पहले खाना खाने का सलीका तो सीखिए
आज हमारी खान-पान संस्कृति में इतना बदलाव आया है कि हम अपने शरीर की प्रकृति, मौसम अनुकूलता, वात-पित्त व कफ नियमन तथा विरासत में मिले खाने के अनुभवों को ताक पर रख देते हैं। हम अपने पांच-छह फीट के शरीर की जरूरतों के हिसाब से नहीं, पांच इंच की जीभ की पसंद पर भोजन लेते हैं। दरअसल, आज बाजार स्वाद के प्रयोग से ग्राहकों को लुभा रहा है। मुनाफा उसकी प्राथमिकता है न कि आपका स्वास्थ्य। आज चारों तरफ जो किडनी से संबंधित रोग, उच्च रक्तचाप, वजन बढ़ना, हृदय रोग तथा मधुमेह के रोगों का उफान नजर आ रहा है, उसके मूल में हमारा दोषपूर्ण खानपान भी है, जो स्वाद प्रधान तो है, मगर सेहत के अनुकूल नहीं है। आइए जानिए खानपान से जुड़ी बेहद जरूरी सावधानी।
भोजन से पूर्व की स्थिति
* हमारी मनोदशा शांत, प्रसन्न व तनाव मुक्त हो।
* खाने से पहले हाथ-पैर व मुंह धो लें।
* भोजन निर्धारित समय पर करें। यदि समय निकल जाए तो सिर्फ अल्पाहार लें।
* यह सुनिश्चित करें कि आपके खाने से पहले घर के पूज्य, आश्रित व पालतू जानवर भोजन कर चुके हैं (भारतीय जीवन दर्शन में खाने से पहले पशु-पक्षियों के लिये अंश निकालने की परंपरा रही है)।
* जब भूख लगे तभी खाएं।
* खाना खाने से आधा-एक घंटे पहले यथासंभव पानी पी सकते हैं।
* खाने को सामने रखे जाने पर एकाग्र मन से मनन करें। खाने की प्रकृति का अवलोकन करें। देखें कि खाना आप की शारीरिक प्रकृति तथा मौसम की प्रकृति के अनुकूल है?
* यदि जरूरी लगे तो कुछ घूंट मात्र जल ले सकते हैं।
* यदि हम पहले खाये खाने के पच जाने और वास्तविक भूख लगने पर ही खाना खाते हैं तो नया खाना ठीक से पचता है।
* हिंदू संस्कृति में भोजन को प्रसाद मानकर उसे आदर स्वरूप प्रणाम करने की परंपरा रही है। इसका मकसद यही है कि इससे हमारे मन में खाने के प्रति शुद्ध व शांत आंतरिक भावनाएं जाग्रत हों और हमारा शरीर भोजन को सहजता से ग्रहण कर सके। साधु-संतों व ब्राह्मणों में भोजन ग्रहण करने से पहले मंत्रोच्चारण की परंपरा इस दृष्टि की परिचायक रही है।
भोजन करने के समय नियम
* अच्छा होगा कि हम यथासंभव जमीन पर पालथी मारकर या सुखासन में बैठकर खाना खाएं। यदि संभव न हो तो कुर्सी पर ही पालथी लगाकर भोजन कर सकते हैं। दरअसल, भारतीय परंपरा में लेटकर, खड़े होकर व पैर लटकाकर भोजन करना निषिद्ध माना गया है।
* कमर व पीठ सीधी करके भोजन लें।
* खाने के समय हमारी दृष्टि भोजन व उसके स्वाद पर हो ताकि खाना पचाने में सहायक रसों का नियमित व भरपूर रिसाव खाना पचाने में सहायक हो। इस दौरान टीवी व मोबाइल देखना नुकसानदायक है। मधुर संगीत सहायक हो सकता है।
* भोजन के समय न तो चिंता करें और न ही अन्य विचार व बातचीत करें।
* जब हम टीवी, मोबाइल या फिल्म आदि देखते हुए खाना खाते हैं तो हम जरूरत से ज्यादा खाना खा सकते हैं।
खाना खाने का ढंग
* खाने की गति धीमी-शांत हो।
* खाना बार-बार चबाकर खाएं। आयुर्वेद में कहा जाता है कि ‘खाने को पानी की तरह पीना चाहिए और पानी को खाने की तरह खाना चाहिए।’ इससे खाना सुपाच्य व शरीर की जरूरत के अनुरूप बन जाता है।
* खाना खाते समय पानी न पीएं। जरूरी हो तो कुछ घूंट मात्र ले सकते हैं। खाने के साथ पानी पीने से भोजन देर से पचता है।
खाने की मात्रा
* अपने शरीर की प्रकृति के अनुसार खाना लें।
* शरीर की जरूरत के अनुरूप भोजन लें।
* थोड़ा-थोड़ा खाना प्लेट में लें, ताकि जूठन न छोड़नी पड़े।
* रात्रि का खाना हल्का व सुपाच्य हो।
खाने की प्रकृति
* खाना भारी, बासी और ज्यादा तला-भुना न हो। भोजन निरामिष हो। वहीं मद्यपान के साथ भोजन से शरीर में भारीपन, अपच, गैस व सुस्ती पैदा होती है। ये शरीर में रोग उत्पन्न करने की स्थिति बनाते हैं।
* राजसिक भोजन से बचें। यानी अधिक तीखे मसालेयुक्त, चटपटे व पक्के खाने से परहेज करें। इससे शरीर में अपच, गैस व अमलीयता पैदा होती है।
* शरीर में ताजगी, शांति व हल्कापन रहे, इसके लिये सात्विक यानी सादा भोजन लें। अल्पाहार ले सकते हैं। इसमें अंकुरित अनाज, सलाद,दूध, सब्जियों का सूप आदि ले सकते हैं।
खाने के बाद नियम
* बहुत जरूरी होने पर कुछ घूंट पानी लें।
* हाथ-मुंह धोना, दांत साफ करने चाहिए।
* वज्रासन में बैठकर पांच से दस मिनट का विश्राम करें। इससे खाना जल्दी पच जाता है।
* रात्रि का भोजन सोने से दो घंटे पहले कर लेना चाहिए।
* यदि योग व व्यायाम करते हैं तो खाना खाने के तीन घंटे बाद ही ऐसा करना चाहिए। व्यायाम करने से पहले सुनिश्चित करें कि पहले का खाना पच जाए और पेट हल्का महसूस करे।
* व्यायाम व योग के तीस-चालीस मिनट बाद ही जलपान करें।
खाने की मात्रा और प्रकृति के नियम
* अपने शरीर व भोजन की प्रकृति के अनुरूप भोजन लें।
* अपनी जठराग्नि की क्षमता से अधिक भोजन लेने से खाना पचता नहीं। शरीर में अपच होने से कई तरह के विकार पैदा
होते हैं।
* वहीं बहुत ही कम मात्रा में भोजन लेने से भी शरीर को पर्याप्त पोषण नहीं मिलता।
* जितनी हमको भूख है उससे कम भोजन लेना चाहिए ताकि पेट में पाचक रसों को उनका काम करने का स्थान मिल सके।
* भोजन की मात्रा व्यक्ति को अपनी आयु तथा व्यवसाय के अनुकूल ग्रहण करनी चाहिए।
खाने की तासीर
* भोजन की मात्रा के साथ उसकी प्रकृति पर भी ध्यान देना जरूरी है।
* भोजन सात्विक हो, राजसिक व तामसिक भोजन से बचा जाए।
* प्राकृतिक आहार मूल प्रकृति में लेना शरीर के अनुकूल है।
* सात्विक आहार में प्राकृतिक रूप से पके फल, अंकुरित अनाज, हरी सब्जियां, दालें तथा दूध व उससे बने पदार्थ शामिल हैं।
वात, पित्त व कफ बढ़ाने वाले भोजन
वात बढ़ाने वाले आहार
सफेद चना,मटर, मसूर, आलू, चटनी, कटहल, मूंगफली, राजमाह, सोयाबीन, शलगम, मूली, गोभी, जिमीकंद व कचनार आदि।
पितवर्धक आहार
दही, खट्टी छाछ, तेल से बने पदार्थ, गुड़, नमक, मिर्च, हींग, बैंगन, गाजर, करेला,कुल्थी, कटहल, संतरा, अंगूर, आलूबुखारा आदि।
कफवर्धक आहार
पक्का केला, आम,दही, दुग्ध निर्मित आहार,खट्टे बेर, अमरूद, इमली, आंवले, घी, तेल, चावल, उड़द, शकरकंदी, पेठा, अरबी, भिंडी आदि।
अपने शरीर की प्रकृति के अनुरूप इनका परहेज करना चाहिए।