मुख्य समाचारदेशविदेशखेलपेरिस ओलंपिकबिज़नेसचंडीगढ़हिमाचलपंजाबहरियाणाआस्थासाहित्यलाइफस्टाइलसंपादकीयविडियोगैलरीटिप्पणीआपकी रायफीचर
Advertisement

महामारी के वाहक बन सकते हैं मौजूद वायरस

07:54 AM Sep 24, 2023 IST
मुकुल व्यास

केरल एक बार फिर निपाह वायरस के प्रकोप से जूझ रहा है। यह वायरस चमगादड़ों से मनुष्यों में आता है। यह कोरोना वायरस की तरह एक जूनोटिक वायरस है जो पशुओं से मनुष्यों में जंप करता है। केरल में इस वायरस का बार-बार प्रकट होना यह दर्शाता हैं कि खतरनाक वायरस हमारे बीच मौजूद हैं और वे कभी भी बड़ी महामारी फैला सकते हैं। केरल ने साल 2018 में कोझिकोड जिले में निपाह के पहले प्रकोप की सूचना दी थी। इसके बाद इस वायरस के तीन और प्रकोप हुए हैं,जिनमें अगस्त 2023 के अंत में नवीनतम प्रकोप शामिल है। यह बात आश्चर्यजनक है कि 2018,2021 और 2023 में केरल में निपाह के तीन प्रकोप कोझिकोड जिले में हुए हैं। साल 2019 का प्रकोप एर्नाकुलम जिले में हुआ। 2018 के प्रकोप में 17 लोगों की जानें गयी थीं। इस बार कोझिकोड जिले में छह सक्रिय केस सामने आए हैं जिनमें दो लोगों की मृत्यु हुई है। दूसरे राज्यों में भी निपाह वायरस की एंटीबॉडी पाई गई हैं। मुमकिन है कि इन राज्यों में निपाह का संक्रमण और उससे होने वाली मौतें अभी तक जानकारी में नहीं आई हों।

Advertisement

मलेशिया में मिला था पहला केस

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने निपाह को प्राथमिकता वाले रोगजनकों के रूप में सूचीबद्ध किया है। यह एक ऐसा वायरस है जिसमें महामारी फैलाने की उच्च क्षमता है और इससे मुकाबला करने के लिए समुचित उपाय हमारे पास नहीं हैं। इस वायरस को जैव-आतंकवाद का खतरा भी माना जाता है। निपाह वायरस की पहचान सबसे पहले मार्च 1999 में मलेशिया के कुआलालंपुर के दक्षिण में एक गांव सुंगई निपाह में एक मरीज के मस्तिष्कमेरु द्रव में की गई थी। परीक्षणों से पता चला कि यह पहले से अज्ञात प्रकार का पैरामाइक्सोवायरस था, जो खसरे और कण्ठमाला फैलाने वाले वायरस के परिवार से संबंधित था। जिस गांव में सबसे पहले इसकी पहचान हुई,उसके नाम पर इसका नाम निपाह वायरस रखा गया। इस वायरस को बाद में मलेशिया के विभिन्न क्षेत्रों और पड़ोसी सिंगापुर में बूचड़खाने के श्रमिकों के बीच एन्सेफलाइटिस जैसी बीमारी के प्रकोप से जोड़ा गया था। इसके विशिष्ट लक्षणों में बुखार,सिरदर्द और चेतना में कमी शामिल थे और ये संक्रमण अक्सर घातक होते थे।

चमगादड़ के जरिये हुआ फैलाव

मलेशिया के प्रकोप के दौरान 265 लोग संक्रमित हुए और 105 की मृत्यु हो गई, जो कि 39.6 फीसदी की मृत्यु दर थी। सिंगापुर में ग्यारह लोग संक्रमित हुए,जिनमें से एक की मृत्यु हो गई। लगभग दस लाख सुअरों की हत्या और सिंगापुर में सुअर के निर्यात पर प्रतिबंध के बाद मई 1999 में इसका प्रकोप समाप्त हो गया। बाद की जांच से पता चला कि वायरस का प्राथमिक मेजबान फ्रूट बैट चमगादड़ थे। शुरू में यह माना गया था कि सुअर वायरस से संक्रमित हो गए क्योंकि सुअर फार्म के पास एक बाग लगाया गया था, और वहां रहने वाले चमगादड़ों के स्राव ने सुअरों के भोजन और पानी को दूषित कर दिया था। उस प्रारंभिक प्रकोप के बाद बांग्लादेश, भारत और फिलीपींस में अन्य मामले सामने आए। बांग्लादेश में 2001 और 2013 के बीच लगभग हर साल निपाह का प्रकोप हुआ, जिनमें से अधिकांश फ्रूट बैट के संपर्क से जुड़े थे। भारत में मौजूदा प्रकोप से पहले दुनिया भर में कुल 634 मामले और 376 मौतें दर्ज की गई थीं।

Advertisement

बांग्लादेश स्ट्रेन के लक्षण ज्यादा गंभीर

चमगादड़ों के परीक्षण से निपाह वायरस की कम से कम दो किस्मों के अस्तित्व का पता चला है, जिन्हें मलेशिया स्ट्रेन और बांग्लादेश स्ट्रेन के रूप में जाना जाता है। बांग्लादेश स्ट्रेन भारत में हुए प्रकोप से जुड़ा हुआ है। मलेशिया स्ट्रेन से मानव संक्रमण थोड़ा कम गंभीर प्रतीत होता है। बांग्लादेश स्ट्रेन अतिरिक्त लक्षणों से जुड़ा है, जिसमें मांसपेशियों में कमजोरी, खांसी और सांस लेने में कठिनाई शामिल है। शरीर के तरल पदार्थों से सपर्क और संभवतः लोगों के खांसने या छींकने पर उत्पन्न श्वसन बूंदों के जरियेे यह वायरस मनुष्यों के बीच सीधे प्रसारित हो सकता है। केरल में 2018 के प्रकोप में हृदय की मांसपेशियों की शिथिलता का लक्षण भी जुड़ा था।

म्यूटेशन की उच्च दर

निपाह एक आरएनए वायरस है और ऐसे वायरस में आनुवंशिक परिवर्तन या म्यूटेशन की उच्च दर होती है,जिससे उनके लिए नए मेजबानों के अनुकूल होना और मेजबानों की प्रतिरक्षा प्रणाली की चुनौतियों के जवाब में बदलाव करना आसान हो जाता है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि बांग्लादेश स्ट्रेन मलेशिया स्ट्रेन की तुलना में अधिक संक्रामक होने की संभावना है। आश्चर्य की बात नहीं होगी यदि इस स्ट्रेन में और अधिक म्यूटेशन हो जाएं।

मनुष्य के अलावा जानवर भी जद में

निपाह मुख्य रूप से चमगादड़ के मूत्र, लार या बूंदों से दूषित उत्पादों को खाने या पीने के माध्यम से मनुष्यों और अन्य जानवरों को संक्रमित कर सकता है। जिन पेड़ों पर चमगादड़ रहते हैं वे अक्सर मानव बस्तियों के पास पाए जाते हैं और उनमें खजूर और अन्य फलों के पेड़ शामिल हैं। चमगादड़ के मल-मूत्र का उपयोग कभी-कभी कृषि क्षेत्रों को उर्वर करने के लिए किया जाता है, जो किसानों और कृषि श्रमिकों को वायरस के निकट संपर्क में लाता है। मनुष्य उन अन्य जानवरों से भी संक्रमित हो सकते हैं जो चमगादड़ से संक्रमित हुए हैं। इनमें सुअर और घोड़े भी शामिल हैं। एक बार संक्रमित होने पर लोग निपाह को अन्य लोगों तक पहुंचा सकते हैं। भारत में पाए जाने वाले सारे फ्रूट बैट निपाह वायरस के धारक हैं।

प्रकोप को रोकने के उपाय

निपाह के प्रकोप को रोकने का पहला तरीका चमगादड़ों के साथ संपर्क को कम करना है। इसका मतलब है कि लोगों को उपभोग से पहले फलों और सब्जियों को धोने के लिए प्रोत्साहित करना,उन्हें चुनने या तैयार करने के बाद अपने हाथ साफ करना और ताड़ के रस को इकट्ठा करने और उपभोग से पहले इसे उबालने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कंटेनरों को ढकना। नियमित रूप से हाथ धोने, संक्रमित व्यक्तियों के साथ भोजन या बिस्तर साझा करने से बचने और निपाह से मरने वाले लोगों की लाशों को संभालते समय व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण पहनने से मानव-से-मानव संचरण के जोखिम को कम किया जा सकता है। 2018 के केरल प्रकोप के दौरान सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों ने व्यापक संपर्क ट्रेसिंग की, संक्रमित व्यक्तियों को अलग किया और अस्पताल में संक्रमण नियंत्रण प्रथाओं को बढ़ाया। इससे एक महीने के भीतर निपाह के प्रकोप पर काबू पा लिया गया। निपाह वायरस के बारे में व्यापक जागरूकता और निगरानी भी महत्वपूर्ण है।

अभी लाइलाज, टीकों के परीक्षण जारी

इस समय निपाह के लिए कोई स्वीकृत टीके या उपचार नहीं हैं। कई टीकों का क्लिनिकल परीक्षण चल रहे हैं,जिनमें एक एमआरएनए-आधारित टीका शामिल है। एक टीका हेंड्रावायरस के प्रोटीन पर आधारित है। बांग्लादेश में इंटरनेशनल सेंटर फॉर डायरियाल डिजीज रिसर्च शरीर की प्रतिक्रिया को बेहतर ढंग से समझने के लिए निपाह से बचने वाले लगभग 50 लोगों का अध्ययन कर रहा है। इससे नए टीके के विकास में मदद मिलेगी। निपाह की 40 प्रतिशत से लेकर 70 प्रतिशत की मृत्यु दर को देखते हुए भारत कांटेक्ट ट्रैकिंग पर जोर दे रहा है और आस्ट्रेलिया से मोनोक्लोनल एंटीबाडी मंगा रहा है। इस दवा का पहले चरण का परीक्षण सफल रहा है।

लेखक विज्ञाान संबंधी विषयों के जानकार हैं।

Advertisement