सिद्धांत दूसरी तरफ। लेकिन जब उनका काम बिना रिश्वत दिए कहीं अटकता है तो वे पतली गली से रास्ता निकाल लेते हैं। वे इस काम के लिए एजेंट नियुक्त कर देते हैं। वह उनके लिए देन-लेन करके काम निपटा देता है। यानी प्यारेलाल का काम भी हो जाता है और उनका सिद्धांत भी कायम रहता है। यानी सिद्धांत उनके लिए हाथी के दांत की तरह हैं।
जब उनके बेटे के विवाह का अवसर आया तो स्वाभाविक ही कन्याओं के पिता उनके पास चर्चा के लिए आने लगे। उन्होंने सिद्धांतजीवी होने के नाते साफ-साफ बता दिया कि लड़के की पढ़ाई-लिखाई में इतनी राशि खर्च हुई है। मकान की मरम्मत करवानी है और खेत में बोरवेल भी करवाना है। कुल इतना खर्च तो लगेगा ही। उन्होंने जमकर सौदेबाजी की और इस कीमत पर बहू को ले आए। धन लेकर आई बहू ने क्या रंग दिखाए और बाद में क्या हुआ, यह अलग विषय है।
जब प्यारेलाल की बेटी के विवाह की बात आई तो उनका कुमकुम कन्या का सिद्धांत प्रबल हो गया। वे अपने पास सब कुछ होने के बावजूद कन्या को नई गृहस्थी जुटाने के लिए कुछ भी नहीं देना चाहते थे। वे घोर दहेज विरोधी थे और कुछ उपहार देने में उनका सिद्धांत आड़े आ रहा था। उनके इसी रवैये के चलते उन्हें बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।