ऑर्गेनिक रंगों के संग फाग का आनंद
मधु सिंह
रंगों का त्योहार होली अपने साथ भरपूर खुशियां लाता है। लेकिन कई बार हम अपनी ही असावधानी और मस्ती भरे हुड़दंग में इन खुशियों को परेशानी में बदल लेते हैं। यह परेशानी कैमिकलयुक्त रंगों से होली खेलने के कारण आती है। इसलिए अगर स्वस्थ और सुरक्षित होली का आनंद लेना है तो हमें होली ऑर्गेनिक रंगों के जरिये ही खेलनी चाहिए। अगर इन्हें बाज़ार से पाना मुश्किल हो तो बड़ी आसानी से खुद घर पर बनाया जा सकता है। जानें कैसे-
हल्दी जैसा पीला रंग
हम सब जानते हैं कि पीला रंग बहुत पवित्र और शुभ अवसरों का प्रतीक रंग है। इसलिए हल्दी जैसे पीले रंग से होली खेलना हमेशा अच्छा लगता है। इसे घर में बनाने के लिए 50 ग्राम हल्दी लें और उसमें करीब 100 ग्राम बेसन मिला दें। अगर गीला रंग बनाना है तो इसके लिए पानी में हल्दी को घोल लें और बेधड़क होली खेलें। हल्दी के अलावा पीला रंग फूलों को सुखाकर भी बनाया जा सकता है।
सूखा लाल रंग
चंदन हमारी त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद होता है। इसलिए सूखा लाल गुलाल, बाज़ार से खरीदने की बजाय लाल चंदन से घर में ही बनाएं। इसके लिए गुड़हल के फूलों को सुखाकर उसका पाउडर बना लें और देखें यह कितनी आकर्षक रंगत देता है। अगर सूखा पाउडर कम है और रंग ज्यादा बनाना चाहते हैं तो इसमें थोड़ा मैदा भी मिलाया जा सकता है। अगर सूखे की जगह गीला लाल रंग बनाना है तो लाल चंदन पाउडर को थोड़ी देर पानी में उबालने के बाद इस लाल रंग के पानी से जमकर होली खेलें। पानी की इस फुहार से वातावरण तो सुगंधमय होगा ही, त्वचा पर किसी किस्म के दाग-धब्बे का कोई खतरा भी नहीं होगा। इसी तरह अनार के दानों को पानी में उबालकर भी प्राकृतिक लाल रंग बनाया जा सकता है।
मजेंटा
मजेंटा रंग हासिल करना थोड़ा मुश्किल लगता है, लेकिन ऐसा नहीं है। बीट रूट यानी चुकंदर इसके लिए बेस्ट रहता है। होली के कुछ दिनों पहले ही बीट रूट को सुखा लें। जब यह पूरी तरह सूख जाए तो इसे पीस लें। यह पाउडर की तरह बारीक हो जाएगा जो कि होली को रंगीन बनाने में काम आएगा। अगर हल्का मजेंटा पाना चाहते हैं तो थोड़ी और मेहनत करें यानी प्याज के छिलकों को आधा लीटर पानी में उबाल लें इससे हल्का मजेंटा रंग तैयार हो जाएगा।
जामुनी
जामुनी रंग पाने के लिए काले अंगूरों को या जामुन को उबाला जा सकता है। ध्यान रखें कि पानी ठंडा हो जाने के बाद ही रंगीन पानी का इस्तेमाल करें।
सावधानियां
ऑर्गेनिक रंगों का यूं तो कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। लेकिन इसे बनाते वक्त पूरी सतर्कता बरतें। खासकर जब किसी फूल या सब्जी को सुखाने के लिहाज से छत या बॉलकनी में रखी गयी हों। क्योंकि ऐसे समय पर उनमें कीड़ों-मकोड़ों के आकर चिपक जाने का खतरा रहता है। यही नहीं, अगर इनका ध्यान न रखा गया तो ये कीड़े मकौड़े आंखों में भी जा सकते हैं और हमारी आंखों की सेहत पर भारी पड़ सकते हैं।
रासायनिक रंगों से खतरे
वास्तव में एक जमाना था जब लोग होली खेलने के लिए प्राकृतिक रंगों का ही इस्तेमाल करते थे। लेकिन बाद में खतरनाक केमिकलयुक्त रंगों का इस्तेमाल होने लगा, जिनमें माइका, अल्कालिज, पिसा हुआ कांच, एसिड तथा और भी कई खतरनाक तत्व होते हैं। जो होली के मौके पर बड़े पैमाने पर बिकते हैं। इनसे त्वचा पर बुरा असर होता है। साथ ही ये रंग आंखों को नुकसान पहुंचाते हैं। आंखों के अलावा ये श्वांस संबंधी कई बीमारियों के कारण भी बन सकते हैं। विशेष रूप से आंखों के लिए ऐसे रंग बेहद खतरनाक होते हैं। होली खेलते समय कुछ लोग आंखों को इन खतरनाक रंगों के प्रभाव से बचा नहीं पाते । होली में बिकने वाले बाज़ार के सूखे रंगों में ही नहीं बल्कि रंगों के पेस्ट में भी लेड ऑक्साइड, कॉपर सल्फेट, मरकरी सल्फाइट जैसे कैमिकल मिले होते हैं। जिनसे आंखों की एलर्जी, सूजन और अस्थायी अंधापन भी हो सकता है।
बाजारू गुलाल के भी कम नहीं नुकसान
यही बात होली के मौके पर बाज़ारों में खुले में बिकने वाले गुलाल पर भी लागू होती है। दरअसल गुलाल में क्रोमियम, लेड, कैडमियम, निकल, मरकरी, जिंक, आयरन जैसे हैवी मैटल्स की मिलावट की जाती है, जो कि हमारे गुर्दों, नर्व्स सिस्टम और रिप्रोडक्टिव सिस्टम के लिए बहुत हानिकारक होते हैं। अतः होली के मौके पर खुशियों को बरकरार रखने के लिए ऑर्गेनिक रंगों से ही होली खेलें। बाज़ार में ऑर्गेनिक गुलाल भी आसानी से मिल जाता है।
-इ. रि.सें.