देवत्व का विस्तार
क्षत्रिय कुल में उत्पन्न विश्वामित्र को ब्रह्मर्षि पद वेदमाता गायत्री की कृपा से प्राप्त हुआ। यह प्रसंग उठने पर जन्मेजय ने पूछा, ‘गायत्री को वेदमाता क्यों कहा गया?’ द्रष्टा आस्तीक ऋषि ने कहा, ‘वेदमाता ही नहीं, देवमाता और विश्वमाता यही तीनों संबोधन आद्यशक्ति गायत्री के हैं। सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा को स्फुरणा देने, ज्ञान-विज्ञान का विस्तार करने के कारण ये वेदमाता कहलाती हैं।’ ‘जब सृष्टि-संचालन का क्रम चलता है, तब देवशक्तियों का क्रम चलता है तथा देवशक्तियों को पोषित करने का कार्य यही शक्ति करती है। इसके संसर्ग से देवत्व का विकास होता है, इसलिए इसे देवमाता कहते हैं।’ ‘जब कभी विश्व स्तर पर अनास्था, कुविचार-दुर्भावना का अंधकार छा जाता है, तब उसको मिटाने के लिए यह महाशक्ति प्रत्येक व्यक्ति पर अपना प्रभाव डालती है। स्वर्ग से गंगा को भू पर लाने जैसा प्रचंड तप कोई युगपुरुष करता है, तब यह दिव्य धारा जन-कल्याण हेतु महाप्रज्ञा के रूप में जन-जन को स्पर्श करती है। तब यह विश्वमाता की भूमिका संपन्न करती है। उस समय वेद अर्थात् सद्ज्ञान और देवत्व के विस्तार के अनोखे प्रयोग होते हैं।’
प्रस्तुति : मुकेश ऋषि