फेसबुकिया कविता और लाइक्स जुटाने की तरकीबें
अशोक गौतम
मैं फेसबुक काल का विक्षिप्त प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय कवि हूं। मगर मेरी फेसबुकिया कविता के साथ पता नहीं क्यों ये हो रहा है कि वह उच्चकोटि की कविता होने के बाद भी उसे कोई लाइक नहीं करता मेरे सिवाय। कई बार तो ऐसा लगता है कि ज्यों कविता को लाइक करने का रिवाज ही खत्म हो गया हो।
अरे फेसबुकिया कविता के अरसिको! कविता नहीं पढ़नी है तो मत पढ़ो। पर कवि का मन रखने के लिए उसकी कविता पर एक लाइक तो टिका दो। बात-बात पर तो यार-दोस्तो को मौका मिलते ही अंगूठा दिखा देते हो तो कविता को अंगूठा दिखाने में तुम्हारा जाता क्या है? अपने फेसबुकिया काव्य सौष्ठव पर मिलने वाले लाइक्स की ओर से हताश निराश मैं फेसबुक पर कविता लिखना क्लोज करने की सोच ही रहा था कि अचानक उनसे मुलाकात हो गई। उनके पास गजब की शर्तिया तरकीबें होती हैं।
मैंने जब उनके पास अपनी पिटती फेसबुकिया कविता को रोना रोया तो वे अपनी जेब में कुछ ढूंढ़ते मुस्कुराते बोले, ‘बस! इतनी-सी बात! कविता चाहे किताब में हो चाहे फेसबुक पर। जबरदस्ती पढ़ानी, लाइक करवानी आनी चाहिए। एक्स्ट्रा ऑर्डिनेरी लाइक होने के बावजूद लाइक्स मांगने पर कोई लाइक नहीं देता, पर डराने के कौशल से मजे से छीने जा सकते हैं दोस्त! नर हो न निराश करो मन को। फेसबुक पर कविता पढ़ाने का भी तरकीब मेरे पास है।’
‘तरकीब!’ मैं चौंका तो वे बोले, ‘हां! सच पूछो तो हमारी जिंदगी ही एक तरकीब है। जो जिंदगी की तरकीब को समझ गया वह बिन तैरे ही भवसागर पार कर गया।’
‘मतलब?’
‘अगर तुम चाहते हो कि तुम कविता के चर्चित हस्ताक्षर होने के बाद फेसबुकिया कविता के भी चर्चित कविता मास्टर बन जाओ तो अपनी कविता फेसबुक पर चिपकाने से पहले कविता पर लिखो- इसे अनदेखा करोगे तो तुम्हारा बहुत अहित होगा।’
‘तो इससे क्या होगा?’
‘कोई भी फेसबुकिया साहित्य पिपासु कविता के अहित से डरे या न, पर अपने अहित से बहुत डरता है।’
‘तो?’
‘तो क्या! वह चाहते हुए भी तुम्हारी कविता को इग्नोर नहीं करेगा। करेगा तो अहित होने के डर का अधिकारी होगा। तब इच्छा न होते हुए भी वह उसे लाइक कर ही देगा। फेसबुकिया कवि को लाइक्स के सिवाय और चाहिए भी क्या! या फिर फेसबुक पर अपनी कविता चिपकाने से पहले उस पर वैधानिक चेतावनी लिख दो- आधी आंख बंद करके लाइक करो! निश्चित अगले पांच मिनटों में मां लक्ष्मी की कृपा बरसेगी।’
‘पर कविता की देवी तो सरस्वती हैं।’
‘ये तुम्हें पता है। फेसबुकिया कविता के पाठक को तो नहीं न! मां लक्ष्मी की कृपा के लिए वह कुछ भी कर सकता है।’