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शनिदेव और महादेव की आराधना का पर्व

08:52 AM Aug 12, 2024 IST
शनिदेव और महादेव की आराधना का पर्व

सावन के महीने में पड़ने वाले शनि प्रदोष व्रत का साधकों के जीवन में बहुत शुभ प्रभाव पड़ता है। इस दिन यदि भोलेनाथ शिवशंकर की आराधना की जाए तो वे शीघ्र प्रसन्न होकर व्यक्ति को सुख, शांति, स्वास्थ्य, समृद्धि आदि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

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चेतनादित्य आलोक

सनातन धर्म में सोमवार, मासिक शिवरात्रि, महाशिवरात्रि एवं प्रदोष व्रत का अत्यंत ही विशेष महत्व होता है, क्योंकि ये तिथियां पूजा-आराधना और साधना से देवों के देव महादेव को प्रसन्न कर अपने जीवन में सुख, शांति, समृद्धि, धन-धान्य, वैभव, आरोग्य, ऐश्वर्य आदि को प्राप्त करने के लिए होती हैं। दरअसल, ये सारे पर्व-त्योहार परम कृपालु और भोले-भाले प्राणियों के नाथ भोलेनाथ शिवशंकर को समर्पित होते हैं।
फिलहाल, भगवान भोलेनाथ का प्रिय महीना सावन चल रहा है। इस महीने के आराध्य देव स्वयं भगवान भोलेनाथ शिवशंकर हैं। सावन का यह महीना लगभग आधा बीत चुका है, जो 19 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन समाप्त हो जाएगा। सामान्यतः इस महीने में प्रत्येक दिन कोई-न-कोई व्रत, पर्व या त्योहार होता ही है। इनमें से ही एक प्रमुख पर्व है सावन का प्रदोष व्रत। सनातन धर्म में ‘प्रदोष’ ‘त्रयोदशी तिथि’ को कहते हैं, जो प्रत्येक महीने में दो बार आती हैं। वैसे इस बार यह प्रदोष व्रत और भी विशेष होने वाला है, क्योंकि यह शनिवार को पड़ रहा है, जो 17 अगस्त को है।
गौरतलब है कि प्रदोष यानी त्रयोदशी तिथि जब शनिवार के दिन पड़े तो शनि प्रदोष का संयोग बनता है। एक तो सावन, ऊपर से प्रदोष व्रत और तिस पर भी शनिवार का योग। यह दिन देवों के देव महादेव के भक्तों के लिए बेहद खास होने वाला है।
मान्यताओं के अनुसार सावन के महीने में पड़ने वाले शनि प्रदोष व्रत का साधकों के जीवन में बहुत शुभ प्रभाव पड़ता है। इस दिन यदि तन और मन की लगन से भगवान भोलेनाथ शिवशंकर की आराधना की जाए तो वे शीघ्र प्रसन्न होकर व्यक्ति को सुख, शांति, स्वास्थ्य, समृद्धि आदि का आशीर्वाद प्रदान करते हैं। इस दिन व्रत रखकर श्रद्धापूर्वक पूजा-आराधना करने से देवों के देव महादेव भोले-भाले भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूरी करते हैं। वैसे यदि इस दिन भगवान भोलेनाथ के अतिरिक्त शनिदेव की भी पूजा-अर्चना की जाए तो शनिदेव प्रसन्न होते हैं और भक्तों को शनिजनित दुखों और कष्टों से छुटकारा मिलता है। यहां तक कि इस दिन शनिदेव की आराधना करने से शनि की महादशा, साढ़ेसाती एवं ढैय्या का प्रभाव भी कम हो जाता है। वहीं भगवान भोलेनाथ को इस दिन गंगा जल में काले तिल मिलाकर अर्पित करने और शिव चालीसा का पठन या श्रवण एवं महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से व्यक्ति को सभी दुखों एवं कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। प्रदोष व्रत में संध्या के समय जब सूर्यदेव अस्ताचलगामी होते हैं, तब यानी प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ शिवशंकर की पूजा, आरती की जाती है।
इस बार प्रदोष-पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 6ः58 से रात्रि 9ः09 बजे तक है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने वाला भक्त चंद्र-दोष से रहित और पाप-मुक्त हो जीवन यापन करता है तथा मृत्यु के पश्चात मोक्ष प्राप्त करता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रदोष व्रत रखने से दो गायों के दान जितना पुण्य-फल मिलता है। इस व्रत में निर्जल रहकर व्रत रखना होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जितना पुण्य-फल 12 ज्योतिर्लिंगों के पूजन-अर्चन से प्राप्त होता है, उतना ही पुण्य-फल प्रदोष काल में पारद शिवलिंग के दर्शन मात्र से मिल जाता है। इस दिन दान करने का भी विशेष महत्व होता है।

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