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आध्यात्मिकता की राह दिखाने वाला व्रत

12:36 PM Jun 13, 2023 IST
आध्यात्मिकता की राह दिखाने वाला व्रत
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चेतनादित्य आलोक

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हमारी संस्कृति में प्रत्येक महीने दो एकादशियां आती हैं- एक शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष में। इस प्रकार पूरे वर्ष में कुल 24 एकादशियां होती हैं। इनमें योगिनी एकादशी का व्रत विशेष महत्व वाला होता है। भक्तगण इसे पाप से मुक्ति दिलाने वाली एकादशी भी कहते हैं। मान्यताओं के अनुसार योगिनी एकादशी भक्तों के पिछले सभी पापों को नष्ट तो करती ही है, साथ ही इसके पुण्य-प्रभाव से भविष्य में भी उनका जीवन पवित्र और सुखद बना रहता है। यह व्रत भौतिकता के चंगुल से निकालकर भक्त को आध्यात्मिकता के मार्ग पर अग्रसर करता है। इस व्रत के करने से शरीर के साथ-साथ मन की भी शुद्धि होती है और मनुष्य की मुक्ति का द्वार खुलता है। कहते हैं कि योगिनी एकादशी के प्रभाव से भक्तों के बड़े से बड़े पाप भी नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति का मन और आत्मा शांत, स्निग्ध और हल्की-फुल्की हो जाती है।

पद्म पुराण में वर्णित इस व्रत की कथा के अनुसार एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से इस व्रत के संबंध में जब पूछा, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया था कि स्वर्ग में स्थित अलकापुरी में रहने वाले भगवान शिव के भक्त कुबेर जी ने अपने आराध्य की पूजा-अर्चना हेतु एक दिन अपने दास हेम माली को पुष्पादि लाने के लिए भेजा, लेकिन अपनी पत्नी विशालाक्षी के प्रति आसक्त होने के कारण हेम माली कुबेर की आज्ञा का उल्लंघन कर अपनी पत्नी के सौंदर्य में डूबा रहा। परिणामतः उसे कुबेर के कोप का भाजन बनना पड़ा। शास्त्र बताते हैं कि कुबेर ने हेम माली को पत्नी का वियोग सहन करने और मृत्युलोक यानी धरती पर जाकर कष्ट भोगने का शाप दे दिया। कुबेर के शाप के कारण हेम माली उसी क्षण पृथ्वी पर गिर गया और फिर देखते-ही-देखते उसका शरीर कोढ़ग्रस्त हो गया।

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कालांतर में मार्कण्डेय ऋषि ने उसके दुखों के निवारणार्थ उसे योगिनी एकादशी का व्रत करने का सुझाव दिया। कुबेर का मार्गदर्शन पाकर इस व्रत को विधिपूर्वक करने से हेम माली अंततः शाप मुक्त हुआ।

योगिनी एकादशी का व्रत प्रत्येक वर्ष आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की 11वीं तिथि को किया जाता है। वैसे तो इस बार योगिनी एकादशी का मान 13 जून की सुबह नौ बजकर 28 मिनट से 14 जून को प्रातः आठ बजकर 48 मिनट तक रहेगा, परंतु उदया तिथि की मान्यतानुसार योगिनी एकादशी का व्रत 14 जून (बुधवार) को और इसका पारण 15 जून (गुरुवार) को किया जायेगा।

मान्यता है कि तीनों लोकों में प्रसिद्ध इस व्रत को करने से हजारों ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्य का फल मिलता है। भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित यह व्रत अन्य सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है। इस व्रत को समर्पण भाव से करने एवं व्रत की कथा सुनने से पृथ्वी लोक में भोगों की और परलोक में मुक्ति की प्राप्ति होती है। यही नहीं, इस व्रत के प्रभाव से भक्त को भगवान श्रीहरि विष्णु एवं माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। साथ ही भक्त के जीवन में धन-धान्य, यश एवं वैभव की वृद्धि और अंत में मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।

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