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त्योहार का सीजन और प्याज की फितरत

06:33 AM Nov 04, 2023 IST

सहीराम

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जब सीजन त्योहारों का हो और दिवाली आ रही हो, तो भाई साहब आप ही बताइए कि बात मिठाइयों की होनी चाहिए या प्याज की? ठीक है बेरोजगारी है, महंगाई है, मान लिया। ऐसे में मिठाई की बात नहीं तो कम से कम मीठी-मीठी बात तो कर लो। वो बुजुर्गों ने कहा है न कि गुड़ नहीं तो गुड़ की-सी बात ही कर लो। त्योहारों का सीजन तो है ही है, पर यह चुनावों का सीजन भी तो है। ऐसे में पार्टियों के बीच में कड़वाहट हो तो हो, नेताओं में गाली-गलौज हो तो हो। परिवारों में दुश्मनियां पैदा हो रही हों तो हों। लेकिन जनता से तो सब मीठी-मीठी बात ही कर रहे हैं। पार्टियां हों, नेता हों, सब गुड़ की-सी बात कर रहे हैं। जनता को भी पता है कि गुड़ देगा कोई नहीं।
जनता जानती है कि चुनावों के बाद यह सारी बिसात पूरी तरह पलट जाएगी। गालियां जनता के हिस्से आ जाएंगी और मीठा-मीठा सब नेताओं के परिवार वाले और मित्र गड़प करने लगेंगे। और सच पूछो तो यह बेरोजगारी और महंगाई कोई त्योहारों के सीजन के लिए ही तो है नहीं। बेशक नौकरियां स्थायी नहीं रही। लेकिन लगता है जैसे बेरोजगारी और महंगाई तो स्थायी हो ही गयी है। और दिवाली महंगाई का कोई पैमाना है क्या कि आपको दिवाली पर ही महंगाई दिखाई देगी, महसूस होगी।
दिवाली आएगी तो सरकार के विरोधी कल्पने लगेंगे। विश्लेषक बाजार का विश्लेषण करने लगेंगे। टिप्पणीकार टिप्पणियां करने लगेंगे कि देखो बाजार में इस बार बिल्कुल भी रौनक नहीं है। खरीदारों की भीड़ ही नहीं है। अभी धनतेरस आने दो। सर्राफा बाजार बताएगा कि सोने की रिकॉर्ड बिक्री हुई है। रौनक क्यों नहीं है साहब। फिर भी लोगों ने महंगाई को दिवाली का पैमाना बना लिया है। कोई-कोई जलकुकड़ा बांग लगा देगा-सेठों की दिवाली है, पर जनता का तो दीवाला है। और इस बार तो हद ही हो गयी साहब दिवाली पर मिठाई तो आयी नहीं, देखो प्याज आ गयी। नहीं-नहीं रसोई तक नहीं आयी। पर चर्चा में आ गयी। आयी तो ऐसी आयी कि अब बस उसी की बात हो रही है।
जब टमाटर दो सौ रुपये किलो बिकने लगा था तब लोगों को बड़ी याद आयी थी कि प्याज देखो कितनी शरीफ हो गयी बिल्कुल नवाज शरीफ लग रही है। लेकिन नवाज शरीफ वापस पाकिस्तान लौट आए हैं और प्याज अपनी शराफत छोड़कर फिर अपने रंग दिखाने लगी है। हंसी-खुशी के इस सीजन में खून के आंसू रूलाने पर आ गयी है। वो क्या कहावत है कि चोर चोरी से जाए, हेराफेरी से न जाए तो प्याज की भी फितरत यही है। उसने सरकारें गिराना तो बेशक बंद कर दिया होगा, लेकिन उसने साल में दो-एक बार खून के आंसू रूलाना बंद नहीं किया है।

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