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रिश्तों की छांव में तलाशें जीवन का अर्थ

08:00 AM May 14, 2024 IST
रिश्तों की छांव में तलाशें जीवन का अर्थ
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सरस्वती रमेश
हमारे देश में परिवार नाम की संस्था बहुत मजबूत है फिर भी संयुक्त परिवारों के विखंडन के साथ इसकी नींव में दरारें तो पड़ ही चुकी हैं। इसलिए हमारे देश में भी परिवार की अवधारणा को सींचने व पोषित करने की जरूरत आन पड़ी है। परिवार के महत्व और उसकी अहमियत को बताने के उद्देश्य से हर वर्ष 15 मई को पूरी दुनिया में ‘अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस’ मनाया जाता है।
बच्चे का पूरा समाज होता है परिवार
जन्म के समय बच्चा पूरी तरह दूसरों पर निर्भर होता है। इसलिए बच्चे को जन्म लेते ही सबसे पहले परिवार की जरूरत होती है। परिवार ही एक मां को नवजात को सम्भालने-सहेजने के तरीके बताता है। अपने अनुभवों की सीख दे बच्चे के लालन-पालन में मदद करता है। एक बच्चे का समाज उसके परिवार से ही शुरू होता है। परिवार उसे जीवन मूल्यों की शिक्षा देता है। संस्कारों, आदर्शों, नैतिकता, मानवीयता जैसे गुणों की सीख देकर उसे समाज में रहने के योग्य बनाता है। बच्चे के कोरे मन मस्तिष्क में सामाजिक सरोकारों, दायित्वों व कर्तव्यों की पहली शिक्षा परिवार ही देता है। परिवार के बिना बच्चे का विकास अनगढ़ और बेढंगा हो जाएगा।
परिवार से हम हैं
हम जन्म लेते ही किसी न किसी रिश्ते से बंध जाते हैं। हालांकि हमारा सबसे पहला रिश्ता गर्भ में मां से बनता है पर बाहर निकलते ही हम अनेक रिश्तों की डोर से बंध जाते हैं। परिवार के ये रिश्ते ही एक नन्हे से शिशु को इतना दुलार देते हैं कि वह बचपन में स्वयं को शहंशाह समझता है। बच्चे परिवार के हर सदस्य के सामने अधिकार की भावना प्रकट करते हैं। क्योंकि उन्हें लगता है परिवार में सब उसे सबसे ज्यादा प्रेम करते हैं। हमें भावनात्मक सम्बल, आर्थिक सुरक्षा और मानसिक परिपक्वता परिवार के सान्निध्य में ही मिलती है। बड़े होने के बाद भी प्यार-दुलार की स्मृतियां खत्म नहीं हो पाती।
हमारे समर्थन में खड़ा परिवार
परिवार का सही मतलब प्रेम, विश्वास, भरोसा, जिम्मेदारी, अपनत्व होता है। हम सबके जीवन में कभी न कभी ऐसी स्थिति आती है जब हम बहुत खुश होते हैं या बड़ी कामयाबी पाते हैं। तब सबसे पहले हम अपनी खुशी अपने परिवार को बताना चाहते हैं। वहीं कभी बहुत दुखी और उदास हों तब भी हमें परिवार की याद आती है। हम उनसे अपना दुख शेयर करना चाहते हैं। क्योंकि परिवार ही हमारे सुख दुख का सच्चा साथी है। हमारे भाई-बहन, माता-पिता परिवार के लोग ही हमारे सच्चे समर्थक होते हैं। दुख-सुख के भागीदार। मुसीबत में सबसे पहले वही हमारे पास आते हैं। हमारे अकेलेपन, निराशा, हताशा के पलों में परिवार हमारे साथ खड़ा रहता है। हमें टूटकर बिखरने नहीं देता। और खुशी के पलों में हमारी खुशियों को कई गुना बढ़ा देता है।
परिवार से है हमारी खुशी
हर परिवार में अनबन, मतभेद, छिटपुट लड़ाई-झगड़े होते हैं। मगर इन बातों को जितनी जल्दी भूलकर एकजुट हो जाया जाए उतना अच्छा। क्योंकि परिवार में आपसी सहयोग और समर्थन की जैसी निस्वार्थ भावना मिल सकती है, वैसी कहीं और नहीं मिल सकती। परिवार के सदस्य सहानुभूति से हमारी चिंताओं को खत्म कर सकते हैं। अकेलेपन, अवसाद को दूर करने के लिए परिवार अचूक दवा है जिससे हम बेहिचक अपने डर को साझा कर भयमुक्त हो सकते हैं।
आज परिवार का मतलब पति,पत्नी और बच्चों तक सिमट चुका है। पर परिवार की अहमियत को देखते हुए इसे किसी भी रूप में बचाने और मजबूत करने की आवश्यता है। कोरोना के समय में पूरी दुनिया ने परिवार की अहमियत को समझा। यही कारण है कि अब पूरी दुनिया में परिवार नाम की संस्था को मजबूत बनाने की दिशा में पहल की जा रही है। पश्चिमी देशों ने इसे ‘केयर इकोनमी’ का नाम दिया है। हालांकि मां की ममता, पिता के संरक्षण, परिवार के साथ को इकॉनमी का नाम देना भावनात्मक रूप से स्वीकार्य नहीं। पर फिर भी परिवार संस्था को बचाने के लिए जो भी प्रयास हो उसकी सराहना की जानी चाहिए। आइए हम भी अपने परिवार के साथ अपने होने के अर्थ को तलाशें।

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