पति की दीर्घायु के लिए व्रत
आर.सी. शर्मा
ज्येष्ठ माह की अमावस्या को सुहागिनें सावित्री वट पूजा करती हैं। इसके लिए वे इस दिन सूर्याेदय से पहले स्नान करती हैं, फिर नये कपड़े पहन व पूरा शृंगार करके बरगद के पेड़ को जल अर्पित करती हैं। इसके बाद वट सावित्री व्रत की कथा सुनती हैं और फिर वट यानी बरगद के पेड़ में लाल या पीला धागा बांधकर सात बार उसकी परिक्रमा करती हैं। यह विशेष पूजा पति की लंबी आयु की कामना के लिए की जाती है।
वट सावित्री व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा के मुताबिक प्राचीनकाल में मद्र देश में अश्वपति नाम के एक धर्मात्मा राजा राज्य करते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। इसलिए उन्होंने 18 सालों तक देवी सावित्री की कठोर तपस्या की। इससे प्रसन्न होकर देवी सावित्री ने उन्हें कन्या प्राप्ति का वरदान दिया। इस तेजस्वी पुत्री के जन्म के बाद उसका नाम सावित्री रखा गया और विवाह योग्य होने पर उसकी शादी सत्यवान से की गई।
वास्तव में बेटी को खूब प्रेम करने वाले और प्रगतिशील विचारों के राजा अश्वपति ने बेटी को खुद अपना वर चुनने की इजाजत दी थी। एक दिन जंगल में सावित्री की मुलाकात सत्यवान से हुई जो कि पास की ही रियासत के राजा द्युमत्सेन के पुत्र थे। सावित्री ने पहली नजर में ही सत्यवान को अपने पति के रूप में वरण कर लिया। लेकिन बाद में ज्योतिषियों द्वारा राजकुमार की कुंडली देखने पर पता चला कि सत्यवान की उम्र बहुत कम है। लेकिन सावित्री इस बात से जरा भी टस से मस नहीं हुई कि वह सत्यवान की जगह किसी और से शादी कर लें। अतः राजा ने बेटी की शादी कर दी।
जैसा कि ज्योतिषविदों ने बताया था, कुछ ही दिनों के बाद एक दिन जब सत्यवान सावित्री के साथ वन में विहार कर रहे थे, तभी वह गिर पड़े और उनकी मृत्यु हो गई। सावित्री को इससे बहुत दुख हुआ। हालांकि वह इस आने वाली आपदा को जानती थीं, फिर भी वह इस घोर दुख के समय जंगल में जिस वट पेड़ के नीचे गिरकर सत्यवान की मृत्यु हुई थी, सावित्री उसी वट की घोर तपस्या करने लगीं। सावित्री की इस विकट तपस्या से वट वृक्ष में रहने वाले वट देवता उनसे प्रसन्न हुए और वरदान मांगने के लिए कहा।
गौरतलब है कि पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों का वास होता है। इसलिए वट देवता इन तीनों देवताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वट देवता होते हैं। मान्यता है कि वट देवता से पति सत्यवान को जीवित किए जाने का वरदान मांगा जिसे वट देवता ने पूरा किया। इस पर सावित्री बहुत खुश हुई। वट देवता ने भी उसकी पतिव्रत निष्ठा से प्रसन्न होकर कहा कि जो भी सुहागिन इस दिन (जिस दिन वट देवता ने सावित्री को सत्यवान के जीवित होने का वरदान दिया था यानी ज्येष्ठ माह की अमावस्या) मेरी पूजा करेगी, उसके पति की लंबी आयु होगी। तब से सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु के लिए वट पूजा व्रत करती हैं।
उत्तर भारत में यह व्रत ज्येष्ठ अमावस्या के दिन सम्पन्न होता है, जबकि गुजरात और महाराष्ट्र में इसे पूर्णिमा वाले दिन मनाया जाता है। इस साल वट सावित्री पूजा की तिथि 6 जून को है। वट सावित्री पूजा पति-पत्नी के संबंधों की मजबूती,समर्पण व त्याग का प्रतीक है। अतः युग चाहे जितने बदलें, लेकिन यह भावनात्मक आस्था और पति पत्नी के बीच प्रेम के लिए हमेशा महत्वपूर्ण रहेगी। इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर