फील करें हम दुनिया में फिट हैं जी
आलोक पुराणिक
जी 20 का जलसा निपटा, मल्लब कुछ ऐसा सा फील हुआ कि सब फिट है जी। कोई समस्या नहीं है। हम विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था हो लिये। मतलब हमारी तो उपलब्धियां बहुत बड़ी बड़ी हैं। मुझे खुद पर शर्म आयी कि मैं प्याज-टमाटर के भावों पर रो रहा था- हाय कितनी महंगाई! दरअसल मेरी हालत बहुत ही शानदार थी, वर्ड में टॉप मेरी पोजीशन है, बस मैं फील ना कर रहा हूं।
बड़ी आफत है आम आदमी की। ये वाले नेता बताते हैं कि हम टापमटाप हैं, और फिर वो विदेशी नेताओं के साथ भारतीय छप्पनभोग उड़ाने में बिजी हो जाते हैं। दूसरे वाले बताते हैं कि हम तो बिलकुल गड्ढे में गिर गये, यह बताकर वो विदेश उड़ जाते हैं। इधर वाले उधर वाले सब मौज में हैं। आम आदमी की मौज ना दिख रही है। दरअसल असली समस्या आदमी की यही है कि वह आम है। आम है, तो आदमी के तौर पर भी जीवन संभव नहीं है। एक पुलिसवाला बेमतलब नक्शेबाजी कर रहा था, मैं फिर खास हो गया, इंगलिश में कई गालियां देकर कहा, अभी बात कराऊं तेरी एसपी से। पुलिसवाला एकदम होश और तमीज से बात करने लगा। इस मुल्क की बड़ी आफत यह है कि जिससे तमीज से बात करो, वह बदतमीजी से बात करने लगता है। तमीज उसे तब आती है, जब उसका सामना अपने से बड़े बदतमीज से हो। तो कहने का मतलब यह है कि यह मुल्क अब आम आदमी का बचा नहीं है। खास हो जायें तो यह हुनर आ जाता है कि यहां बता सकते हैं कि सब फिट है।
मैं कनफ्यूज्ड रहता हूं कि क्या मानूं गरीब टाइप मानूं खुद को क्योंकि टमाटर के भाव तक डरा देते हैं या खुद को दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था का बाशिंदा मानकर मजे से रहूं। मजे से रहना आम के वश की बात नहीं है। उसके लिए खास होना होता है। अभी एक सरकारी संगठन में काम करने वाले बंदे मिले। उन्होंने बताया कि कई महीनों से सेलरी ना मिली। मैंने उसेे कहा, तुझे पता नहीं है तू पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का बंदा है, कैसी बात कर रहा है। आम की एक खासियत यह है कि चिरकुट सिर्फ सेलरी पर निर्भर होता है। ऊपर की इनकम का जुगाड़ ना कर पाता। तर डिपार्टमेंट में काम करनेवाले बंदे कभी सेलरी को लेकर चिंतित ना होते। ये तो दरअसल पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था नहीं, दुनिया की पहली बड़ी अर्थव्यवस्था के नागरिक की तरह बर्ताव करते हैं। दुबई में शापिंग करने जाते हैं और फिर स्पेन में छुट्टियां मनाते हैं। आम का काम तो यही है कि आजादपुर थोक सब्जी मंडी का चक्कर लगाता है कि शायद टमाटर सस्ते पकड़ में आ जायें। आम न रहे, खास हो जाये तो बवाल-सवाल खत्म हो जायें।