पहले कांग्रेस तो एकजुट हो
28 अगस्त के दैनिक ट्रिब्यून में राजकुमार सिंह का लेख ‘विपक्ष से पहले कांग्रेस में एकता जरूरी’ विपक्षी एकता के नारों के बीच जनाकांक्षाओं की वास्तविकता बताने वाला था। सही अर्थों में लेख विपक्ष की घोषणाओं और हकीकत का चित्र दर्शाता है। जो राजनेता मंचों से घोषणाएं करते हैं, वे नरेंद्र मोदी का विकल्प एकजुट विपक्ष के रूप में देंगे, वे मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस को ही एकजुट कैसे करेंगे। ऐसा हर आम चुनाव से पहले होता है। इस बार शोर जल्दी शुरू हो गया है। एकजुटता की कोशिशें पूरी होती ही कहां हैं। जनता देख रही है कि कांग्रेस के क्षत्रपों की सत्ता की भूख चौराहे पर आ गई है। पंजाब की राजनीति में तूफान मचा है। कल के नेता नवजोत सिंह सिद्धू दिग्गज नेता कैप्टन अमरेंदर सिंह को ललकार रहे हैं। राजस्थान में तूफान से पहले की शांति है। छत्तीसगढ़ में भी टकराव है। युवा पीढ़ी पार्टी छोड़-छोड़ कर जा रही है। लेख विपक्षी राजनीति की हकीकत बताने में कामयाब रहा है।
मधुसूदन शर्मा, रुड़की, हरिद्वार
नकारा तालिबान को
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अफगानिस्तान के पहाड़ी प्रांत पंचशेर में अमरुल्ला सालेह के लड़ाकों ने अपने क्षेत्र से तालिबानियों को खदेड़ दिया है। बगलान प्रांत पर सेना ने पुनः कब्जा कायम कर लिया है। यहां पर जनता का भी समर्थन मिल रहा है। जनता तालिबान का पूर्व का शासन जो की शरीयत कानून पर चलता है पसंद नहीं करती हैं। अब तालिबान का एक बार फिर से विरोध शुरू हो गया है। निश्चय ही जनता शांति से रहना पसंद करती है।
राज शाजापुरी, शाजापुर, म.प्र.
मानवता पर प्रश्न
‘काबुल हमला… अमेरिका का बदला।’ आखिर मारामारी की यह आग कब बुझेगी? यह मध्ययुगीन विकृत सोच कब खत्म होगी? यह विडंबना ही है कि विश्व में इतनी तरक्की होने के बाद भी मध्ययुगीन बर्बरता कट्टरता के साथ कायम है, जो हमारे मानव होने पर प्रश्न चिन्ह है। फिर चाहे वे तालिबानी हों या आतंकवादी या अन्य!
हेमा हरि उपाध्याय, खाचरोद, उज्जैन