वित्त मंत्री और डिप्टी स्पीकर अगली बार नहीं पहुंच पाते विधानसभा !
दिनेश भारद्वाज/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 26 मार्च
चंडीगढ़ में हरियाणा कोटे की कुछ ऐसी कोठियां हैं, जिनके साथ ‘शुभ-अशुभ’ का गणित जुड़ा है। इसके बाद भी इन कोठियों के प्रति मंत्रियों का लगाव कभी कम नहीं हुआ। होता भी कैसे, ये कोठियां हैं ही इतनी आकर्षक। जी हां, हम बात कर रहे हैं चंडीगढ़ के सेक्टर-2 की कोठी नंबर-48 और सेक्टर-7 की कोठी नंबर-78 की। असल में ये कोठियां डरावनी नहीं हैं लेकिन इनके साथ कुछ ऐसा मिथक जुड़ा है, जो एकबारगी तो मंत्रियों को परेशानी में डाल देता है।
इसी तरह से प्रदेश सरकार में वित्त मंत्री और विधानसभा में डिप्टी स्पीकर रहने वाले नेताओं के साथ भी पिछली कई टर्म से जुड़ा संयोग बनता आ रहा है कि आमतौर पर इन पदों पर रहने वाले नेता अगली बार विधानसभा नहीं पहुंच पाते। विधानसभा चुनावों से करीब सात माह पूर्व राज्य सरकार में हुए बदलाव के बाद मंत्रियों के विभागों में भी बदलाव हुआ है। साथ ही, कोठियां भी बदलेंगी।
हालांकि अब कोठी नंबर-78 ब्यूरोक्रेसी के हवाले हो चुकी है। वर्तमान में इस कोठी में सीएम के मुख्य प्रधान सचिव राजेश खुल्लर रहते हैं। उनसे पूर्व यह कोठी पूर्व सीएम मनोहर लाल के मुख्य प्रधान सचिव रहे डीएस ढेसी के पास थी। अतीत के पन्ने पलटेंगे तो साफ होगा कि इस कोठी में रहने वाले मंत्री अगली बार लौटकर नहीं आ सके। इस कोठी में रहने वाले मंत्रियों ने वास्तु के हिसाब से भी बदलाव किए। हवन-यज्ञ भी किए, लेकिन उन्हें इसका लाभ नहीं मिला।
मनोहर पार्ट-। में परिवहन मंत्री रहे कृष्ण लाल पंवार के पास यह कोठी थी। 2019 के चुनावों में वे कांग्रेस के बलबीर सिंह वाल्मीकि के हाथों शिकस्त खा बैठे। उनसे पूर्व 2005 में शिक्षा मंत्री रहते हुए फूलचंद मुलाना को यह कोठी मिली थी, लेकिन 2009 में वे भी चुनाव हार गए। सरकार में एडजस्टमेंट में चलते उनकी यह कोठी खाली नहीं हुई, लेकिन 2014 में भी उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा।
1982 में कुलबीर सिंह को यह कोठी अलॉट हुई थी। वे विधानसभा के डिप्टी स्पीकर थे लेकिन अगली बार चुनाव हार गए। 1987 में पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. सुषमा स्वराज को यह कोठी मिली लेकिन वे भी अगला चुनाव हार गईं। इसके बाद 1991 में यह कोठी भजनलाल सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रही करतार देवी को अलॉट हुईं, लेकिन वे अगली बार विधानसभा नहीं पहुंची। इसी तरह से 1996 में बहादुर सिंह और 1999 में प्रो. रामबिलास शर्मा इस कोठी में रहे लेकिन वे भी अगली बार विधानसभा पहुंचने में असफल रहे।
अच्छा नहीं रहा वित्त मंत्रियों का अनुभव
प्रदेश में वित्त मंत्री रहने वाले नेता भी अगली बार विधानसभा नहीं पहुंच सके। लगभग तीन दशक से तो यही संयोग बना हुआ है। 1991 में भजनलाल सरकार में मांगेराम गुप्ता वित्त मंत्री थे, लेकिन 1996 में वे चुनाव हार गए। 1996 में सेठ श्रीकिशन दास वित्त मंत्री बने लेकिन 2000 में वे विधानसभा नहीं पहुंच सके। 2000 में चौटाला सरकार में प्रो़ संपत्त सिंह वित्त मंत्री रहे, लेकिन 2005 में लोगों ने उन्हें विधानसभा नहीं पहुंचने दिया। 2005 में हुड्डा के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार में बीरेंद्र सिंह वित्त मंत्री रहे और 2009 में वे भी चुनाव हारे। हुड्डा पार्ट-।। में कैप्टन अजय सिंह यादव वित्त मंत्री बने। 2014 में लोगों ने उन्हें घर बैठा दिया। इसी तरह 2014 से 2019 तक वित्त मंत्री रहे कैप्टन अभिमन्यु भी अगला चुनाव नहीं जीत सके। 2019 से 12 मार्च, 2024 तक मनोहर लाल वित्त मंत्री रहे, लेकिन उन्होंने टर्म पूरी होने से पहले ही मुख्यमंत्री और विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। अब लोहारू से विधायक जेपी दलाल प्रदेश के नये वित्त मंत्री बने हैं।
समझिए कोठी नंबर-48 का गणित
सेक्टर-2 की सबसे बड़ी कोठियों में शुमार कोठी नंबर-48 के साथ भी कुछ ऐसी ही धारणा जुड़ी है। चौटाला सरकार में हेवीवेट मंत्री रहे चौ. धीरपाल सिंह 1999 से 2005 तक इस कोठी में रहे लेकिन इसके बाद वे विधानसभा नहीं पहुंच सके। 2005 में हुड्डा सरकार में वित्त मंत्री बने चौ़ बीरेंद्र सिंह को यह कोठी अलॉट हुई, लेकिन 2009 में उचाना कलां से इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला ने उन्हें पटखनी दे दी। 2009 में हुड्डा सरकार में हेवीवेट मंत्री रहे रणदीप सिंह सुरजेवाला भी पांच वर्षों तक इस कोठी में रहे। हालांकि सुरजेवाला ने इस मिथक को तोड़ा और वे चुनाव जीतने में सफल रहे लेकिन सरकार नहीं आ पाई। 2014 में मनोहर सरकार में वित्त मंत्री रहे कैप्टन अभिमन्यु ने यह कोठी अलॉट करवाई और वे अगला चुनाव हार गए। 2019 में डिप्टी सीएम बने दुष्यंत चौटाला ने यह कोठी अपने नाम अलॉट करवाई। हालांकि दुष्यंत विधानसभा चुनावों से लगभग सात महीने पहले सत्ता से बाहर हो गए। ऐसे में अब यह देखना रोचक रहेगा कि वे अगली बार विधानसभा लौटते हैं या नहीं।
क्या गंगवा तोड़ पाएंगे मिथक
विधानसभा के डिप्टी स्पीकर पद को लेकर भी विधायकों में अच्छी धारणा नहीं रहती। 2005 में हुड्डा सरकार में फिरोजपुर-झिरका विधायक आजाद मोहम्मद डिप्टी स्पीकर थे, लेकिन 2009 में वे चुनाव हार गए। लगातार दूसरी बार सत्ता में आए भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इस बार बसपा विधायक अकरम खान को डिप्टी स्पीकर बनाया, लेकिन इसके बाद वे भी विधानसभा का मुंह नहीं देख सके। 2014 में पहली बार पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई भाजपा ने संतोष यादव को डिप्टी स्पीकर बनाया। 2019 में उनकी टिकट कट गई। ऐसे में वे भी अगली बार सदन नहीं पहुंची। वर्तमान में नलवा से विधायक रणबीर सिंह गंगवा डिप्टी स्पीकर हैं। अब यह देखना रोचक रहेगा कि गंगवा इस मिथक को तोड़ पाते हैं या नहीं।